बभनियांव उत्खनन में जल्दबाजी नहीं बल्कि बारीक नजर की जरूरत, संयम पर दल का जोर ज्‍यादा

वाराणसी जिले के बभनियांव में पुरातात्विक अवशेषों का उत्खनन काफी रचनात्मक और संयमित तरीके से किया जा रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Fri, 28 Feb 2020 02:56 PM (IST) Updated:Fri, 28 Feb 2020 06:25 PM (IST)
बभनियांव उत्खनन में जल्दबाजी नहीं बल्कि बारीक नजर की जरूरत, संयम पर दल का जोर ज्‍यादा
बभनियांव उत्खनन में जल्दबाजी नहीं बल्कि बारीक नजर की जरूरत, संयम पर दल का जोर ज्‍यादा

वाराणसी, जेएनएन। बभनियांव में प्राचीन संस्कृति के प्रमाण मिलने की सूरत में तीन दिन से खोदाई चल रही है। इस बीच ग्रामीणों ने देखा कि पुरातात्विक अवशेषों का उत्खनन काफी रचनात्मक व संयम तरीके से किया जा रहा है। इस पर उत्खनन दल के विशेषज्ञों ने बताया कि कई बार दिन भर मेहनत करने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता, क्योंकि पुरा वस्तुओं के अनुमानों पर ही उत्खनन होता है। इसलिए इस कार्य में सबसे ज्यादा जरूरत धैर्य की होती है। खोदाई के वक्त समय का नहीं, बल्कि मिट्टी पर सूक्ष्म नजर व खोदाई के उपकरणों पर ध्यान रखना पड़ता है।

इस तरह की खोदाई में कुदाल व फर्से का उपयोग यदा-कदा ही मिट्टी उठाने के लिए होता है। उत्खनन में खुरपी, ब्रश, स्क्रैपर, गेंती जैसे खोदाई के हल्के उपकरणों का ही अधिकतर प्रयोग करते हैं। क्योंकि कोई पुरातात्विक वस्तु पर अगर तेजी से वार हो जाए, तो पुरावशेष मिट्टी में ही ध्वस्त हो जाएंगे और दिन भर की मेहनत शून्य हो जाएगी। शुक्रवार को भी हालांकि परिसर में खनन किया गया और देर शाम तक दीवार सहित कई हिस्‍से खनन में मिले। 

निकाली गई मिट्टी को रखते हैं सुरक्षित

विशेषज्ञों ने बताया कि साइट से निकाली गई मिट्टी को सुरक्षित रखा जाता है व खोदाई बंद होने पर निकाली गई मिट्टी को वापस से गड्ढे में भर दिया जाता है। वहीं साइट पर सावधानियां बरतने की बात करते हुए दल के सदस्यों ने बताया हुए 4&4 मीटर के इस वर्गाकार साइट को पहले रस्सी से घेर दिया गया है। इसके बाद उत्खनन का काम इतनी बारीकी से अंजाम दिया जाता है कि इसमें मिले पुरावशेषों ऐसे लगे, मानो वे खोद कर नहीं, बल्कि वहीं पर हूबहू मौजूद थे। इस पर बात करते हुए विशेषज्ञों ने बताया कि खोदाई में अगर उपकरण थोड़ा भी इधर-उधर चल जाता, तो साक्ष्यों के आकलन में कई मुश्किलें आतीं।

फोटोग्राफी व वीडियो रिकार्डिंग भी कराई गई

खोदाई के दूसरे दिन से ही विभाग द्वारा फोटोग्राफी व वीडियो रिकार्डिंग भी कराई गई। वहीं साइट पर विशेषज्ञों द्वारा कई तकनीकी शब्दों का भी इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसमें ट्रेंच, क्रास सेक्शन, स्केच आदि शामिल थे। जिनके मतलब इस प्रकार है।

ट्रेंच - अवशेषों के अनुमान में खोदा गया स्थान।

क्रास सेक्शन - साइट में मिले पुरावशेषों की गहराई, लंबाई व चौड़ाई की थाह लगाने में, जिससे अनुमानों की प्रमाणिक पुष्टि हो सके।

स्केचिंग- विशेषज्ञों द्वारा खोदाई में मिलीं दीवारों व भट्टी की जो रेखाचित्र खींची जा रही थी, वहीं स्केचिंग है। इससे पुरावशेषों का ऐतिहासिक साक्ष्यों व साहित्य द्वारा विश्लेषण करने में मदद मिलती है।

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