Ayurved में पाइल्स का सबसे कारगर इलाज, आयुर्वेदाचार्य देते हैं इन घरेलू उपायों का सुझाव

खाने पीने की गड़बड़ी खराब दिनचर्या के कारण अधिकांश लोग पाइल्स यानी बवासीर से पीड़ित होते हैं। खाने-पीने की घटिया आदतों तथा सक्रियता कम होने के कारण युवा पुरुषों तथा महिलाएं जो अपना अधिकतर समय आफिस में बैठ कर बिताते हैं में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है।

By Abhishek sharmaEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 01:04 PM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 05:53 PM (IST)
Ayurved में पाइल्स का सबसे कारगर इलाज, आयुर्वेदाचार्य देते हैं इन घरेलू उपायों का सुझाव
खराब दिनचर्या के कारण अधिकांश लोग पाइल्स यानी बवासीर से पीड़ित होते हैं।

वाराणसी, जेएनएन। खाने पीने की गड़बड़ी, खराब दिनचर्या के कारण अधिकांश लोग पाइल्स यानी बवासीर से पीड़ित होते हैं। खाने-पीने की घटिया आदतों तथा सक्रियता कम होने के कारण युवा पुरुषों तथा महिलाएं, जो अपना अधिकतर समय आफिस में बैठ कर बिताते हैं, में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है। इस कारण ऊतकों तथा रक्त वाहिनियों में सूजन हो जाती है। चौकाघाट स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय वाराणसी के कायचिकित्सा विशेषज्ञ डा. अजय कुमार इसके इलाज में आयुर्वेद विधि को ही सबसे कारगर मानते हैं।

क्या है अर्श (बवासीर) के कारण कारण

1. काफी पुराना गंभीर डायरिया या कब्ज 

2. भोजन में फाइबर की कमी 

3. अत्यधिक मोटापा 

4. गर्भावस्था 

5. टॉयलेट में लम्बे समय तक बैठना 

अर्श के लक्षण

1. पेट साफ करने के दौरान दर्द रहित रक्तस्राव 

2. गुद भाग में खारिश या दर्द 

4. गुद के पास एक दानेदार उभर जो दर्दनाक  तथा संवेदनशील हो सकता है।

बवासीर को कैसे रोकें

1. फाइबर की उच्च मात्रा वाले भोजन का सेवन करें।

2. पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ पिएं।

3. भोजन के पहले वाक या कसरत करें।

4. शौच करने के लिए अधिक जोर न लगाएं।

इलाज की व्‍यवस्‍था

आयुर्वेद में अर्श (बवासीर) का इलाज़ हजारों सालों से होता रहा है। आचार्य सुश्रुत ने इसके इलाज के लिए औषधि के अलावा शस्त्र, क्षार और अग्निकर्म जैसे बहुत से चिकित्सा विधियों का उलेख है। प्रारंभिक अवस्था मे सिर्फ औषधि से ही रोग ठीक हो जाता है लेकिन रोग के जीर्ण हो जाने पर और भी उपायों से चिकित्सा की जाती है। इसकी चिकित्सा में आयुर्वेद में वर्णित लैक्जेटिव जैसे षटसकार चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, जैसे द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अर्शकुठार रस, त्रिफला गुगुल का भी प्रयोग किया जाता है।

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