एससी-एसटी छात्रों के बीएड प्रशिक्षण की चुनौती बढ़ी, पूरी फीस देने पर ही अबकी मिल रहा प्रवेश

बीएड प्रशिक्षण के लिए शासन से निर्धारित 51250 रुपये शुल्क में से महज 5000 रुपये जमा कर जहां पहले एससी-एसटी के छात्र महाविद्यालयों में प्रवेश पा जाते थे और शेष शुल्क छात्रवृत्ति से जमा करते थे। वहीं इस वर्ष यह रास्ता बंद कर दिया गया है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 05 Oct 2021 09:20 PM (IST) Updated:Tue, 05 Oct 2021 09:20 PM (IST)
एससी-एसटी छात्रों के बीएड प्रशिक्षण की चुनौती बढ़ी, पूरी फीस देने पर ही अबकी मिल रहा प्रवेश
एसटी के छात्रों को सामान्य छात्रों की तरह ही पूरी फीस भरने के बाद ही प्रवेश दिया जा रहा है।

मऊ, जागरण संवाददाता। दो वर्षीय बीएड प्रशिक्षण के लिए शासन से निर्धारित 51,250 रुपये शुल्क में से महज 5000 रुपये जमा कर जहां पहले एससी-एसटी के छात्र महाविद्यालयों में प्रवेश पा जाते थे और शेष शुल्क छात्रवृत्ति से जमा करते थे। वहीं इस वर्ष यह रास्ता बंद कर दिया गया है। चालू बीएड प्रशिक्षण सत्र में एससी-एसटी के छात्रों को भी सामान्य छात्रों की तरह ही पूरी फीस भरने के बाद ही प्रवेश दिया जा रहा है। शासन से बीएड में प्रवेश के लिए बदले गए नियम से गरीब दलित छात्रों एवं उनके अभिभावकों के समक्ष चुनौतियां बढ़ गई हैं। अब उन्हें पूरी फीस एक मुश्त ही जमा करनी पड़ रही है।

शिक्षाविदों का मानना है कि बीएड में छात्रवृत्ति आने पर शेष शुल्क जमा करने की बात कहकर प्रवेश लेने वाले सैकड़ों एससी-एसटी छात्रों के छात्रवृत्ति पाने के बाद चालू बीएड शिक्षा सत्र से ही भाग जाने की शिकायतें बढ़ने के बाद शासन को नियमों में बदलाव करना पड़ा है। राजन पीजी कालेज के प्रबंधक मधुसूदन त्रिपाठी एवं वित्तविहीन महाविद्यालय संघ के महामंत्री संदीप त्रिपाठी ने बताया कि पूर्व के बीएड प्रवेश नियम के तहत काउंसिलिंग के समय एससी-एसटी छात्र महज 5000 रुपये जमा कर प्रवेश के लिए कालेज आवंटन पत्र प्राप्त कर लेते थे।

इस पत्र के आधार पर शेष शुल्क न होने पर भी प्रबंधक अपने प्रशिक्षण महाविद्यालय में इस शर्त पर प्रवेश दे देते थे कि छात्रवृत्ति का पैसा खाते में आने पर छात्र शुल्क की शेष राशि जमा कर देंगे। इससे एससी-एसटी वर्ग के अति गरीब छात्रों को फायदा होता था और कम व्यय भार में ही बीएड करके निकल जाते थे। किंतु कुछ वर्षों से इस नियम का फायदा उठाकर अनेक एससी-एसटी छात्र 5000 देकर बीएड में दाखिल तो लेते थे, लेकिन जैसे ही उनके खाते में छात्रवृत्ति के 58 हजार रुपये पहुंचते थे तो वे पाठ्यक्रम छोड़कर भाग खड़े होते थे।

इससे जहां कालेज को फीस नहीं मिल पाती थी, वहीं छात्र के रिक्त सीट पर किसी को प्रवेश देने की भी अनुमति नहीं थी। शुल्क न जमा करने व छात्रों के भागने के मामले में कई कालेजों की ओर से एफआइआर भी दर्ज कराया गया था। सरकार का पैसा भी पढ़ने-लिखने वाले दलित छात्र की बजाय भगौड़ों पर व्यय हो जाता था। संदीप कुमार त्रिपाठी ने कहा कि छात्रवृत्ति तो अब भी मिलेगी, लेकिन बीएड में प्रवेश लेने के बाद छात्रवृत्ति लेकर भागने का रास्ता सरकार ने मुश्किल या बंद किया है। फिलहाल हर बीएड महाविद्यालय पर काउंसिलिंग एवं प्रवेश की प्रक्रिया गतिमान है।

chat bot
आपका साथी