अगस्त क्रांति : बलिया के द्वाबा में 1942 के आजादी की जंग में पहली बार आज ही के दिन लहराया था थाने पर तिरंगा

अगस्त क्रांति बलिया के द्वाबा में 1942 के आजादी की जंग में पहली बार आज ही के दिन लहराया था थाने पर तिरंगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Fri, 14 Aug 2020 02:43 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 03:26 AM (IST)
अगस्त क्रांति : बलिया के द्वाबा में 1942 के आजादी की जंग में पहली बार आज ही के दिन लहराया था थाने पर तिरंगा
अगस्त क्रांति : बलिया के द्वाबा में 1942 के आजादी की जंग में पहली बार आज ही के दिन लहराया था थाने पर तिरंगा

बलिया [लवकुश सिंह] ।आजादी की जंग में बलिया के वीर जवानों के किरदार को भुलाया नहीं जा सकता। बलिया में नौ अगस्त को शुरू हुई क्रांति ज्वाला धीरे-धीरे धधकने लगी थी। 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में मुंबई में नेताओं की गिरफ्तारी के बाद बलिया में कांग्रेस के नेताओं को पकड़ा भी गया। इसके बाद जिले भर के कांग्रेसियों ने इकटठा होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जगह-जगह इकटठा होकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था।

पीछे नहीं हटने की द्वाबा के वीरों ने ली शपथ

आंदोलन के क्रम में ही 12 अगस्त लालगंज और 13 अगस्त 1942 को दोकटी में एलान हुआ कि 14 अगस्त को बैरिया थाने पर कब्जा किया जाएगा। इस संदर्भ में 14 अगस्त को क्षेत्र नायक के नेतृत्व में बजरंग आश्रम बहुआरा पर 300 लोग इकटठा हुए और झंडाभिवादन कर शपथ ली कि हम बैरिया थाने पर कब्जा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। इसके बाद बहुआरा गांव निवासी भूप नारायण ङ्क्षसह को इन लोगों ने अपना कमांडर नियुक्त किया और बैरिया की तरफ बढ़ गए। बहुआरा गांव निवासी रामजन्म पांडेय ने अगुआई की और वहां से थाने की ओर चल दिए। उनके पीछे पूरा जनमानस उमड़ पड़ा। थाने पर पहुंचकर कमांडर भूपनारायण सिंह और कुछ उनके साथी अंदर गए और तत्कालीन थानाध्यक्ष काजिम हुसैन के पास पहुंच वहां से जाने को कहा। थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने कहा कि मैंने आप लोगों का अधीनता स्वीकार कर ली है, चाहें तो अपना तिरंगा आप थाने पर लहरा दीजिए, मुझे चार दिन का मोहलत दीजिए। मैं और सिपाही अपने परिवार सहित यहां से चले जाएंगे। इस तरह 14 अगस्त 1942 को ही बिना खून-खराबे के बावजूद ही भारतीय तिरंगा बैरिया थाने पर पहली बार फहरा दिया गया, लेकिन सेनानियों के वहां से जाने के बाद पुन: थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने उसे हटा दिया। इसका बदला चुकाने की तारीख 18 अगस्त तय र्हुइ।

बोले स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र, अब नहीं कोई पूछनहार

बहुआरा गांव के निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भूपनारायण सिंह के पुत्र अजय मोहन सिंह ने बातचीत में बताया कि स्वतंत्रता सेनानी भूप नारायण सिंह मेरे पिता थे। उनके अलावा मेरे बड़े पिता जी हरदेव सिंह, चाचा परशुराम सिंह, शिवप्रसाद सिंह, शिवनारायण सिंह और सुदर्शन सिंह कुल पांच लोग आजादी की उस जंग में महत्वपूर्ण किरदार निभाए थे, लेकिन आज के परिवेश में सेनानियों के परिजनों की कोई पूछ नहीं है। यह देख बड़ा अजीब लगता है। फिर भी गर्व है मुझे कि मै उनके खून का हिस्सा हूं।

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