भारतीय गणतंत्र में 'इंडिया दैट इज भारत' काशी के पंडित जी की देन

गौरवशाली प्रसंग - पं. नेहरू ने जब टोका कमला तुम भी? तो पंडित जी बोले जी मैं मां की तरफ ह

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 Jan 2021 08:03 PM (IST) Updated:Mon, 25 Jan 2021 08:24 PM (IST)
भारतीय गणतंत्र में 'इंडिया दैट इज भारत' काशी के पंडित जी की देन
भारतीय गणतंत्र में 'इंडिया दैट इज भारत' काशी के पंडित जी की देन

गौरवशाली प्रसंग

- पं. नेहरू ने जब टोका 'कमला, तुम भी?' तो पंडित जी बोले 'जी, मैं मां की तरफ हूं'

-पं. कमलापति त्रिपाठी ने की थी 'भारत' शब्द को और अधिक महत्व की वकालत

-मतदान से कामथ का संशोधन प्रस्ताव संविधान प्रारूप समिति ने किया निरस्त जागरण संवाददाता, वाराणसी : पं. कमलापति त्रिपाठी काशी के नहीं, संपूर्ण देश के गौरव स्तंभ थे। संविधान सभा में उन्होंने अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए 'अपनी मां'ं यानी 'हिदी' का साथ दिया। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित कराने के साथ ही उन्होंने भारतीय गणतंत्र के नामकरण जैसे मामलों में उल्लेखनीय संसदीय भूमिका निभाई थी। भारतीय गणतंत्र 'इंडिया दैट इज भारत' उन्हीं की देन है।

दरअसल भारतीय गणतंत्र के नामकरण के मसले पर संविधान प्रारूप समिति ने दुनिया भर में प्रचलित 'इंडिया' शब्द का ही प्रयोग करने का निर्णय लिया था। 'भारत' या 'भारतवर्ष' अथवा 'हिदुस्तान' जैसे परंपरा के नामकरण के पक्ष में व्यापक आग्रहों को ध्यान में रखकर जो प्रस्ताव सदन में आया। वह संविधान के अनुच्छेद 01 में 'इंडिया दैट इज भारत' के समावेश का आधिकारिक प्रस्ताव था। उस पर एचवी कामथ ने संशोधन पेश करते हुए मात्र 'भारत' जिसका अंग्रेजी अर्थ 'इंडिया है', रखने का सुझाव दिया। इस पर तीखी बहस हुई। सेठ गोविंद दास ने भी 'भारत' नाम की वकालत की। पं. कमलापति त्रिपाठी ने अपने भाषण में 'भारत' नाम को समाहित करने के लिए प्रारूप समिति का आभार जताते हुए इस संज्ञा को और अधिक महत्व दिए जाने की वकालत की। इस दौरान उन्होंने अपने सारगíभत भाषण में सास्कृतिक महत्ता को स्थापित करने का प्रयास किया। इस पर डा. भीमराव आंबेडकर ने टोका-टोकी की। यही नहीं, उनसे हल्की नोकझोंक भी हो गई। पंडित जी ने आग्रह किया कि 'इंडिया दैट इज भारत' की जगह 'भारत दैट इज इंडिया' का प्रयोग हो, ताकि अपनी संस्कृति में इस देश के लिए प्रयुक्त इस सनातन परंपरा के नाम की प्रतिष्ठा को वरीयता मिले। ऐसा करना देश के सास्कृतिक आत्म गौरव के अनुकूल होगा। बहस के बाद अंतत: मतदान के माध्यम से कामथ का संशोधन प्रस्ताव निरस्त हुआ और बहुमत से 'इंडिया दैट इज भारत' के प्रस्ताव को ही स्वीकार किया गया।

'हिदी' के पक्ष में अंतिम दम तक खड़े रहे पंडित जी : संविधान-निर्माण के समय आधिकारिक भाषा को लेकर देश की नेतृत्व मंडली के बीच मतभेद थे। राष्ट्रपिता महात्मा गाधी, प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव आंबेडकर सहित शीर्ष नेता गण राष्ट्रभाषा के रूप में 'हिदुस्तानी' यानी हिदी-उर्दू मिश्रित आम भारतीयों के बीच प्रयुक्त भाषा की स्वीकृति चाहते थे। दूसरी ओर संविधान सभा और उसके काग्रेस संसदीय दल के भीतर ही एक सशक्त लाबी 'हिदी' के पक्षधर थी, जिसका नेतृत्व राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, सेठ गोविंद दास, पं. कमलापति त्रिपाठी व बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' सहित अन्य सासद कर रहे थे।

लंबी बहस के बाद स्वीकार किया गया हिदी दिवस : पं.कमलापति त्रिपाठी पर शोध कार्य कर चुके महात्मा गाधी काशी विद्यापीठ के पूर्व राजनीति विज्ञानी प्रो. सतीश कुमार बताते हैं कि राष्ट्रभाषा के मुद्दे पर 13 एवं 14 सितंबर, 1949 को संविधान-सभा में लंबी बहस के बाद हिदी को आधिकारिक भाषा की स्वीकृति मिली। 12 सितंबर को काग्रेस संसदीय दल में 'हिदुस्तानी' व 'हिदी' को लेकर मतभेद के बीच मतदान का फैसला हुआ। खुले मतदान में तय हुआ कि जो 'हिंदी' के पक्षधर हों वे राजर्षि टंडन की ओर और जो 'हिदुस्तानी' के पक्षधर हों, वे प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की तरफ खड़े हो जाएं। टंडन की ओर जाने के लिए पंडित जी जहा बैठे थे, उठ गए। जैसे ही उन्होंने अपना कदम आगे बढ़ाया, पं. नेहरू ने उन्हें टोका, 'कमला, तुम भी?' पंडित जी ने कहा 'जी, मैं मां की तरफ हूं..'

अंत में दोनों पक्षों की गिनती हुई, तो हिदी के पक्ष में एक वोट ज्यादा निकला। फलत: दूसरे दिन काग्रेस पार्टी 'हिदी' के पक्ष में आधिकारिक फैसले के साथ सदन में थी और अंतत: दक्षिण भारत के लोगों की आपत्तियों के बीच कुछ बंधनों के साथ हिदी के पक्ष में 14 सितंबर को संविधान सभा का फैसला हुआ। इस प्रकार 14 सितंबर को 'हिदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

काशी को ही सर्वप्रथम संविधान का अनुवाद प्रकाशित करने का श्रेय : हिदी पत्रकारिता व साहित्य की महान परंपरा से जुड़े पंडित कमलापति त्रिपाठी राजनीति में देश की सास्कृतिक राजधानी काशी की संस्कृति के प्रतिनिधि माने जाते रहे। पारिवारिक परंपरा के नाते संस्कृत में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने विभिन्न समाचार-पत्रों में बतौर संपादक कार्य किया। यही नहीं, पंडित जी ने बनारस से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र 'संसार' में संविधान का हिदी में अनुवाद प्रकाशित कराया। इस प्रकार संविधान का अनुवाद देश में सबसे पहले प्रकाशित करने का श्रेय भी काशी को ही है।

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