बीएचयू की छात्रा रश्मि गुप्ता अंटार्कटिका पर रह कर करेंगी शोध, भारत-अफ्रीका के मध्‍य जुटाएंगी साक्ष्‍य

दुनिया भर के उच्च शोध संस्थान और ख्यात वैज्ञानिक यहां के मोटे बर्फ पर सालों रहकर वनस्पति वायुमंडल की गुणवत्ता और संसाधनों की तलाश में जुटे रहते हैं। बीएचयू के इतिहास में पहली बार एक शोध छात्रा दक्षिणी ध्रुव पर अपने शोध कार्य को पूरा करने जा रही है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Sun, 08 Aug 2021 12:07 PM (IST) Updated:Sun, 08 Aug 2021 12:07 PM (IST)
बीएचयू की छात्रा रश्मि गुप्ता अंटार्कटिका पर रह कर करेंगी शोध, भारत-अफ्रीका के मध्‍य जुटाएंगी साक्ष्‍य
बीएचयू के इतिहास में पहली बार एक छात्रा दक्षिणी ध्रुव पर अपने शोध कार्य को पूरा करने जा रही है।

वाराणसी [हिमांशु अस्‍थाना]। घने बर्फ की चादर से लिपटा अंटार्कटिका महाद्वीप रहस्यों का अकूत खजाना छिपाए बैठा है, मगर उन्हें खोज निकालना बेहद दुरुह कार्य माना जाता है। दुनिया भर के उच्च शोध संस्थान और ख्यात वैज्ञानिक यहां के मोटे बर्फ पर सालों रहकर वनस्पति, वायुमंडल की गुणवत्ता और संसाधनों की तलाश में जुटे रहते हैं। अब इसमें से एक नाम बीएचयू का भी जुड़ने जा रहा है। बीएचयू के इतिहास में पहली बार एक शोध छात्रा दक्षिणी ध्रुव पर अपने शोध कार्य को पूरा करने जा रही है।

भूविज्ञानी प्रो. चलपति राव और अंटार्कटिका शोध कार्य की प्रिसिंपल इंवेस्टीगेटर (पीआई) असिस्टेंट प्रोफेसर डा. मयूरी पांडेय के मार्गदर्शन में बीएचयू भू-विज्ञान विभाग की शोध छात्रा रश्मि गुप्ता इस साल नंवबर में अंटार्कटिका पर जा रहीं हैं। कोविड के बाद पहली बार इस साल 41वें इंडियन साइंटिस्ट एक्सपीडिशन टू अंटार्कटिका टीम के तहत नवंबर में देश भर से चयनित शोधकर्ताओं की टीम शोध करने जाएगी। डा. मयूरी पांडेय के निर्देशन में रश्मि अंटार्कटिका पर पीएचडी कर रहीं हैं। डा. पांडेय ने अंटार्कटिका में शोध कार्य के लिए चयन करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था गोवा के राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र को आवेदन सबमिट किया। विगत वर्षों में अंटार्कटिका पर छपे शोध पत्रों और साक्षात्कार के आधार पर उनकी शोध छात्रा रश्मि को चयनित किया गया।

डा. मयूरी पांडेय बताती हैं कि हिम की चादर से ढंका यह महाद्वीप जमीन के तल से हमे दूर कर देता है। मगर जब उसके भीतर जाने की कोशिश करते हैं तो दुनिया भर की कई चीजाें से समानताएं भी पाते हैं। शोध के दौरान देखा था कि अंटार्कटिका के क्वीन एलिजाबेथ नामक क्षेत्र में अंदर पाए गए कुछ पदार्थों भारत और अफ्रीका के भी कुछ क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसी शोध को आगे बढ़ाने के लिए रश्मि वहां पर जा रहीं हैं। मेडिकल जांच के बाद होगा फैसला रश्मि ने बताया कि माइनस डिग्री तापमान पर तीन महीेने तक वहां पर रहेंगी और उन्हें भारत से आने-जाने में करीब दो माह का समय लग जाएगा। हालांकि इसके पहले उन्हें उत्तराखंड के औली में एक माह के कड़े प्रशिक्षण से गुजरेंगी और इसके बाद उन्हें मेडिकल जांच में सफल होने के बाद ही अंटार्कटिका जाने दिया जाएगा। प्रोजेक्ट के सहायक पीआई प्रो. एनवी चलापति राव ने कहा कि अंटार्कटिका पर हमेशा बर्फ जमा रहता है। नवंबर से मार्च तक हाई ड्रिलिंग का कार्य होता है। विभाग के स्कैनिंग इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप और ईपीएमए लैब में यह शोध कार्य हुआ है।

बोले निदेशक : भूविज्ञान के जटिल फील्ड वर्क के चलते कुछ समय पहले तक बच्चियां इस विभाग में प्रवेश ही नहीं लेती थी। पहाड़ों, घाटियाें, पथरीले स्थलों पर आठ-आठ घंटे लगातार काम करना पड़ता था। निश्चित रूप से आज रश्मि और मयूरी का कार्य इस पट्टी की छात्राओं में भी जज्बा भर देगी। प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी निदेशक, विज्ञान संस्थान बीएचयू

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