Chaitra Navratra 2021 : 13 अप्रैल को प्रात: 5.43 बजे से 8.47 बजे के बीच घट स्थापन का शुभ समय

Chaitra Navratra घट स्थापन के लिए प्रात वेला शुभ मानी जाती है। इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 12 अप्रैल को प्रात 6.59 बजे लग रही है जो 13 को सुबह 8.47 बजे तक रहेगी। अत 13 को प्रात 5.43 बजे से 8.47 बजे के बीच घट स्थापन कर लेनी चाहिए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 06:30 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 05:49 PM (IST)
Chaitra Navratra 2021 : 13 अप्रैल को प्रात: 5.43 बजे से 8.47 बजे के बीच घट स्थापन का शुभ समय
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 12 अप्रैल को प्रात: 6.59 बजे लग रही है जो 13 को सुबह 8.47 बजे तक रहेगी।

वाराणसी, जेएनएन। शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की आराधना का विशेष पर्व वासंतिक नवरात्र का आरंभ भारतीय नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। नौ दिनों तक व्रतपूर्वक दर्शन-पूजन, अनुष्ठान संग समापन नवमी (राम नवमी) को होता है। तिथि अनुसार इस बार नवरात्र आरंभ 13 अप्रैल को होगा जो 21 तक चलेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष 15 दिनों का होने से अबकी नवरात्र पूरे नौ दिन का है। वासंतिक नवरात्र में नौ दुर्गा के साथ नौ गौरी के दर्शन-पूजन का विशेष महत्व होता है। मां परांबा का अश्व पर आगमन कष्टकारी भले हो लेकिन माता का गमन मानव कंधे पर हो रहा है, जिसका फल सुखदायी व चतुर्दिक लाभकारी होगा।

महानिशा पूजन 19 की रात

शास्त्रीय मान्यता अनुसार महानिशा पूजन सप्तमीयुक्त अष्टमी में करने का विधान है। निशीथ व्यापिनी अष्टमी योग 19 अप्रैल की रात में मिल रहा है जिसमें महानिशा पूजन आदि किया जाएगा। महाष्टमी व्रत 20 को रखा जाएगा। वहीं चैत्र शुक्ल नवमी 21 की शाम 6.59 बजे तक है। इस दिन महानवमी व श्रीरामनवमी के व्रत के साथ दोपहर में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। नवरात्र का होम आदि 21 की शाम 6.59 बजे के पूर्व कर लेना होगा। कारण यह कि शाम सात बजे दशमी लग जाएगी। नवरात्र व्रत पारण 22 को होगा।

घट स्थापन वेला

घट स्थापन के लिए प्रात: वेला शुभ मानी जाती है। इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 12 अप्रैल को प्रात: 6.59 बजे लग रही है जो 13 को सुबह 8.47 बजे तक रहेगी। अत: 13 को प्रात: 5.43 बजे से 8.47 बजे के बीच घट स्थापन कर लेनी चाहिए।

पूजन विधान

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि विशेष पर प्रात: नित्य कर्मादि-स्नानादि कर हाथ में गंध -अक्षत-पुष्प जल लेकर संकल्पित होकर ब्रह्मा जी का आह्वान करना चाहिए। फिर आगमन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप- दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि व प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नववर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्सर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करना चाहिए। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-वंदनवार आदि से सुशोभित करना चाहिए।

तय आगमन व प्रस्थान के विधान

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार शास्त्रों में कहा गया है कि 'शशिसूर्ये गजारूढ़ा, शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च डोलायाम, बुधे नौका प्रकीर्तिता।।अर्थात् नवरात्र के प्रथम दिन रविवार या सोमवार हो तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। आरंभ शनि या मंगलवार से हो तो माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार या शुक्रवार का दिन पड़े तो मां की सवारी पालकी से आती है, जबकि बुधवार को नवरात्रारंभ होने से मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं। इसी प्रकार माता का गमन रविवार व सोमवार को हो तो भैंसा पर, मंगल-शनि को गमन हो तो मुर्गा पर, बुधवार-शुक्रवार को हाथी पर और गुरुवार को हो तो मानव कंधा पर माना जाता है। तद्नुसार इसके फलादेश तय हैं।  

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