छठ महापर्व 2021 : काशी में भगवान भाष्‍कर की लालिमा दिखते ही शुरू हो गया अर्घ्यदान

भोर होने के साथ पूजा घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं बची थी। अर्घ्यदान के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगा उनके अमर सुहाग की कामना की। परिवार के साथ ही घाट पर पहुंचे अपने आसपास के लोगों को टीका लगाकर प्रसाद दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Thu, 11 Nov 2021 11:04 AM (IST) Updated:Thu, 11 Nov 2021 11:04 AM (IST)
छठ महापर्व 2021 : काशी में भगवान भाष्‍कर की लालिमा दिखते ही शुरू हो गया अर्घ्यदान
वाराणसी में भोर होने के साथ पूजा घाटों पर तिल रखने भर की जगह नहीं बची थी।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। भगवान भास्कर के इंतजार में बैठीं  व्रतियों की तपस्या उस समय पूरी होने लगी जब आसमान से भगवान भाष्‍कर ने झांकना शुरू किया। लालिमा दिखते ही घाटों पर जयकारा लगने लगा और शुरू हाे गया अर्घ्यदान। भोर होने के साथ पूजा घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं बची थी। अर्घ्यदान के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगा उनके अमर सुहाग की कामना की। परिवार के साथ ही घाट पर पहुंचे अपने आसपास के लोगों को टीका लगाकर प्रसाद दिया। उम्र और पद का ध्यान रखते हुए श्रद्धालुओं ने व्रतियों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

इससे पहले शहर से लेकर गांव तक की सड़कें आधी रात के बाद से ही गुलजार हो गई थीं। सबके मन में एक ही इच्छा थी कि छठ मइया की पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद प्रात कर लें। भोर से पहले ही गूंजने लगे थे छठ मइया के गीत तो वहीं मन्नत के अनुसार बज रहे थे ढोल-नगाड़े। कुछ लोगों ने समय से उठने के लिए मोबाइल में अलार्म सेट कर दिया गया था। आधी नींद भी पूरी नहीं हुई थी अलार्म बजने लगा और आंखें खुल गई। खुलती भी क्यों नहीं, उदयारूढ़ भगवान भास्कर को अर्घ्यदान करना था। रात में ठंड तो बहुत रही, लेकिन उसके बाद भी लोगों ने स्नान किया और साफ वस्त्रों को धारण कर कदम बढ़ाने लगे नदी व सरोवरों की ओर। घाटों पर पहुंचे लोगों में सूर्य के उगने को लेकर बेताबी थी। व्रतियों द्वारा गए गाए जाने वाले गीत ‘जल्दी-जल्दी उगा हे सुरुज देव भइलें अरघ के बेर...’ इस बेताबी को बयां कर रही थी।

व्रती महिलाओं के साथ चलने वाले वयस्क व बच्चों के सिर पर पूजा के सामान थे तो साथ जा रही महिलाएं छठ मइया के भजन गा रही थीं। हाथों में कलश और उस पर जलते दीपक के साथ घरों से निकलीं व्रती महिलाओं को देखने के बाद लग रहा था मानों रात के अंधेरे में देवियां सड़क पर निकल पड़ी हों। इस दौरान गंगा नदी और सरोवरों में दीपदान ने अद्भुत छटा बिखेरी। लग रहा था मानों आसमान के तारे जल में उतर आए हों। सूर्योदय का समय नजदीक आने के साथ घाटों पर भीड़ बढ़ती गई। लग रहा था समूचा जनमानस घाटों पर ही जमा हो गया हो।

अर्घ्य के लिए समय से पहले लोग दूध की व्यवस्था में जुट गए थे, तो वहीं कुछ स्थानों पर पूजा कमेटियों ने मुफ्त दूध की व्यवस्था की थी। इससे पहले घाटों पर पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अपनी बेदी के पास रंगोली बनाया, सूप में एक दिन पहले चढ़ाए गए ठोकवा, पुआ आदि को बदलकर ताजा रखा। उसके बाद सूप को पूरब दिशा की ओर रखा गया। फिर जल में खड़ी होकर व्रती महिलाओं ने सूर्य की लालिमा दिखने तक तपस्या की। भगवान भाष्‍कर के सिंदूरी रंग के दर्शन के साथ अर्घ्य शुरू हो गया। इस दौरान नदी व सरोवरों के घाटों पर छठ मइया से जुड़े गीतों से वातावरण गूंजता रहा।

खास बात यह रही कि जिनके घर यह पूजा नहीं होती है उनकी भी नींद खुल गई थी। कारण कि एक तरफ जहां घर से निकलकर रास्ते भर छठ मइया के गीत गाए जा रहे थे, वहीं कुछ महिलाएं मन्नतों के पूरा होने के उपलक्ष्य में बाजे-गाजे के साथ पूजा के लिए घर से जा रही थीं। पहले व्रती महिला तथा उसके बाद परिवार के सदस्य तथा अन्य श्रद्धालुओं ने दुग्ध का अर्घ्य दिया। अर्घ्यदान के बाद परिचित महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर उनके अमर सुहाग की कामना की। घर पहुंचकर महिलाओं ने चौखट की पूजा की और उसके बाद वेदी पर चढ़ाए गए चने को निगलकर पारण किया।

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