वाराणसी में 12 घंटे तक पिता के पार्थिव शरीर के साथ बैठी रही बेटी, नहीं आए कोई रिश्तेदार
किसी रिश्तेदार के नहीं आने पर बेटी प्रेमलता ने पिता के पार्थिव शरीर को एक चादर से ढककर रातभर उनके पास बैठी रही। सुबह चकिया निवासी प्रमेलता के मामा पहुंचे। उसके बाद किसी ने समाजसेवी अमन कबीर को सूचित किया। उसके बाद अमन ने अंतिम संस्कार करने का जिम्मा उठाया।
वाराणसी, सौरभ चंद्र पांडेय। हर परिवार में कुछ न कुछ मनमुटाव चलता रहता है। लेकिन इंसानियत की ऐसी मृत्यु होगी यह किसी ने नहीं सोचा था। यह दर्दनाक कहानी पांडेयपुर निवासी रामकुमार गुप्ता (55) की है। जो पेशे से आटो चालक था। गंभीर बीमारी के कारण रविवार देर रात करीब नौ बजे रामकुमार की मौत हो गई। बेटी प्रेमलता ने पिता के मौत की सूचना अपने रिश्तेदारों को दिया। लेकिन कोई भी रिश्तेदार दरवाजे झांकने तक नहीं आया। हालांकि पड़ोसियों ने इसके पीछे दो कारण बताया। पहला पारिवारिक मुकदमा तो दूसरा मुफलिसी।
शव को चादर से ढककर रातभर बैठी रही बेटी
किसी रिश्तेदार के नहीं आने पर बेटी प्रेमलता ने पिता के पार्थिव शरीर को एक चादर से ढककर रातभर उनके पास बैठी रही। सोमवार सुबह चकिया निवासी प्रमेलता के मामा पहुंचे। उसके बाद किसी ने समाजसेवी अमन कबीर को सूचित किया। उसके बाद अमन ने अंतिम संस्कार करने का जिम्मा उठाया।
चौथे कंधे की आई बात तो बेटी ने दिया सहारा
पार्थिव शरीर को परंपरानुसार तैयार करने के बाद जब अंतिम संस्कार करने के लिए जब मणिकर्णिका घाट ले जाने की बात आई तो कंधा देने वाले मात्र तीन लोग थे। यह बेटी प्रेमलता से देखा न गया। वह भावुक हो गई और पिता के लिए चौथे कंधे का सहारा बन गई। साथ-साथ मोक्ष द्वार तक गई। बात जब पिता को मुखाग्नि देने को आई तो प्रेमलता ने डोमराज से दाग लिया और पिता को दिया। यह दृश्य देख घाट पर मौजूद सभी की आंखे नम हो गईं।
हुआ होता समय पर इलाज तो बच जाती जान
मुफलिसी के कारण रामकुमार का इलाज नहीं हो सका। उसकी चिंता न तो रिश्तोदारों ने की, न तो पड़ोस में रहने वाले लोगों ने, न ही उसके आटो के मालिक ने, न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने। इंसानियत एक नहीं चार जगह मरी। बेटी प्रेमलता दूसरों के घर झाडू-पोंछा करके अपना जीवन यापन करती है। पिता रामकुमार की मौत के साथ ही बेटी प्रेमलता ने रिश्तों का भी अंतिम संस्कार कर दिया।