गाय के गोबर से मच्छर भगाने का क्वायल ही नहीं बल्कि बनेगी लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी

प्रधानमंत्री एक अपील के बाद गौशाला में पलने वाली गाय के गोबर से अब सोनांचल में भी उपयोगी सामान बनाए जाएंगे। इससे एक तरफ जहां पर्यावरण को शुद्ध बनाने में मदद मिलेगी वहीं महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा। इसके लिए ग्रामीण आजीविका मिशन ने पूरी तैयारी कर लिया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 05:52 PM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 05:52 PM (IST)
गाय के गोबर से मच्छर भगाने का क्वायल ही नहीं बल्कि बनेगी लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी
नवरात्र से पहले मशीन आदि लगाकर काम शुरू होने की उम्मीद है।

सोनभद्र, जेएनएन। प्रधानमंत्री एक अपील के बाद गौशाला में पलने वाली गाय के गोबर से अब सोनांचल में भी उपयोगी सामान बनाए जाएंगे। इससे एक तरफ जहां पर्यावरण को शुद्ध बनाने में मदद मिलेगी वहीं महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा। इसके लिए ग्रामीण आजीविका मिशन ने पूरी तैयारी कर लिया है। नवरात्र से पहले मशीन आदि लगाकर काम शुरू होने की उम्मीद है। इसके लिए दो मशीन भी मंगाई गई। इन मशीनों से लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, मच्छर भगाने वाले क्वाल, गोबरकी लकड़ी, गमला, नेम प्लेट आदि तैयार किया जाएगा। इसमें कुछ मिट्टी भी मिलायी जाएगी, जो पानी में पूरी तरह से घुलनशील होगी। यानी अगर मच्छर भगाने का क्वायल जलेगा तो मच्छर तो भागेंगे ही पर्यावरण भी शुद्ध होगा।

विजयगढ़ पोखरे के पास स्थापित होगा संयंत्र

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और पर्यावरण को शुद्ध बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने गोबर का उद्योग लगाने की योजना तैयार किया है। इसके तहत राबट्सर्गंज नगर में विजयगढ़ पोखरे के पास स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इसका संयंत्र स्थापित करेंगी। नगर के संकटमोचन महाल में खुले गौशाला से गोबरले जाकर उससे लकड़ी, गमला, नेम प्लेट, मच्छर भगाने का क्वायल और लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा बनाएंगी। इसके बाद इन्हें स्थानीय बाजार के साथ-साथ ऑनलाइन बेचा जाएगा। जिन मशीनों को स्थापित किया जाएगा उनकी लागत करीब पौने दो लाख रुपये है। एक जो गोबरऔर मिट्टी को मिक्स करेगी उसकी लागत एक लाख रुपये और जो सांचे पर सामान तैयार करेगी उसकी लागत 75 हजार रुपये के करीब है। इस कार्य में अभी करीब 12 महिलाएं जुड़ेंगी। हालांकि लगभग तीन हजार महिलाओं को इससे जोडऩे की योजना है।

इस तरह से होगा काम और ऐसे मिलेगा फायदा

गोबर की लकड़ी बनाने या अन्य सामान बनाने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। एनआरएलएम के जिला प्रबंधक एमजी रवि बताते हैं कि लकड़ी बनाते समय लैकमड द्रव मिलाया जाता है, इससे यह आम लकड़ी की तुलना में ज्यादा देर तक जलती है। गोबर का गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। यह सस्ता होने के साथ ही इको फ्रेंडली होता है। बताते हैं कि जब किसी पौधे को प्लास्टिक की थैली हटाने में लापरवाही की जाए तो पौधे की जड़ें खराब हो जाती हैं और मिट्टी में लगाने पर यह पनप नहीं पाता। इस स्थिति से बचने के लिए गोबर का गमला उपयोगी है। इसी तरह से गोबर और मिट्टी से बने बनी लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं पानी में घुलनशील होती हैं। यानी जब प्रतिमा विसर्जन होगा तो इससे जल प्रदूषित नहीं होगा। इसी तरह मच्छर भगाने का क्वायर भी बनता है, जिससे प्रदूषण नहीं होता न ही कोई नुकसान होता है।

57 क्विंटल होता है गौशाला में गोबर

फिलहाल जिले में सरकारी तौर पर कुल 18 गोशालाएं संचालित की जा रही हैं। इनमें छोटे-बड़े कुल मिलाकर 1275 गौवंशी मवेशी रखे गए हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. एके श्रीवास्तव बताते हैं कि गोशालाओं में रहने वाला एक स्वस्थ गौवंश एक दिन में औसतन साढ़े चार किलो गोबर करता है। इस तरह से जिले की सभी गोशालाओं में जो पशु हैं वे 57 क्विंटल के करीब गोबर करते हैं।

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