बीएचयू के भारत कला भवन में लुप्त हो चुकी बालूचरी बनारसी साड़ी की तकनीक पर हुई चर्चा
छठें हथकरघा दिवस पर दृश्य कला संकाय के वस्त्र अभिकल्प केंद्र द्वारा आयोजित संवाद-संगोष्ठी-श्रृंखला में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त उस्ताद बुनकर नसीम अहमद ने बताया कि उनके पूर्वज कल्लू हाफिज (पद्मश्री अलंकृत ) ने इस परंपरा को संरक्षित किया।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। बीएचयू के भारत कला भवन में पचास के दशक के बाद लुप्त हो चुकी बालूचरी साड़ी और उसकी परंपरा से जुड़े लोगों से संवाद किया गया। छठें हथकरघा दिवस पर दृश्य कला संकाय के वस्त्र अभिकल्प केंद्र द्वारा आयोजित संवाद-संगोष्ठी-श्रृंखला में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त उस्ताद बुनकर नसीम अहमद ने बताया कि उनके पूर्वज कल्लू हाफिज (पद्मश्री अलंकृत ) ने इस परंपरा को सरंक्षित किया।
उन्होंने वस्त्र डिजाइन की विशेषज्ञ डा. जसमिंदर कौरसे चर्चा करते हुए बताया कि बालूचरी साड़ी को ही बूटीदार साड़ी के नाम से जाना जाता है। यह अपने आकृति मूलक अलंकरणों के लिए दुनिया भर में जानी जाती है। इसके बनाने की तकनीक व बारीकियों सहित उन्होंने इसकी अलंकरण विशेषताओं विस्तृत चर्चा किया। कहा कि इसमें रेशम पर रेशम से बुनाई कर डिजाइन तैयार की जाती है। इस संवाद के माध्यम से बालूचरी साड़ियों की तकनीक से आम आदमी को अवगत कराया गया।
इस संवाद कार्यक्रम के अलावा कला भवन में सभी शैलियों की साड़ियों की प्रदर्शनी भी लगाने की तैयारी की जा रही है। बनारस के तमाम छोटे- बड़े बुनकरों और बनारसी साडी़ के व्यापारियों से खास-खास तरह की साड़ियां ली जा रहीं हैं, जिससे हथकरघा दिवस यानि कि सात अगस्त को प्रदर्शनी लगाई जा सके। इस प्रदर्शनी में ढ़ाई-तीन लाख रुपये ये ऊपर तक की बनारसी साड़ियां शामिल होंगी।
इसके साथ ही जामदानी, रंगकाट और कढ़ुआ तकनीक हर प्रकार की साड़ियों के तकनीक के बारे में लाेग जाल सकेेंगे। यह कार्यक्रम फेसबुक पर लाइव प्रसारित किया गया और इसकी रिकॉर्डिंग भारत कला भवन के अधिकृत यूट्यूब चैनल पर देखी जा सकती है।