बुध प्रदोष व्रत दस मार्च को, भगवान शिव की विशेष कृपा और पुण्‍य प्राप्‍त करने का अवसर

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिव जी की विशेष महिमा मानी गई है। तैंतीस करोड़ देवी देवताओं में भगवान शिव ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिव पुराण में विविध प्रकार के व्रतों का उल्लेख किया गया है।

By Abhishek sharmaEdited By: Publish:Tue, 09 Mar 2021 12:06 PM (IST) Updated:Tue, 09 Mar 2021 12:06 PM (IST)
बुध प्रदोष व्रत दस मार्च को, भगवान शिव की विशेष कृपा और पुण्‍य प्राप्‍त करने का अवसर
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिव जी की विशेष महिमा मानी गई है।

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिव जी की विशेष महिमा मानी गई है। तैंतीस करोड़ देवी देवताओं में भगवान शिव ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिव पुराण में विविध प्रकार के व्रतों का उल्लेख किया गया है।

कलियुग में भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत चमत्कारी माना गया है। प्रदोष व्रत से दुख - दारिद्र का नाश होता है। जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। जीवन में समस्त दोषों के सम्मान के साथ ही सुख समृद्धि का योग भी बनता है। सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त पर्यंत जो त्रयोदशी तिथि हो उसी दिन यह व्रत रखा जाता है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है।

प्रदोष व्रत 10 मार्च को

इस बार यह व्रत 10 मार्च बुधवार को रखा जाएगा। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 मार्च बुधवार को दिन में 2:41 पर लगेगी जो कि 11 मार्च गुरुवार को दिन में 2:40 तक रहेगी। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 10 मार्च बुधवार को होने के कारण प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है। एक घटी 24 मिनट की होती है। इस अवधि में भगवान शिव की पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। व्रत वाले दिन व्रत कर्ता को संपूर्ण दिन निराहार रहते हुए निर्जल व्रत रहना चाहिए। शाम को सूर्यास्त के बाद पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष बेला में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

अलग दिन का मान

ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव माना गया है। सप्‍ताह के सातों दिन के अनुसार साथ अलग-अलग प्रदोष व्रत माने गए हैं। जैसे रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि के लिए, सोम प्रदोष शांति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि के लिए, भौम प्रदोष कर्ज से मुक्ति के लिए। बुध प्रदोष मनोकामना की पूर्ति के लिए, गुरु प्रदोष विजय और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, शुक्र प्रदोष आरोग्य सुख के लिए सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति के लिए शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए माना गया है। अभीष्‍ट मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथिओं का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान माना गया है।

व्रत का नियम

ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार व्रत करता को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने इष्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गंध, कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहते हुए शाम को पुनः स्नान ध्यान कर के नए वस्त्र धारण कर श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिव की विधि विधान पूर्वक पंचोपचार सदस्यों पर चार अथवा षोडशोपचार पूजा अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिव जी का अभिषेक कर उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगंधित द्रव्य के साथ बेलपत्र, धतूरा, मदार, ऋतु पुष्प अर्पित कर धूप दीप के साथ पूजा अर्चना पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।

परंपराओं का रखें ख्‍याल

शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की स्तुति करें तो पूजा विशेष फलदाई होती है। भगवान शिव की महिमा में शिव मंत्र का जप तथा स्कंद पुराण में वर्णित प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं प्रदोष व्रत कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करना चाहिए जिससे मनोकामना की पूर्ति होती है। व्रत से संबंधित कथाएं भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला और पुरुष दोनों के लिए फलदाई माना गया है इस दिन अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखते हुए भगवान शिव की अर्चना करने पर शीघ्र लाभ होता है। शिवजी की महिमा में रखे जाने वाला प्रदोष व्रत जीवन के समस्त दोषों का शमन करके सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। व्रत के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। गरीबों असहायों की सेवा व सहायता करनी चाहिए जिससे जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली मिलती रहे। 

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