Bhagat Singh Birth Anniversary : शचींद्रनाथ सान्याल ने काशी में कराई आजादी के संग भगत सिंह की सगाई

लोगों को भला क्या मालूम कि इसके कुछ दिन पहले ही संक्षिप्त काशी प्रवास में ग्राम बंगा (लायलपुर अब पाकिस्तान में) का यह गंवई नौजवान अपने प्रेरणा पुरुष शचींद्रनाथ सान्याल से दीक्षा पा चुका था। उनके ही कहने पर क्रांतिकारी दल की शपथ उठाकर आजादी से सगाई रचा चुका था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 08:50 AM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 05:54 PM (IST)
Bhagat Singh Birth Anniversary : शचींद्रनाथ सान्याल ने काशी में कराई आजादी के संग भगत सिंह की सगाई
भगत सिंह (जन्म 28 सितंबर 1907 शहादत 23 मार्च 1931)

वाराणसी, कुमार अजय। बात सन 1923 की है। भगत सिंह (जन्म 28 सितंबर 1907 शहादत 23 मार्च 1931) एफए पास कर नेशनल कालेज लाहौर में बीए प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में प्रवेश ले चुके थे। तभी वक्त ने उन्हें अजीब से उलझाव वाले दोराहे पर ला खड़ा किया। हुआ यह कि घर की मालकिन और स्वभाव से डिक्टेटर उनकी दादी जय कौर ने अपने लाडले भगत सिंह के विवाह की दुुंदुभी (शहनाई) बजा दी थी। भगत सिंह से भी बड़ी दुविधा की स्थिति थी पिता सरदार किशन सिंह के लिए। वे कैशोर्य से ही मृत्यु सुंदरी का वरण कर चुके भगत सिंह के मनोभावों से पहले से ही परिचित थे। दूसरी ओर एक बार जो कह दिया सो कह दिया कि टेक वाली माता जय कौर का खुला फरमान।

असमंजस की स्थिति को बयां किया है सरदार भगत सिंह के छोटे भाई सरदार कुलतार सिंह की बेटी वीरेंद्र सिंधु ने अपनी पुस्तक 'युग दृष्टा भगत सिंह के एक उद्धरण में। घर के बड़े-बूढ़ों की कही-सुनी के आधार पर वे जब उस खास दिन का जिक्र करती हैं तो जन्मना विद्रोही भगत सिंह का एक अलग ही मस्तमौला चरित्र उभर कर सामने आता है। सिंधु लिखती हैं उस दिन उसी इलाके के एक बहुत अमीर आदमी अपनी बहन के लिए भगत सिंह को देखने आए थे। भगत उस दिन बहुत प्रसन्न रहे, उछलते-कूदते रहे और यहां तक कि अपने तांगे में स्वयं घोड़ी नाथकर तांगा हांकते हुए मेहमानों को छोडऩे के लिए लाहौर गए। लड़की वालों को भगत सिंह पसंद आ गए थे। वे सगाई की तारीख भी तय करते गए थे, यानी किसी को आभास तक नहीं हुआ कि परिणय संबंध के लिए उत्सुक नजर आ रहे इस क्रांतिवीर के दिलो-दिमाग में उस समय कैसा तूफान हाहाकार मचाए हुआ था। लोगों को भला क्या मालूम कि इसके कुछ दिन पहले ही संक्षिप्त काशी प्रवास में ग्राम बंगा (जिला लायलपुर अब पाकिस्तान में) का यह गंवई नौजवान अपने प्रेरणा पुरुष शचींद्रनाथ सान्याल से दीक्षा पा चुका था। उनके ही कहने पर क्रांतिकारी दल की शपथ उठाकर आजादी से सगाई रचा चुका था।

सच कहें तो घरेलू सगाई के इस चर्चा ने सही मायनों में भगत के मन की हिचक की सारी बेडिय़ां तोड़ दी थीं। अब देश की आजादी का जुनून लिए एक और विप्लवी क्रांति की अग्निपथ की यात्रा के लिए कदम बढ़ा चुका था। अपने नायक शचींद्रनाथ सान्याल के इस वचन को अपना संकल्प बना चुका था। शचींद्र ने बिना लाग लपेट भगत से कहा था (उन्हीं के शब्दों में)... 'क्या तुम घर-बार छोडऩे को तैयार हो। यदि तुम शादी कर लोगे तो आगे चलकर अधिक काम करने की आशा तुमसे नहीं रहेगी। यदि तुम घर पर रहते हो तो तुम्हें शादी करनी ही पड़ेगी। मैं नहीं चाहता कि तुम शादी करो। मेरी इच्छा है कि मैं जहां कहूं वहीं रहने लग जाओ...। भगत सिंह ने बगैर किसी हिचक के घर छोड़ कर रहने की यह शपथ उठा ली। सगाई की निश्चित तिथि से पहले वे लाहौर गए और वहां से जाने कहां फरार हो गए। भगत दूर... हमसे बहुत दूर चला गया है। इसका पता घर वालों को तब लगा जब उनके पिता की मेज की दराज से एक पत्र मिला। जिसकी इबारत थी-

पूज्य पिताजी नमस्ते

मेरी जिंदगी मकसदे आला यानी आजादी-ए-हिंद के उसूलों के वास्ते वक्फ हो चुकी है, इसलिए मेरी जिंदगी में आराम व दुनियावी ख्वाहिशात बायसे कोशिश नहीं है। आपको याद होगा जब मैं बहुत छोटा था तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त एलान किया था कि मुझे खिदमते वतन के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं इस प्रतिज्ञा को पूरा कर रहा हूं। उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएंगे।

आपका ताबेदार

भगत सिंह

यह दौर था 1923 का बाद में सूत्रों से पता चला कि भगत अपने साथियों के साथ कानपुर में प्रताप अखबार निकाल रहे थे।

यह घड़ी गिनेगी पलछिन आएगा आजादी का शुभ दिन

शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती की पूर्व संध्या पर अमर बलिदानी के भांजे अवकाश प्राप्त कृषि विज्ञानी प्रो. जगमोहन सिंह ने दैनिक जागरण के साथ क्रांतिवीर भगत सिंह को नमन किया। सेलफोन पर लुधियाना से हुई बातचीत में अपने मामा कि कुछ स्मृतियों को साझा करते हुए प्रो. जगमोहन ने उस अनमोल जेब घड़ी का जिक्र किया। जो कभी शचींद्रनाथ ने उन्हें संभवत: बनारस में भेंट की थी। प्रो. सिंह ने बताया कि प्रो. शचींद्रनाथ सान्याल ने यह घड़ी महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस को भेंट करने की खातिर रख छोड़ी थी। पर हर घड़ी आजादी के दिन का पल छिन गिनने वाले भगत को उन्होंने इसका असली हकदार माना और स्टैंडर्ड वाच कंपनी की यह जेब घड़ी भगत की जेब में जाते ही एक राष्ट्रीय धरोहर बन गई।

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