टेली मेडिसीन ओपीडी में परामर्श दे रहे बीएचयू के डाक्टर, एक विभाग में रोजाना अधिकतम 50 लोग ही कर सकते हैं बुकिंग
अप्वाइंटमेंट के लिए पहले आपको वेब पोर्टल http//dexpertsystem.com/Bhu पर जाकर ओपीडी फॉर पब्लिक वाले विकल्प पर क्लिक करना होगा। इसके बाद कैप्चा में लिखे अंकों को भरने के बाद चेक अवलेबिलिटी का पेज खुलेगा। अपने रोग के अनुसार इनमें से किसी एक पर क्लिक कर दीजिए।
वाराणसी, जेएनएन। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच कैंसर और प्रसूति को छोड़कर बीएचयू में अन्य विभागों के लिए टेलीमेडिसीन ओपीडी सेवा चालू की गई, जिसके लिए ऑनलाइन अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है। इसके रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में मरीजों को काफी समस्याएं आती हैं, जिससे वह अंत तक आते-आते उम्मीद छोड़ देते हैं। मगर देखा जाए तो घर में मोबाइल चलाने वाला कोई भी सदस्य आसानी से टेलीमेडिसीन के लिए स्लॉट बुक कर सकता है।
अप्वाइंटमेंट के लिए पहले आपको वेब पोर्टल http://dexpertsystem.com/Bhu पर जाकर 'ओपीडी फॉर पब्लिक' वाले विकल्प पर क्लिक करना होगा। इसके बाद कैप्चा में लिखे अंकों को भरने के बाद चेक अवलेबिलिटी का पेज खुलेगा। इसमें ओपीडी की तीन कटेगरी दंत विज्ञान, मार्डन मेडिसिन और आयुर्वेदिक की दी होती है। अपने रोग के अनुसार इनमें से किसी एक पर क्लिक कर दीजिए। इसके नीचे 'सेलेक्ट डिपार्टमेंट' का विकल्प आएगा, जिसमें मरीज को किस विभाग में या किस विशेषज्ञ को दिखाना है यह जानकारी देनी हाेती है। यह भरने के बाद टेलीमेडिसीन के स्लाट खुल जाते हैं।
ये स्लाट चार अलग-अलग दिन के होते हैं, मरीज अपनी सुविधानुसार अगले दिन का भी स्लॉट प्राप्त का सकते हैं। एक स्लॉट पर क्लिक करने के बाद मरीज का विवरण और आधार नंबर आदि मांगे जाते हैं। इन्हें भरकर 'कांटीन्यू बटन' प्रेस कर देते हैं, जिसके बाद भुगतान का विकल्प खुल जाता है। अपने क्रेडिट या डेबिट कार्ड से बीस रुपये का भुगतान करने के बाद सीट स्वत: ही बुक हो जाती है। इसके बाद अस्पताल से डाक्टर ही मरीज को फोन कर उसकी समस्याओं के बारे में पूछते हैं। वहीं डिटेल में जानकारी के लिए मरीज डाक्टर के वाट्सएप पर भी समस्याएं लिखकर भेज सकता है। इसके बाद मरीज को आवश्यक दवाइयों के नाम वाट्सएप या फोन कॉल के जरिए दे दी जाती हैं। इस टेलीमेडिसीन द्वारा किसी-किसी विभाग में एक दिन में अधिकतम 50 लोग रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं, वहीं किसी-किसी विभाग में दो से तीन लोग ही बुक करा रहे हैं। वहीं कई बार ऐसा भी सुनने में आता है कि मरीज ही फोन नहीं करते।