सोनभद्र में उफनती कनहर नदी से छत्तीसगढ़ के जंगलों से बहकर आई लकड़ी निकालने की होड़
महंगी लकड़ियों की चाहत में नदी किनारे गांवों के ग्रामीणों को बारिश के मौसम में बाढ़ का इन्तजार रहता है। जान जोखिम में डालकर वे नदी से उन लकड़ियों को निकाल कर उसे जरूरतमन्दो को बेच देते है। यह सिलसिला नदी में बाढ़ आने के साथ शुरू हो जाता है।
जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र)। कनहर सिंचाई परियोजना के निर्माणाधीन मुख्य बांध से महज 50 मीटर की दूरी पर उफनते कनहर नदी से लकड़ी निकालने में ग्रामीणों में होड़ मची हुई है। शनिवार को सुबह से ही छत्तीसगढ़ के जंगलों से कनहर एवं पांगन नदी में बहकर आने वाली विशालकाय लकड़ी के बोटों को हासिल करने की ललक नदी किनारे आबाद ग्रामीणों में मची हुई थी।
सबसे हैरत की बात है कि एक से डेढ़ मीटर उठ रही लहरों से लकड़ी निकालने की जुगाड़ में पुरुषो के साथ ही भारी संख्या में किशोर व महिलाएं भी लगी रहीं। उन्हें रोकने व टोकने के लिए ना ही कोई सुरक्षा गार्ड दिखा और ना ही कोई पुलिस कर्मी। बताते चले कि नदी में बाढ़ आने के बाद छत्तीसगढ़ के जंगलों एवं पहाड़ में आंधी तूफ़ान एवं अवैध कटान कर रखे गये इमारती लकड़ी पहाड़ी नदी नालों की पानी से निकलते हुए कनहर एवं पांगन नदी में बह कर आती है।
महंगी लकड़ियों की चाहत में नदी किनारे आबाद गांवों के ग्रामीणों को बारिश के मौसम में बाढ़ का इन्तजार रहता है। जान जोखिम में डालकर वे नदी से उन लकड़ियों को निकाल कर उसे जरूरतमन्दो को बेच देते है। यह सिलसिला नदी में बाढ़ आने के साथ शुरू हो जाता है।
दरअसल जंगहों से कई जगह कटान होने की वजह से लकड़ी बहकर उत्तर प्रदेश में सोनभद्र की ओर आ जाती है। दशकों से इसी तरह खतरों से खेलते हुए लोग बेशकीमती जंगल की लकड़ियों को नदी से निकालते आए हैं। इसकी वजह से गांव के कई लोगों की इस सीजन में यह नौकरी सरीखी है। माना जाता है कि नदी में घुमाव वाले स्थान पर काफी लकड़ियां बहकर आती हैं और स्थानीय लोग उन्हें नदी से निकालकर सीजन में हजारों तो कुछ लाख रुपये तक आसानी से कमा लेते हैं। हालांकि, इसमें जान का जोखिम भी बराबर बना रहता है।