अगस्त क्रांति : सर्व विद्या की राजधानी ने 1942 में लिखी थी एक क्रांति की सफल कहानी

अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय सर्व विद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने इतिहास के पन्नों पर एक सफल क्रांति की कहानी लिखी थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 08:00 AM (IST) Updated:Sun, 09 Aug 2020 02:48 PM (IST)
अगस्त क्रांति : सर्व विद्या की राजधानी ने 1942 में लिखी थी एक क्रांति की सफल कहानी
अगस्त क्रांति : सर्व विद्या की राजधानी ने 1942 में लिखी थी एक क्रांति की सफल कहानी

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। अगस्त, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय सर्व विद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने इतिहास के पन्नों पर एक सफल क्रांति की कहानी लिखी थी। वह कहानी भारत छोड़ो आंदोलन के लिए देश में आज भी एक निशानी (नजीर) के तौर पर है। महात्मा गांधी के उद्घोष करो या मरो को बीएचयू के छात्र और छात्राओं ने अपने ह्रदय में अंकित कर अंग्रेजी सेना को बनारस व पूर्वांचल सहित पूरे संयुक्त प्रांत में पस्त कर दिया था। आंदोलन की शुरूआत भले ही 9 अगस्त, 1942 को बंबई (मुंबई) से हुई हो लेकिन बीएचयू में बिरला छात्रावास के छात्र उससे पहले ही आंदोलन की रूपरेखा तय कर चुके थे। बीएचयू और बीएचयू के ही इंजीनियरिंग कॉलेज बेनको से निकला छात्रों का हूजूम भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर अंग्रेजों को संयुक्त प्रांत छोडऩे को मजबूर कर दिया था।

बिरला छात्रावास के मेस में होती थी गुप्त बैठकें

सात अगस्त को बीएचयू के बिरला छात्रावास के मेस में छात्रों की एक गुप्त सभा प्रो. कौशिल्यानंद गैरोला के नेतृत्व में आयोजित हुई, जिसमें सभी छात्रों को नगर के चप्पे-चप्पे पर आंदोलन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी तय की गई। इसके बाद गुरिल्ला संगठन बनाकर ज्यादातर छात्रों ने भूमिगत होकर आंदोलन की शुरूआत कर दी। बनारस और आसपास के नगरों में समस्त संचार माध्यमों, पुलिस स्टेशन और रेलवे को तितर-बितर कर दिया।

बीएचयू के छात्र राजनारायण पर रखे पांच हजार के ईनाम

राजनारायण जिन्होंने इंदिरा गांधी को संसदीय चुनाव में रायबरेली सीट से हराया था वह उस दौरान छात्र कांग्रेस के अध्यक्ष थे, उन्होंने इस क्रांति का मशाल अपने हाथ में लेकर पूरे पूर्वांचल में अंग्रेजों के दात खट्टे कर दिये। बिलबिलाए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें ङ्क्षजदा या मुर्दा पकडऩे के लिए पांच हजार रुपयों का इनाम रख दिया। जगह-जगह क्रांति की ज्वाला भड़काने के बाद वह ङ्क्षसतबर के अंत में पकड़े गए और 1945 में रिहा भी हो गए।

अंग्रेजों ने मालवीय जी के भवन को घेर लिया था चारों ओर से

विश्वविद्यालय में बढ़ती क्रांतिकारी गतिविधियों को देखते  हुए अंग्रेजी सेना ने बीएचयू की घेरेबंदी कर मालवीय जी और कुलपति डा. राधाकृष्णन के आवास को चारों ओर से घेर लिया।  जिसके बाद ब्रिटिश सेना द्वारा परिसर में छावनी बनाने की कोशिशें की गई, महीनों बीएचयू में फौज का पहरा लगा रहा। सेना द्वारा महिला और पुरुष छात्रावास बर्बतापूर्वक  खाली करा बीएचयू पर कब्जे का संदेश वायसराय को भेजवा दिया गया। हालांकि मालवीय जी के जोर लगाते ही ब्रिटिश सेना अधिक दिनों तक विवि मेें डेरा डाले नहीं रह पाई और पीछे हटना पड़ा। इस दौरान बनारस से लगभग 32 हजार छात्रों को स्कूल-कालेज से बाहर खदेड़ दिया गया। छात्रावास से निकले छात्र अपने-अपने गांव में ही संगठन बनाकर क्रांति शुरू कर दी। धीरे-धीेरे यह भारत छोड़ो आंदोलन का यह स्वरूप पूरे संयुक्त प्रांत में आग की तरह फैल गया। छात्रों का एक दल देवरिया और गोरखपुर पहुंचकर वहां के स्थानीय छात्रों के साथ रेलवे -स्टेशन पर धावा बोल उसे क्षतिग्रस्त कर दिया।

बेनको के छात्रों ने गंगा नदी में हथियार कर दिए प्रवाहित

छात्रों ने बनारस पुलिस स्टेशन को घेर उसमें आग लगा दी और पुलिस वालों को मारकर उनके शव आग के हवाले कर दिए गए। बेनको के 11 छात्रों ने मीरजापुर में रेलवे, डाक और पुलिस थानों में आग लगा दी। वहीं बेनको का दूसरा दल गंगा के रास्ते नांव पर सवार होकर निकला लेकिन चुनार में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी से पूर्व इन छात्रों ने अपने हथियार गंगा में ही प्रवाहित कर दिए थे, जिससे अंग्रेजों के हाथ न लगे। वहीं बेनको कॉलेज से अंग्रेजी सेना ट्रक में लादकर जहरीले रसायन शस्त्र इत्यादि बनाने के लिए ले जा रही थी, जिसे देख छात्रों का दल आग-बबूला हो गया और उस ट्रक के आगे लेटकर अंग्रेजों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

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