भारत में शैवाल विज्ञान के जनक के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले व बीएचयू के प्रो. सुरेश्वर सिंह का निधन

भारत में शैवाल विज्ञान के जनक प्रो. आर एन सिंह के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले बीएचयू के अवकाश प्राप्त आचार्य व प्रख्यात वनस्पति विज्ञानी प्रो. सुरेश्वर सिंह का हृदय गति रुकने से निध

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 08:15 PM (IST) Updated:Mon, 13 Jul 2020 12:16 AM (IST)
भारत में शैवाल विज्ञान के जनक के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले व बीएचयू के प्रो. सुरेश्वर सिंह का निधन
भारत में शैवाल विज्ञान के जनक के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले व बीएचयू के प्रो. सुरेश्वर सिंह का निधन

वाराणसी, जेएनएन। भारत में शैवाल विज्ञान के जनक प्रो. आर एन सिंह के कार्यों को आगे बढ़ाने वाले बीएचयू के अवकाश प्राप्त आचार्य व प्रख्यात वनस्पति विज्ञानी प्रो. सुरेश्वर सिंह का हृदय गति रुकने से निधन हो गया। 80 वर्षीय प्रो. प्रसाद नील हरित शैवाल जो वातावरण से सीधे नाइट्रोजन को सोखकर पौधों को उपलब्ध कराकर उत्पादकता को बढ़ा देते हैं, पर काफी गहराई से कार्य किए थे। उनके अनेक उत्कृष्ट व उपयोगी शोधपत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। गुरु में सम्मान में उनकी प्रयोगशाला का नाम प्रो. आरएन सिंह प्रयोगशाला रखा गया था।

शैवाल से हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन के अनुसंधान में भी ले रहे थे रुचि

उनकी प्रयोगशाला को आगे बढ़ाने वाले उनके शिष्य प्रो. आरके अस्थाना ने बताया कि हाल के दिनों वे शैवाल से हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन के अनुसंधान में भी काफी रुचि ले रहे थे। उनके निधन से वनस्पति विज्ञान सहित विज्ञान संस्थान और उनके छात्र छात्राओं, अध्यापकों और मित्रों में शोक की लहर व्याप्त है। कहना है कि एक महान प्रोफेसर दुनिया को अलविदा कह गया। प्रो. सिंह छात्र छात्राओं, सहयोगियों और कर्मचारियों में काफी लोकप्रिय थे। वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. आरएस उपाध्याय, प्रो. मधुलिका अग्रवाल, प्रो. एनके दूबे, प्रो. एसबी अग्रवाल, प्रो. केडी पांडेय, प्रो. आरएन खरवार, प्रो. जे पांडेय, डा. राजन कुमार गुप्त आदि ने उनके निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है।

क्‍या है शैवाल

बता दें कि शैवाल सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परंतु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। 

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