तीन माह में एंटीबॉडी खत्म तो आई कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर, सीरो सर्विलांस के तहत 75 लोगों पर शोध

बीएचयू में हुआ एक शोध बताता है कि एंटीबॉडी तीन ही महीने में खत्म हो गई। एक सीरो सर्वे के तहत यह जानकारी सामने आई है कि के तीन माह बाद पहली लहर में बनारस के सौ संक्रमितों में से महज सात लोगों में ही एंटीबॉडी बची है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 08:23 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 08:23 PM (IST)
तीन माह में एंटीबॉडी खत्म तो आई कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर, सीरो सर्विलांस के तहत 75 लोगों पर शोध
तीन माह बाद पहली लहर में बनारस के सौ संक्रमितों में से महज सात लोगों में ही एंटीबॉडी बची है।

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। कोरोना की दूसरी लहर एक सुनामी की तरह से आई और पिछली लहर में संक्रमित हुए लोगों को दोबारा से अपने जद में कर लिया। देश भर के वैज्ञानिक एंटीबाॅडी और हर्ड इम्युनिटी से दूसरी लहर को रोकने की दुहाई दे रहे थे, मगर दांव उलट सा गया। अब बीएचयू में हुआ एक शोध बताता है कि एंटीबॉडी तीन ही महीने में खत्म हो गई। एक सीरो सर्वे के तहत यह जानकारी सामने आई है कि के तीन माह बाद पहली लहर में बनारस के सौ संक्रमितों में से महज सात लोगों में ही एंटीबॉडी बची है।

अमेरिका के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'साइंस' में बीएचयू का यह शोध पत्र प्रकाशित हो चुका है। इसके अनुसार पिछले साल नवंबर तक जिन लोगों में 40 फीसद तक एंटीबॉडी थी, उनमें मार्च तक महज चार फीसद ही शेष है। वहीं कोरोना की पहली लहर में असिंप्टौमैटिक मरीजों की संख्या बहुत ही अधिक थी, इसलिए उनमें एंटीबॉडी नाममात्र का बना। जिस कारण ये लोग भी दूसरी लहर की चपेट से नहीं बच पाए। पहली लहर में संक्रमण रहित लोग कोरोना के सबसे साफ्ट टारगेट बने और मौतें भी इन्हीं की सबसे अधिक हुईं।

बीएचयू के साइटोजेनेटिक्स और ज्ञान लैब में जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और युवा वैज्ञानिक प्रज्जवल प्रताप सिंह ने मिलकर इस पूरे शोध को अंजाम दिया है, जिसमें देश भर से करीब 75 वैज्ञानिकों का सहयोग मिला। अब इस शोध से साबित होता है कि महज संक्रमण बढ़ने से हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हो सकती, इसके लिए वैक्सीन बेहद अहम हथियार है।

दोबारा संक्रमित लोगों को खतरे कम

चिकित्सा विज्ञान कहता है कि मानव शरीर में कोई भी एंटीबॉडी छह माह से अधिक समय तक नहीं रह सकती। मगर तीन माह में एंटीबॉडी खत्म हो जाएगी ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। हालांकि प्रो. चौबे का कहना है कि एंटीबाडी खत्म होना कोई खतरे की बात नहीं है, क्योंकि एक बार संक्रमित हुए लोगों की इम्युनिटी में 'मेमाेरी बी' सेल का निर्माण हो गया है। यह सेल नए संक्रमण की पहचान कर व्यक्ति की प्रतिरोधकता को सक्रिय कर देता है। इसलिए जो पिछले बार संक्रमित हुए थे, वे इस लहर में आसानी से पार पा लिए, मगर जो नहीं हुए थे उनमें मृत्युदर सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

प्रो. चौबे ने बताया कि भारत में वैज्ञानिकों ने ऐसा आकलन किया था कि जून, 2021 तक शरीर में एंटीबाॅडी रहेगी, तो दूसरी लहर अगस्त तक आ सकती है और तब तक बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन का कार्य पूरा कर लिया जाता। मगर, यह आकलन असफल रहा और कोराेना का दूसरी लहर ने विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी।

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