नाइट सेंसर से सुसज्जित है ड्रेजिंग मशीन, वाराणसी में गंगा से 450 वर्गमीटर प्रतिघंटा निकाल रहा बालू

आंध्र प्रदेश से आई अत्याधुनिक मशीन में सेंसर लगा हुआ है।पानी के अंदर किसी भी तरफ की समस्या होने पर तत्काल आपरेटर को जानकारी हो जायेगी। गंगा नदी में ड्रेजिंग का काम प्रभावित न हो इसके लिए प्रत्येक घंटा इसकी जांच की जाती है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 05 Apr 2021 06:35 PM (IST) Updated:Mon, 05 Apr 2021 06:35 PM (IST)
नाइट सेंसर से सुसज्जित है ड्रेजिंग मशीन, वाराणसी में गंगा से 450 वर्गमीटर प्रतिघंटा निकाल रहा बालू
आंध्र प्रदेश से आई अत्याधुनिक मशीन में सेंसर लगा हुआ है।

वाराणसी [संजय यादव]। आंध्र प्रदेश से आई अत्याधुनिक मशीन में सेंसर लगा हुआ है। पानी के अंदर किसी भी तरफ की समस्या होने पर तत्काल आपरेटर को जानकारी हो जायेगी। यह रात व दिन दोनों प्रहर में काम करता है। गंगा नदी में ड्रेजिंग का काम प्रभावित न हो इसके लिए प्रत्येक घंटा इसकी जांच की जाती है। एक घंटा में 450 वर्गमीटर बालू निकालने की क्षमता वाली यह मशीन एक किलोमीटर दूर तक बालू ढकेल सकती है। पानी लेबल से चार मीटर गहरा, 50 मीटर चौड़ा और 5.3‌ किलोमीटर लंबाई तक ड्रेजिंग कर चैनल बनाया जा रहा है।इस काम के लिए साढ़े 11 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

मशीन की क्षमता 850 हार्स पावर ही है। तीन शिफ्ट में 60 कर्मचारी बालू निकालने का काम कर रहे हैं। पाइप के माध्यम से ड्रेजिंग मशीन बालू को एक किनारे करने का काम कर रही है। मालूम हो कि कछुआ सेंचुरी के कारण बालू खदान पर रोक लग गया था। जिसके कारण गंगा के पूर्वी छोर पर बालू का टीला बनता चला गया।जबकि गंगा का बहाव घाटों की ओर होने लगा। जांच रिपोर्ट के आधार पर शासन की मंशा है कि गंगा के बहाव को वास्तविक प्रवाह में लाया जाए।जिससे काशी के घाटों की ओर होने वाले दबाव को कम कर घाटों की सुंदरता बनी रहे। सिंचाई विभाग को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। रेती का दबाव कम करने के लिए गंगा के पूर्वी तट पर जमा बालू का खनन शुरू किया गया है। साथ ही गंगा नदी में ड्रेजिंग कर चैनल बनाया जाएगा। जिससे गंगा का बहाव सीध में हो सके। आंध्र प्रदेश से आई ड्रेजिंग मशीन केवल बालू निकालकर किनारे करेगी। इसके बाद बालू को जिलाधिकारी के सुपुर्द कर दिया जाएगा। फिर डीएम बालू को टेंडर के माध्यम से निस्तारण कराने की जिम्मेदारी होगी।नदी से बालू इसलिए निकाला जा रहा है ताकि बाढ़ के समय घाटों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

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