जापानी तकनीक आधारित उपकरणों पर शोध करेगा बीएचयू, सफल रहे प्रयोग तो भारतीय कृषि क्षेत्र में आएगी क्रांति
सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों में भारतीय कृषि की दशा व दिशा दोनों बदल जाएगी। रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह से बंद हो जाएगा और यह संभव होगा जापानी तकनीकों पर आधारित उपकरणों के कास्मो जल से।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों में भारतीय कृषि की दशा व दिशा दोनों बदल जाएगी। रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग पूरी तरह से बंद हो जाएगा और यह संभव होगा जापानी तकनीकों पर आधारित उपकरणों के कास्मो जल से। इसके प्रयोग में उपकरण की कीमत के अलावा अन्य कोई भी अतिरिक्त लागत नहीं आती। यही नहीं पौधों और पशुओं में जीवाणु व फंफूदी जनित लगने वाले रोगों का उपचार भी पूरी तरह से रसायनमुक्त हो जाएगा। केवल कास्मो जल के प्रयोग से पशुओं में होने वाले खुरपका, मुंहपका जैसी बीमारियां आसानी से ठीक हो जाएंगी। इस तरह किसानों का उत्पादन बिना किसी रसायन और लागत के 10 से 20 फीसद बढ़ जाएगा तो उसकी गुणवत्ता भी बढ़ जाएगी। भारत-जापान संगठन के माध्यम से जापानी विज्ञानी इन नवीनतम तकनीक आधारित उपकरणों को काशी हिंदू विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं। सोमवार को संगठन की पहल पर जापान और बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों के बीच हुई आनलाइन संगोष्ठी में इस पर व्यापक चर्चा हुई।
जापान के वरिष्ठ विज्ञानी प्रो. फ्यूजीटा सीगेसिया ने बताया कि उनकी नई तकनीकी के प्रयोग से उत्पादित 'कास्मो क्रियाशील जल से सिंचाई करने से फसलों का उत्पादन 10 से 20 प्रतिशत बढ़ जाता है और इस पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती। यही नहीं, इस जल का प्रयोग पेयजल के रूप में करने से मनुष्य सभी प्रकार की बीमारियों से दूर रह सकता है और औसत आयु में वृद्धि हो जाती है। इस उपकरण के आने के बाद आरओ की आवश्यकता नहीं रहेगी। उन्होंने बताया कि इसी तरह नई बैट फ्री तकनीकी के प्रयोग से फसलों एवं पशुओं में फंफूदी एवं जीवाणु जनित रोगों का नियंत्रण बिना रसायन के प्रयोग से संभव है। उन्होंने आनलाइन इनसे जुड़े प्रयोग भी करके दिखाए। साथ ही कास्मो जल से सिंचित फसलों की स्थिति का भी प्रदर्शन किया।
कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. रमेशचंद ने इन नई तकनीकों के लिए बीएचयू को प्रथम संस्थान के रूप में चयनित करने पर खुशी जताई। गोष्ठी के संयोजक प्रो. रमेश कुमार सिंह ने कृषि क्षेत्र में भारत जापान सहयोग को और अधिक सु²ढ़ एवं प्रभावी बनाने पर जोर दिया ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों एवं पशुओं में होने वाली बीमारियों तथा संक्रमित रोगों का प्रभावी निदान किया जा सके।
यदि भारत जापान वैज्ञानिक सहयोग से नवीन जापानी तकनीकियां भारतीय किसानों को उपलब्ध की जाएं तो उनकी उत्पादन की गुणवत्ता एवं आर्थिक विकास की प्रबल संभावनाएं हैं। शहरों को हरित, स्वच्छ व स्वपोषित बनाने में भी ये नई तकनीकें काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं। उम्मीद है कि कृषि विज्ञान संस्थान बीएचयू इस दिशा में महत्वपूर्ण शोध केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
-संजय मल्होत्रा, अध्यक्ष, भारत, जापान संगठन