ब्लैक फंगस का कारण धूल कण व सस्ते स्प्रे सैनिटाइजर, मेथेनॉल हमारी त्वचा और उतकों को पहुंचाता है नुकसान

जब हम स्प्रे सैनिटाइजर को अपने चेहरे के आसपास ले जाकर छिड़काव करते हैं तो थोड़ी मात्रा इनकी हमारे आंखों और नांक में भी चली जाती है जिससे वहां के रेटिना समेत आखाें व नांक की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं। यही फंगस के उगने का बेहतर वातावरण तैयार है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 06:20 AM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 06:20 AM (IST)
ब्लैक फंगस का कारण धूल कण व सस्ते स्प्रे सैनिटाइजर, मेथेनॉल हमारी त्वचा और उतकों को पहुंचाता है नुकसान
आंख और नांक की कोशिकाओं को मृत कर फंगस को उगने का बेहतर वातावरण तैयार कर रहे हैं।

वाराणसी, जेएनएन। हमने कोरोना से बचने के लिए अत्यधिक मात्रा में एस्टेरायड लिया और प्रतिरोधक क्षमता घट गई। यही एकमात्र कारण इस ब्लैक फंगस संक्रमण के पीछे नहीं है। अब स्प्रे वाले लोकल सैनिटाइजर और धूल धक्कड़ वाले वातावरण की भूमिका भी सामने आ रही है। इन सस्ते सैनिटाइजर में मेथेनॉल की मात्रा जरूरत से कहीं ज्यादा होता है, जो हमारी आंख और नांक की कोशिकाओं को मृत कर फंगस को उगने का बेहतर वातावरण तैयार कर रहे हैं। हम जानते हैं कि मशरूम हो या फिर हमारे शरीर में होने वाले दाद-खाज, खराब नाखून और कान में खुजली इत्यादि फंगस की वजह से होते हैं जो कि मृत कोशिकाओं या उतकों पर उगते हैं।

आइआइटी-बीएचयू में सिरामिक इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिक डॉ. प्रीतम सिंह के अनुसार जब हम इन स्प्रे सैनिटाइजर को अपने चेहरे के आसपास ले जाकर छिड़काव करते हैं तो थोड़ी मात्रा इनकी हमारे आंखों और नांक में भी चली जाती है, जिससे वहां के रेटिना समेत आखाें व नांक की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं। यही फंगस के उगने का बेहतर वातावरण तैयार है।

दरअसल यहां पर प्रोटीलिसिस प्रक्रिया होती है यानि कि प्रोटीन का लिक्विड निकलने लगता है और सूखे हुए अर्थात मृत प्रोटीन आपस में तेजी से जुड़ने लगते हैं। इसके बाद फंगस बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वहीं हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई है तो ब्लैक फंगस अपना प्रभाव दिखने लगते हैं। हर नुक्कड़ और गलियों में बिकने वाले नकली सैनिटाइजर में पांच फीसद के आसपास मेथेनॉल है, जो कि हमारी त्वचा और उतकों को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी हैं। सैनिटाइजर जहां-तहां बिना मानक और रेगुलेशन के ही बेचे जा रहे हैं, जो कि इतने घातक हैं जिनका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। डॉ. प्रीतम के अनुसार यदि सैनिटाइजर का उपयोग करना ही है तो लिक्विड सैनिटाइजर ही करें, जिसमें ड्रॉपलेट की तरह गिरे, स्प्रे वाले नहीं। बेहतर होगा कि हम बेहतर ब्रांड वाले ही सैनिटाइजर उपयोग में लाए।

कंस्ट्रक्शन वाले जगहों पर जाने से बचें

बीएचयू में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विश्वंभर सिंह ने बताया कि स्प्रे सैनिटाइजर से फंगस इंफेक्शन के खतरे का प्रमाण तो नहीं है, मगर कंस्ट्रक्शन साइट वाले क्षेत्रों में भी फंगस तेजी से उगते हैं इसलिए कोरोना के मरीज वहां पर आने-जाने से बचें। डॉ. सिंह ने बताया कि हम लोगों में से कोई फंगल इंफेक्शन से दूर नहीं हैं, मगर एक प्रतिरोधक शक्ति ही है कि हमको उसका पता ही नहीं चलने देती। डॉ. विश्वंभर सिंह ने कहा कि यदि नाक द्वारा काले या खूनी लाल रंग का स्त्राव हो, गाल में या एकतरफा चेहरे में दर्द, सूजन, दांत का ढीला होना या खून में उल्टी आ तो सचेत हो जाए ये सब लक्षण ब्लैक फंगस के ही हैं।

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