डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जयंती : बंद हुआ अनुदान तो चंदा मांग कर चलाया महामना का बीएचयू

बात भारत छोड़ो आंदोलन के दौर की है। वर्ष 1989 में बीएचयू द्वारा प्रकाशित प्रज्ञा में न्यायाधीश एनवी दामले ने लिखा है कि नियुक्ति के करीब डेढ़ वर्ष बाद डा. राधाकृष्णन ने खुद को बीएचयू के हवाले कर दिया था। तब तक भारत छोड़ो आंदोलन का उद्घोष भी हो गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sat, 04 Sep 2021 09:11 PM (IST) Updated:Sat, 04 Sep 2021 09:11 PM (IST)
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जयंती : बंद हुआ अनुदान तो चंदा मांग कर चलाया महामना का बीएचयू
नियुक्ति के करीब डेढ़ वर्ष बाद डा. राधाकृष्णन ने खुद को बीएचयू के हवाले कर दिया था।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। अधिकतम तीन वर्ष की सेवा की शर्तों पर बीएचयू के अवैतनिक कुलपति बने डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (जन्म-5 सितंबर,1888, देहांत-17 अप्रैल, 1975) का मन महामना की बगिया में कुछ ऐसा रमा कि नौ वर्ष कब बीत गए उन्हें पता ही न चला। इस दरम्यान मुश्किल दौर का भी सामना उन्होंने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पदचिन्हों पर चलते हुए किया।

बात भारत छोड़ो आंदोलन के दौर की है। वर्ष 1989 में बीएचयू द्वारा प्रकाशित 'प्रज्ञा' में न्यायाधीश एनवी दामले ने लिखा है कि नियुक्ति के करीब डेढ़ वर्ष बाद डा. राधाकृष्णन ने खुद को बीएचयू के हवाले कर दिया था। तब तक भारत छोड़ो आंदोलन का उद्घोष भी हो गया। उस दौरान बीएचयू पूर्वांचल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का केंद्र बन गया था। आजादी के मतवालों की हिम्मत तोड़ने के लिए तत्कालीन बीएचयू गर्वनर माएरिस हैलेट ने विश्वविद्यालय के अनुदान को ही खत्म कर दिया। यह डा. राधाकृष्ण के लिए के लिए मुश्किल घड़ी थी। महामना से आत्मीय लगाव के चलते उन्होंने उन्हीं के ही पदचिन्हों पर चलते हुए इस मुश्किल का हल तलाशा। डा. राधाकृष्ण ने चंदा जुटाकर बीएचयू को संचालित किया। इससे न केवल अंग्रेजों के मंसूबों पर पानी फिर गया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का हौसला भी कायम रहा।

इन शर्तों के साथ बने थे कुलपति : डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कुलपति बनने की पहल तब शुरू होती है जब लगभग 20 वर्ष तक कुलपति रहे महामना मदन मोहन मालवीय अस्वस्थ होने पर बीएचयू की कमान किसी बड़े विद्वान को देना चाहते थे। उन्होंने जब डा. राधाकृष्णन को 1936 में डाक्टरेट की मानद उपाधि दी थी तो उनके ज्ञान व दर्शन कौशल को परख लिया था। महामना मदन मोहन मालवीय अगस्त 1939 में कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुंचे थे, जहां डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रोफेसर थे। जब उनको बीएचयू का कुलपति बनने का प्रस्ताव दिया तो तैयार नहीं हुए। महामना ने अनुनय की तो अधिकतम तीन वर्ष और सप्ताह में सिर्फ तीन दिन सेवा की शर्तों पर हामी भरी।

बीएचयू व आक्सफोर्ड में एकसाथ थे आचार्य : राधाकृष्णन बीएचयू में कुलपति के साथ ही आचार्य भी रहे। उन्होंने सयाजीराव प्रोफेसर आफ इंडियन कल्चर एंड सिविलाइजेशन कोर्स के पहले चेयर की जिम्मेदारी संभाली और छात्रों को दर्शन की शिक्षा देते रहे। खास बात यह कि डा. राधाकृष्णन बीएचयू व आक्सफोर्ड में एक साथ आचार्य रहे थे। उस दौर के दर्शन शास्त्री जार्ज कोंगर के शब्दों में 'उन्होंने पूरब व पश्चिम की सांस्कृतिक खाई को पाट दिया था। दर्शन के इतिहास में इस तरह का कोई व्यक्ति विश्व में नहीं हुआ।' इसके अलावा डा. राधाकृष्णन हर रविवार गीता का मर्म छात्रों को सिखाते थे। आयुर्वेद, वाणिज्य, इंजीनियरिंग व तकनीक की कई नई विधाएं शुरू कर उन्होंने विदेशी छात्रों को यहां आने का मौका दिया और भारतीय ज्ञान परंपरा से परिचित कराया।

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