संस्‍कृ‍त विश्‍वविद्यालय में स्‍वाधीनता संग्राम पर मंथन, कहा - 'धर्म की रक्षा के लिए सिखों के योगदान को भूलना असंभव'

धर्म की रक्षा करने के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपना सिर तक को कुर्बान कर दिया है। इसी प्रकार नामधारी सिख परंपरा भी देश की आजादी के लिए बलिदान किया। गाय की रक्षा के लिए उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 05:17 PM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 05:17 PM (IST)
संस्‍कृ‍त विश्‍वविद्यालय में स्‍वाधीनता संग्राम पर मंथन, कहा - 'धर्म की रक्षा के लिए सिखों के योगदान को भूलना असंभव'
सिख समुदाय के बलिदान को देश कभी भूल नहीं सकता है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। धर्म की रक्षा के लिए सिखों के योगदान को भूलना असंभव है। धर्म की रक्षा करने के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपना सिर तक को कुर्बान कर दिया है। इसी प्रकार नामधारी सिख परंपरा भी देश की आजादी के लिए बलिदान किया। गाय की रक्षा के लिए उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। ऐसे में सिख समुदाय के बलिदान को देश कभी भूल नहीं सकता है।

ये बातें संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महासचिव श्रीश देव पुजारी ने कही। वह बुधवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनि भवन सभागार में आयोजित भारतीय स्वाधीनता संग्राम : संघर्ष की गाथा विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। आजादी का अमृत महोत्सव,चौरी चौरा महोत्सव, गुरु तेग बहादुर सिंह के 400वें जन्मशताब्दी के अवसर पर श्रीसद्गुरु राम सिंह जी महाराज पीठ व तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि कहा कि देश को आजादी दिलाने वाले स्वाधीनता सेनानियों को सदा स्मरण करते रहना चाहिए। स्वाधीनता संग्राम संघर्ष में हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने जो संघर्ष किया उस अनुपात में उन्हें विजय प्राप्त नहीं हुई इसका कारण उनका अलग अलग संघर्ष है। यदि ये संघर्ष मिल कर काम कर रहे होते तो हमें लक्ष्य आसानी से प्राप्त हो जाता। यही परिस्थितियां आज भी है। अत: हमें संस्कृति के आधार पर संघटित होना ही होगा।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि देश को आजादी दिलाने वाले स्वाधीनता सेनानियों को सदा स्मरण करते रहना चाहिए और मानव कल्याण के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले गुरु तेगबहादुर के बलिदानों को सतत स्मरण करते और नमन करते हैं। नामधारी सिख परम्परा सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के लिए जो कार्य किया वो आज भी प्रासंगिक हैं। सनातन संस्कृति के संरक्षण में सिख गुरुओं का अवदान भी निरन्तर स्मरणीय है। गुरु जगजीत सिंह महाराज ने जिस उद्देश्य से इस पीठ की स्थापना की थी यह पीठ उस उद्देश्य पर अग्रसर हैं। सद्गुरु संदेश नामक स्मारिका का विमोचन भी किया। विषय प्रवर्तन करते हुए मंजीत सिंह, स्वागत तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी, संचालन पीठ की निदेशिका डा. रेणु द्विवेदी तथा धन्यवाद ज्ञापन दर्शन संकायाध्यक्ष प्रो. सुधाकर मिश्र ने किया।

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