ग्यारहवां चंद्रमास : पांच शुक्रवार का अनूठा संयोग कल्पवासियों के आशाओं को करेगा पूर्ण

भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास माघ कहलाता है। इस महीने में की पूर्णिमा को मघा नक्षत्र होने से इसे माघ मास कहते हैं। जो इस वर्ष 29 जनवरी से प्रारम्भ होकर 27 फरवरी तक रहेगा। धार्मिक दृष्टि से इस मास का बहुत अधिक महत्व है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 10:15 AM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 10:15 AM (IST)
ग्यारहवां चंद्रमास : पांच शुक्रवार का अनूठा संयोग कल्पवासियों के आशाओं को करेगा पूर्ण
भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास 'माघ' कहलाता है।

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास 'माघ' कहलाता है। इस महीने में की पूर्णिमा को मघा नक्षत्र होने से इसे माघ मास कहते हैं। जो इस वर्ष 29 जनवरी से प्रारम्भ होकर 27 फरवरी तक रहेगा। धार्मिक दृष्टि से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस बार माघ मास की शुरुआत शुक्रवार से हो रही है। जो बेहद खास है। इसके साथ ही इस मास में पांच शुक्रवार का संयोग बन रहा है। जो कल्पवास करने वाले लोगों के आशाओं की पूर्ति करता है। इस मास में नदियों के जल में डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्गलोक में जाते हैं। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघमास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत, दान, और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नानमात्र से होती है। इसलिए स्वर्गलाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए। इस माघमास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

पापों से मिलती है मुक्ति, स्वर्ग की होती है प्राप्ति

माघमास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का भी समागम होता है। जो व्यक्ति नियम पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघमास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त करता है। इसीलिए प्रयाग में कल्पवास का प्रचलन है। अगर व्यक्ति प्रयाग जाने में समर्थ न हो तो भी माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। परन्तु उपर्युक्त फल की प्राप्ति के लिए मन के निर्मलता एवं श्रद्धा की आवश्यकता होती है।

माघ मास में दान का है विशेष महत्व

माघ मास में कम्बल, लाल कपड़ा, ऊन, रजाई, वस्त्र, स्वर्ण, जूता-चप्पल एवं सभी प्रकार की चादरों को दान करना चाहिए। दान देते समय ' माधवः प्रियताम्' अवश्य कहना चाहिए। इसका अर्थ है- 'माधव' (भगवान कृष्ण) अनुग्रह करें। स्नान पूर्व तथा स्नान के पश्चात आग नहीं तापना चाहिए। माघ मास में भूमि शयन, प्रतिदिवसीय हवन, हविष्य भोजन, ब्रह्मचर्य का पालन माघव्रतियों के लिए आवश्यक विधान है। इससे व्रत करने वाले मनुष्य को महान अदृष्ट फल की प्राप्ति होती है।

माघ मास में मूली का सेवन है वर्जित

माघ मास में मूली नहीं खाना चाहिए । माघ मास में मूली सेवन, मदिरा सेवन की तरह मदवर्धक होता है। अतः मूली को स्वयं न तो खाना चाहिए न तो देव या पितृकार्य में उपयोग में ही लाना चाहिए। माघ मास में तिल अवश्य खाना चाहिए। तिल सृष्टि का प्रथम अन्न है। इस प्रकार माघ-स्नान की अपूर्व महिमा है। इस मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। कदाचित अशक्तावस्था में पूरे मास का नियम न ले सकें तो शास्त्रों ने यह भी व्यवस्था दी है कि तीन दिन अथवा एक दिन अवश्य माघ-स्नान व्रत का पालन करें।

पांच शुक्रवार का संयोग

इस वर्ष माघ मास  की शुरुआत शुक्रवार से हो रही है। वहीं इस महीने में 5 शुक्रवार भी पड़ रहे हैं जो बेहद  शुभ माना जाता है।  जिस महीने में पांच शुक्रवार पड़ते हो वो महीना बहुत ही शुभ माना जाता है। ज्योतिष संहिता ग्रन्थों में कहा गया है कि जिस महीने में पांच शुक्रवार पड़ते हों तो वह मास बहुत शुभदायक  होता है। उसमें समस्त प्रजा की आशाओं की पूर्ति होती है।

- प्रो. विनय कुमार पाण्डेय, अध्यक्ष, ज्योतिष विभाग बीएचयू

chat bot
आपका साथी