Dev Deepavali 2020 : बनारस सजधज कर तैयार, बस सितारों के जमीं पर उतरने का इंतजार
गंगा की लहरों की रवानी में आज गजब का जोश है जवानी है। वजह भी माकूल है क्योंकि देवाधिदेव महादेव की नगरी में सोमवार की सांझ पूनों के चांद की अगुवाई में आसमां के सितारों की झिलमिलाती बारात असंख्य दीपों की शक्ल में सुरसरि के पर उतर आनी है।
वाराणसी[कुमार अजय] । गंगा की लहरों की रवानी में आज गजब का जोश है जवानी है। वजह भी माकूल है क्योंकि देवाधिदेव महादेव की नगरी में सोमवार की सांझ पूनों के चांद की अगुवाई में आसमां के सितारों की झिलमिलाती बारात असंख्य दीपों की शक्ल में सुरसरि के फूलों ( घाटों) पर उतर आनी है।
लाखों लाख नेत्र युगल इस दिन गंगा के साथ आकाश गंगा के मिलन अनमोल घड़ी के गवाह बनेंगे। गंगा के समानांतर प्रवाहित ज्योति गंगा के हमराह बनेंगे। उल्लास के रंगों में रंगा-पगा कोई आयोजन जब तक नैनों में टिका रहता है। उत्सव कहलाता है। वक्त के साथ उत्सवी रंग अगर और शोक हुए तो यह महोत्सव बन जाता है। इससे भी आगे उमंग के ये रंग तरंग बनकर रगों में दौडऩे लगे तो यही आयोजन लोकोत्सव बनकर जनमानस के दिल में उतर आता है।
तीन दशकों की जोशीली यात्रा के बाद देव दीपावली का यह भव्य उत्सव
लगभग तीन दशकों की जोशीली यात्रा के बाद देवदीपावली का यह भव्य उत्सव भी होली दीपावली की तरह पारंपरिक उत्सव का रूप ले चुका है। इसकी भव्यता और दिव्यता की श्रीवृद्धि का क्रम अब तक न तो ढीला पड़ा है। न इसका विस्तार रूका है। किसी दौर में गंगा के घाटों तक ही सीमित रहा लोकमानस की श्रद्धा से जुड़कर कल्पना से भुअल्पना तक पहुंचा यह उत्सव गंगा घाटों की सीढिय़ां लांघकर नगर के टोले-मोहल्ले तक को अपनी भव्यता से चमकाने लगा है।
दीपावली के महज पखवारे भर बाद ही उजालों की बारिश में शिवनगरी को नहलाने लगा है। बड़ी बात यह कि नगर के सबसे विराट व रंगीले चमकीले उत्सव की रीति पूरी तरह जनसहभागिता की भीति पर टीकी है। इसमें भी युवाओं और महिलाओं के प्रभावी जुड़ाव ने इस पौराणिक पर्व को एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन का मान दिलाया है। इसे दुनिया के सबसे बड़े रंगारंग उत्सवों के शिखर तक पहुंचाया है। आदिकेशव घाट से शुरु करें तो राजघाट, गायघाट, सिंधिया घाट, ललिता घाट, मीरघाट से लेकर दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, अहिल्याबाई घाट, राजा चेतसिंह घाट, केदार घाट, तुलसी घाट से अस्सी घाट व रविदास घाट तक आज सबकुछ झकाझक और चकाचक नजर आ रहा है। गंगा की हर पुकार पर दौड़े चले आने वाले प्रधानमंत्री मोदी के उत्सव में शामिल होने के संदेशे ने काशीवासियों को और उतावला बना दिया है। दीए-बाती, अक्षत-रोली व फल-फूल से भरी थालियां और डालियां करीने से सजाकर पूजा घरों में सहेज दी गई हैं। अब तो इंतजार बस इतना कि कब सोमवार की गोधुलि ढले और कब राजघाट पर पीएम मोदी के हाथों आयोजन का पहला दीप जले।
कब पंचगंगा की सीढिय़ों पर जगमग हो दीपमालिकाएं और किस घड़ी पंचनग तीर्थ पर रानी अहिल्याबाइ के हाथों स्थापित हजारा ( हजार दीपकों वाला दीप स्तंभ) अपनी जगमग से पंचगंगा में समाहित यमुना, धूतपापा, किरणा व विशाखा तो ज्योति स्नान कराए। इसके साथ ही त्रिपुरा सुर के महादेव के हाथों वध के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला त्रिपुरोत्सव एक-एक करते लाखों-लाख दीपों की रोशनी से अपना सही अर्थ पाएगा। आकाश के तारों का काफिला साथ लेकर महादेव का आभार व्यक्त करने आए तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के ओज-तेज से काशी का कण-कण ज्योति पुंज बन जाएगा।