सुपर कांटिनेंट थ्योरी से जुड़ी हैं हीरे की किंबरलाइट चट्टानें, बस्तर से धारवाड़ के पहाड़ों में भंडार की संभावना
करीब 110 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दूर तक फैली हुई धरातलीय सतहों के मिलने से रोडेनिया सुपर कांटिनेंट का निर्माण हुआ।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। करीब 110 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर दूर तक फैली हुई धरातलीय सतहों के मिलने से रोडेनिया सुपर कांटिनेंट का निर्माण हुआ। उस दौरान धरती के भीतर से (मेंटल परत) लावा के रूप में मैग्मा बाहर आए जिनसे बड़ी किंबरलाइट पत्थरों का उद्भव हुआ। जो फोल्डिंग बेल्ट चट्टानों के समानांतर खड़ी हुईं। मेंटल परत धरती के अंदर मध्य में है जहां उच्चतम तापमान और दबाव पर शुद्ध कार्बन हीरे की शक्ल ले लेता है। सुपर कांटिनेंट के निर्माण के क्रम में हीरे उद्गार (ज्वालामुखी) संग ऊपर आए। भौमिकी के शब्दों में चट्टानों को किंबरलाइट रॉक्स कहा जाने लगा जहां हीरे की बहुलता होती है। किंबरलाइट चट्टानों का विस्तार बस्तर से पूर्वी धारवाड़ तक है। इससे साबित होता है कि यह क्षेत्र सुपर कांटिनेंट की प्रक्रिया से जुड़ा था। यह निष्कर्ष निकला है बीएचयू जियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा. एनवी चलपति राव व शोध छात्र आशुतोष पांडेय के शोध में। जो जियोलॉजी के मशहूर अंतरराष्ट्रीय जर्नल (लिथोस-नीदरलैंड्स) में जून-20 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
ईपीएमए प्रोजेक्ट के तहत शोध
शोध से पता चलता है कि हीरा संपदा से भरपूर किंबरलाइट चट्टानों का निर्माण रोडेनिया सुपर कांटिनेंट के समय हुआ। यह शोध जर्मन भूगोलवेत्ता वेगनर (महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के जनक) की सुपर कांटिनेंट थ्योरी के पक्ष में मजबूत तर्क दे रहा। शोध के अनुसार किंबरलाइट चट्टानें सुपर कांटिनेंट के समय बनी थीं। अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व कनाडा मेें मिली किंबरलाइट चट्टानें प्रमाण हैं। प्रो. राव के मुताबिक यह शोध केंद्र सरकार (डीएसटी-एसईअरबी) के ईपीएमए प्रोजेक्ट के तहत किया गया।
हीरे की तलाश होगी आसान
शोध के अनुसार फोल्डिंग बेल्ट चट्टानों (जहां दो चट्टानें मिलती है) के समीप किंबरलाइट हीरे की संभावना अधिक है। शोधकर्ताओं के मुताबिक टेक्टॉनिक जोन के कारण कंपनियों को हीरा ढूंढने में दिक्कत नहीं होगी। उन्हेंं रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट से संभावित स्थलों की जानकारी हो जाएगी।
यह भी जानें
मेंटल : भूगर्भ विज्ञानियों ने धरती के भूगर्भ को तीन हिस्सों में बांटा है। इसे क्रस्ट, मेंटल और कोर कहते हैं। मेंटल धरती की सबसे बीच की परत है जो लगभग 70 से धरती में 2900 किमी गहराई तक है।
बोले बीएचयू के प्रोफेसर, यह शोध हीरे की खोज में बेहद अहम
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. एके त्रिपाठी का कहना है कि अफ्रीका की किंबरलाइट चट्टानों के साथ तुलनात्मक अध्ययन और कांटिनेंटल ड्रिफ्ट थ्योरी के आधार पर यह शोध हीरे की खोज में बेहद अहम है। इस शोध के माध्यम से है कि भारत और अफ्रीकी देशों में हीरे की प्रचुरता वाली किंबरलाइट चट्टानों की पहचान सुलभ होगी और डायमंड एक्सप्लोरेशन की लागत में भी काफी कमी आएगी।