तापमान वृद्धि से प्रभावित हो रहीं बच्चों की रासायनिक क्रियाएं, जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे नवजात

तापमान लगातार पुराना रिकार्ड तोड़ता जा रहा है। अप्रैल माह में ही तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्शियस से ऊपर रह रहा है। आग उलगती सूरज की किरणों ने सभी को झुलसा दिया है। थोड़ी सी लापरवाही के कारण लोग हीट स्ट्रोक व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 30 Apr 2021 01:16 PM (IST) Updated:Fri, 30 Apr 2021 01:16 PM (IST)
तापमान वृद्धि से प्रभावित हो रहीं बच्चों की रासायनिक क्रियाएं, जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे नवजात
तापमान बढ़ने से बच्चों की रासायनिक क्रियाएं प्रभावित हुई हैं।

जौनपुर, जेएनएन। तापमान लगातार पुराना रिकार्ड तोड़ता जा रहा है। अप्रैल माह में ही तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्शियस से ऊपर रह रहा है। आग उलगती सूरज की किरणों ने सभी को झुलसा दिया है। थोड़ी सी लापरवाही के कारण लोग हीट स्ट्रोक व अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। सबसे अधिक खतरा बच्चों को है। तापमान बढ़ने से बच्चों की रासायनिक क्रियाएं प्रभावित हुई हैं। इसके चलते वह विभिन्न जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। जीव-जंतुओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर मुकेश शुक्ल ने बताया कि एक साल से कम उम्र के नवजात की हाइपोथेलमस का थोर्मो स्टेट सेंटर (तापमान नियंत्रित करने कोशिका) पूरी तरह से विकसित नहीं होती। तापमान अधिक होने के कारण उनके शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है और वह हाइपर पायरेक्सिया से प्रभावित हो जाते हैं। बच्चों की रासायनिक क्रियाएं प्रभावित हो जाती हैं और पाचक इंजाइम्स का समुचित मात्रा में स्त्राव नहीं होता। शरीर शिथिल होने के साथ ही उल्टियां होने लगती हैं। भूख कम लगती है और बच्चे में चिड़चिड़ापन आ जाता है। उन्होंने बताया कि तापमान बढ़ने के कारण हानिकारक माइक्रोप्स सक्रिय हो जाते हैं और उनमें प्रजनन तेजी से होने लगता है। बच्चा पेचिस, गैस्ट्रो आदि बीमारियों की चपेट में आ जाता। तापमान अधिक होने के कारण अस्पताल आने वाले अधिकांश बच्चे आंत व डायरिया रोग से पीड़ित हैं। तापमान बढ़ने से फूड प्वाइजनिंग की संभावना बढ़ जाती है।

डाक्टर शुक्ल ने बताया कि तीखी धूप में सुबह दस बजे से शाम पांच बजे के बीच नंगे बदन, खाली पेट घूमने वाला बच्चा हीट स्ट्रोक की चपेट में जाता है। तापमान 106 डिग्री से अधिक होने के साथ शरीर में ऐंठन आने लगती है। बच्चे को मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं और वह बेहोश होने लगता है। ऐसी स्थिति घातक होती है।

बढ़ते तापमान के असर से बचाने के लिए बच्चों को नंगे बदन बाहर नहीं खेलने देना चाहिए। विशेष परिस्थिति में बाहर निकलने पर सफेद टोपी या गमछा से शरीर ढंग देना चाहिए। बच्चों को पर्याप्त ओआरएस घोल, ताजे फल का रस, पन्ना आदि तरल पदार्थ देना चाहिए। दो से ढाई घंटे से अधिक समय से बना भोजन बच्चों को न खिलाएं। पानी उबालकर पिलाने के साथ ही साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें। छह माह से कम उम्र के बच्चों को स्तनपान कराना आवश्यक है।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से बढ़ा तापमान

ऋतु प्रधान देश में मौसम में तेजी से परिवर्तन आया है। वृक्षों की कटान व औद्योगिक इकाइयों में वृद्धि के चलते गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। इसका असर जनमानस ही नहीं वन्य व जलीय प्राणियों पर भी पड़ रहा है। गर्मी से बेहाल वन्य जीव पानी की तलाश में जहां मानव आबादियों की ओर रुख कर रहे हैं वहीं बड़ी संख्या में पशु-पक्षी मर रहे हैं। पर्यावरणविद् डाक्टर अरविंद मिश्र ने बताया कि ग्लोबल वार्मिग के चलते वातावरण का तापमान तेजी से बढ़ा है। इसका असर मानव ही नहीं वन्य प्राणियों व पक्षियों पर भी पड़ रहा है। वनों की तेजी से हो रही कटान के चलते वन्य प्राणियों व पक्षियों का पर्यावास छिन्न-भिन्न हो गया है। गर्मी के चलते उनकी गतिविधियां प्रभावित हो गई हैं।

बेहाल जीव-जंतु पानी की तलाश में मानव आबादियों की ओर रुख कर गए हैं। तापमान अधिक होने के कारण व लू की चपेट में आकर पक्षियों व मधुमक्खियों के मरने का सिलसिला तेज हो गया है। उन्होंने बताया कि जलीय जंतुओं के अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। मछलियों समेत तमाम जलीय जंतुओं के लिए 28 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। अधिक तापमान के कारण नदियों में कम पानी उबल जा रहा है और जलीय जीव-जंतु मर रहे हैं। इतना ही नहीं नदियों, तालाबों के सूखने के कारण जमीन के अंदर रहने वाले मेढक, कछुआ, जोंक आदि पर तापमान का दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

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