कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे उच्च शिक्षा की कमान, 316 महाविद्यालयों में 314 में प्राचार्य के पद खाली

उत्‍तर प्रदेश भर में 170 राजकीय व 316 अनुदानित महाविद्यालय है। इसमें 15 अल्पसंख्यक अनुदानित महाविद्यालय शामिल है। करीब 50 फीसद राजकीय महाविद्यालयों में भी कार्यवाहक प्राचार्य काम कर रहे है। सबसे खराब स्थिति अनुदानित महाविद्यालयों की है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 12:20 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 12:20 PM (IST)
कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे उच्च शिक्षा की कमान, 316 महाविद्यालयों में 314 में प्राचार्य के पद खाली
करीब 50 फीसद राजकीय महाविद्यालयों में भी कार्यवाहक प्राचार्य काम कर रहे है।

वाराणसी, जेएनएन। सूबे के ज्यादातर अनुदानित महाविद्यालय कार्यवाहक प्राचार्य के भरोसे चल रहा है। दो महाविद्यालयों को छोड़कर अन्य किसी भी कालेज में स्थायी प्राचार्य नहीं है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय (बलिया) व वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर) से संबद्ध 60 अनुदानित महाविद्यालयों में एक भी स्थायी प्राचार्य नहीं है। कार्यवाहक प्राचार्य प्रबंधतंत्र के दबाव में रहते हैं। इसके चलते वह संस्थाहित में भी कड़े कदम उठाने से कतराते हैं।

सूबे के 170 राजकीय व 316 अनुदानित महाविद्यालय है। इसमें 15 अल्पसंख्यक अनुदानित महाविद्यालय शामिल है। करीब 50 फीसद राजकीय महाविद्यालयों में भी कार्यवाहक प्राचार्य काम कर रहे है। सबसे खराब स्थिति अनुदानित महाविद्यालयों की है। 314 अनुदानित महाविद्यालय स्थायी प्राचार्य विहीन है। इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश उच्चतरशिक्षा चयन आयोग ने 26 जून 2017 को प्राचार्यों के 284 पदों को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया। बाद में संशोधित विज्ञापन में प्राचार्यों के रिक्त पदों की संख्या 290 कर दी गई। इस क्रम में 29 अक्टूबर 2020 को परीक्षा भी कराई गई।

परीक्षा के बाद 610 लोगों को साक्षात्कार के लिए अर्ह घोषित किया गया। नियुक्ति की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए आयोग ने मार्च में साक्षात्कार भी शुरू कर दिया। इस बीच कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ने भी एक बार फिर चयन प्रक्रिया पर ब्रेक लग गया। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (उच्च शिक्षा संवर्ग) के प्रभारी डा. जगदीश सिंह दीक्षित ने आयोग से ऑनलाइन साक्षात्कार प्रक्रिया शुरू कराने की मांग की है। वहीं प्रमाणपत्राें का सत्यापन बाद में कराने का सुझाव दिया है ताकि नए सत्र में अनुदानित कालेजों में स्थायी प्राचार्य की मिल सके।

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