जन्‍माष्‍टमी 2021 : रोहिणी और अष्टमी का योग बना रहा जयंती का संयोग, जानिए ज्‍योतिषीय महत्‍व

हिंदू सनातन धर्म में भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान है। यह व्रत पर्व है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sat, 28 Aug 2021 10:37 AM (IST) Updated:Sat, 28 Aug 2021 10:37 AM (IST)
जन्‍माष्‍टमी 2021 : रोहिणी और अष्टमी का योग बना रहा जयंती का संयोग, जानिए ज्‍योतिषीय महत्‍व
कृष्ण पक्ष की अष्टमी का श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान है।

वाराणसी, जेएनएन।: सनातन धर्म में भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी का श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान है। यह व्रत पर्व है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि 29 अगस्त को रात्रि 10:10 बजे लग जा रही है जो 30 अगस्त को रात 12:14 बजे तक रहेगी। इस दिन देश भर में जन्‍माष्‍टमी की धूम रहेगी और श्री कृष्‍ण के जन्‍म का उत्‍सव मथुरा और जिलों की पुलिस लाइन से लेकर घर घर तक आयोजन होंगे।  

वहीं रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त को प्रातः 6:42 बजे से लग रही है जो 31 अगस्त को सुबह 9:00 बज कर 19 मिनट तक रहेगी। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने आप में बेहद खास होने वाली है। कारण यह कि रोहिणी तथा अष्टमी का योग होने से अबकी भगवान श्री कृष्ण से जुड़े इस विशेष पर्व पर जयंती नामक योग बन रहा है। खास यह कि ऐसा योग यदा-कदा ही देखने को मिलता है। इस बार ऐसा ही सुंदर योग देखने को मिलेगा। वहीं उदय व्यापिनी रोहिणी मतावलम्बी वैष्णवजन 31 अगस्त को पर्व के विधान पूरे करेंगे।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रहने से समस्त पापों का नाश तो होता ही है, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से अंत में वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था। भगवान श्री कृष्ण ही एक ऐसे विशेष देवता हैं जो 10 अवतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णा अवतार हैं। भगवान श्री कृष्ण को 16 कलाओं से परिपूर्ण मानते हैं जबकि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम में 14 कलाओं का ही समावेश था। भगवान का जन्म द्वापर युग के अंत में हुआ था।

chat bot
आपका साथी