Subhash Chandra Bose इतिहास ने नेताजी को महानायक स्वीकार किया, वाराणसी में सुभाष मंदिर में विविध आयोजन

अखंड भारत की आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस के अवसर पर इन्द्रेश नगर लमही के सुभाष भवन में विशाल भारत संस्थान द्वारा तीन दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन शुरू किया गया। महोत्सव के पहले दिन इतिहास की अदालत में सुभाष विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 05:47 PM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 09:53 AM (IST)
Subhash Chandra Bose इतिहास ने नेताजी को महानायक स्वीकार किया, वाराणसी में सुभाष मंदिर में  विविध आयोजन
सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा तीन दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन किया गया।

वाराणसी, जेएनएन। अखंड भारत की आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिवस के अवसर पर इन्द्रेश नगर, लमही के सुभाष भवन में विशाल भारत संस्थान द्वारा तीन दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन शुरू किया गया। महोत्सव के पहले दिन इतिहास की अदालत में सुभाष विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपोज्वलन कर महोत्सव की शुरूआत की। आजाद हिन्द बटालियन की सेनापति दक्षिता भारतवंशी ने अपनी बाल टुकड़ी के साथ नेताजी सुभाष को सलामी दी और बिगुल बजाकर सुभाष महोत्सव का स्वागत किया।

विश्व की पहली निर्वाचित बाल संसद की स्पीकर खुशी रमन भारतवंशी को दुनियां भर के वंचित बच्चों के अधिकारों की आवाज बुलन्द करने हेतु एवं सुभाष के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने हेतु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण पुरस्कार-2021 से सम्मानित किया गया। खुशी रमन भारतवंशी विश्व के पहले सुभाष मंदिर की पुजारी हैं और प्रतिदिन सुभाष मंदिर में भारत माता की प्रार्थना और आजाद हिन्द सरकार का राष्ट्रगान कराकर भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना विकसित करती हैं। खुशी जीजीआईसी में 11वीं की छात्रा हैं और बचपन से ही सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुयी हैं। कोरोना संकट के दौरान खुशी रमन भारतवंशी ने 100 दिनों तक अनवरत् भूख से पीड़ितों की सेवा की है। खुशी के सामाजिक कार्यों को देखते हुये विशाल भारत संस्थान ने खुशी को राष्ट्रीय परिषद में शामिल किया है। खुशी सबसे कम उम्र की परिषद की सदस्य बनी हैं। खुशी नेताजी सुभाष को अपना आदर्श मानती हैं और श्रीराम भक्त हनुमान जी को अपना अराध्य मानती हैं। खुशी ने सैकड़ों बेटियों को शिक्षा से जोड़कर उनका जीवन बदला है।

संगोष्ठी में विषय स्थापना करते हुये सुभाषवादी विचारक तपन घोष ने  कहा कि सुभाष ने आजादी की लड़ाई के साथ ही भारत के नव निर्माण की नीति भी तय कर ली थी। आजाद हिन्द सरकार की नीतियों को लागू किया गया होता तो आज भारत की स्थिति कुछ और होती। सुभाष के साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया है, उनके इतिहास का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिये।

इतिहासकार प्रो अशोक कुमार सिंह ने कहा कि इतिहास की अदालत हमेशा न्याय करती है। इतिहास की अदालत में सुभाष ही अखण्ड भारत के महानायक हैं और इतने वर्षों बाद भी विश्वभर में सुभाष को मानने वालों की कमी नहीं है। इतिहास का पुनर्लेखन हो और सुभाष के कार्यों, नीतियों को व्यापक तरीके से सब तक पहुंचाया जाये।

मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सुभाष विभाजन के विरोधी थे। कांग्रेस के नेताओं को वो पहले ही अंग्रेजों की चाल से चेता चुके थे। दुनियांभर में अंग्रेजों के विरूद्ध न सिर्फ मोर्चा खोला बल्कि उन्हें कूटनीतिक स्तर पर भी घेरा। द्वितीय विश्व युद्ध का समय अखण्ड भारत की आजादी का उपयुक्त समय था। अगर कांग्रेस के नेता सुभाष का साथ दिये होते तो देश भी आजाद हो जाता और विभाजन भी न होता। देश के बंटवारे की त्रासदी आज तक पूरा भारत झेल रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान भारत से अलग होने के बाद आज तक संभल नहीं पाये। उनके यहां इतनी गरीबी है कि लोग घुसपैठिये के रूप में भारत में भाग कर आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी घुसपैठियों का अड्डा बन गया है। सुभाष की योजनाओं को माना गया होता तो देश इतनी समस्याओं से नहीं जूझता। सुभाष के इतिहास का शोधकर्ता, बुद्धिजीवी फिर से मूल्यांकन करें और देशहित में जन-जन तक पहुंचायें।

विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष डाक्‍टर राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में सुभाष चन्द्र बोस का नाम अंकित होना चाहिये क्योंकि दुनियां के 10 देशों ने आजाद हिन्द सरकार को मान्यता दी थी और इस सरकार के मुखिया सुभाष चन्द्र बोस ने देश को आजाद कराने के लिये अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा। सुभाष का इतिहास विश्व की मानवता के लिये हमेशा प्रेरणादायी बना रहेगा। विशाल भारत संस्थान सुभाष बाबू के जन्मदिवस को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने के लिये भारत सरकार को धन्यवाद दिया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता श्रीराम आस्थावादी विचारक चट्टो बाबा ने किया। संचालन अर्चना भारतवंशी ने  किया एवं धन्यवाद डा निरंजन श्रीवास्तव ने दिया। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से अध्यात्मिक गुरू चून्नु साईं, प्रो एसपी सिंह, डा० मुकेश प्रताप सिंह, मो अजहरूद्दीन, दिलीप सिंह, आत्म प्रकाश सिंह, नाजनीन अंसारी, नजमा परवीन, धनंजय यादव, सुधांशु सिंह, रमन, शिवम सिंह, दीपक, धर्मेन्द्र नारायण, अशोक सहगल, सुनील कुमार, ठाकुर राजा रईस, तुषारकांत, मोईन खान, डा नीलेश दत्त, रोहित, अशोक, प्रिंस उपाध्याय, अभिषेक सिंह आदि लोगों ने भाग लिया।

chat bot
आपका साथी