पुण्यतिथि : मोक्ष की आस में एनी बेसेंट की अस्थियों काे काशी में किया गया था प्रवाहित
20 सितम्बर 1933 को मद्रास में श्रीमती एनी बेसेंट का निधन हो गया। हिंदू धर्म में उनकी आस्था थी लिहाजा मां गंगा के आंचल में ही उनकी अस्थियां प्रवाहित की गईं।
वाराणसी । देश की आजादी के साथ ही सामाजिक सरोकारों को भी निभाने की कई कहानियां आज इतिहास का हिस्सा हैं। इसी कड़ी में विदेशी महिला एनी बेसेंट के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता जिन्होंने भारत में बुनियादों को समृद्ध करने के लिए न सिर्फ शिक्षा की अलख जगाई बल्कि देश की आजादी के लिए भी अनोखे काम किए। उनका विदेशी मूल का होना भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में एक स्वर्णिम योगदान के तौर पर आज भी स्वीकारा जाता है। बनारस में भी उनके प्रयायों से शिक्षा मंदिरों की स्थापना को बल मिला और पूर्वांचल में आज भी काशी शिक्षा का बड़ा केंद्र माना जाता है तो एनी बेसेंट के प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता।
आयरलैंड से भारत तक का सफर
भारत से खासा लगाव रखने वाली श्रीमती एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन में हुआ था। उनके पिता एक चिकित्सक थे, वहीं उनकी मां घरेलू महिला थीं। एनी बेसेंट का विवाह तो हुआ लेकिन लंबे समय तक नहीं चल सका। वर्ष 1873 में क़ानूनी तौर पर उन्होंने पति से तलाक ले लिया और अलग हो गईं। धर्म के प्रति उनका लगाव भी धीरे धीरे कम होता गया और वह परिवार से अलग होने लगीं। भारतीय थियोसोफिकल सोसाइटी के एक सदस्य से जान परिचय की वजह से वह 1893 में भारत पहुंचीं। यहां आने के बाद उन्होंने पूरे देश का भ्रमण कर सामाजिक रूपरेखा का अध्ययन किया और ब्रिटिश हुकूमत की उपेक्षाओं का भी उन्होंने बारीकी से अध्ययन किया। सामाजिकता से लबरेज एनी बेसेंट ने भारतीयों के हित के लिए संघर्ष करने की जिद पाली और मरते दम तक भारतीयता के कलेवर को जिया।
काशी के लिए योगदान
भारत की स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने के बाद वह वर्ष 1917 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला अध्यक्ष बनीं। इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थीं। इस दौरान उन्होंने न्यू इंडिया समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया और सरकार की आलोचना के बाद उनको कारावास की सजा भी हुई। महात्मा गांधी जी और एनी बेसेंट के बीच किन्हीं वजहों से जब मतभेद पैदा हुए तो उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। एनी बेसेन्ट एक समाज सुधारक होने के साथ एक लेखिका भी थीं। उनको भगवद्गीता से लगाव था जिसका उन्होंने अंग्रेजी-अनुवाद भी किया। बीएचयू की स्थापना को लेकर मालवीय जी के साथ उन्होंने रूपरेखा भी तैयार की थी। लिहाजा यहां शिक्षा मंदिर की स्थापना में उनका योगदान मालवीय जी के समानांतर ही माना जाता है।
काशी में मोक्ष की कामना
20 सितम्बर वर्ष 1933 को अड्यार (मद्रास) में श्रीमती एनी बेसेंट का निधन हो गया। हिंदू धर्म में उनकी काफी आस्था थी लिहाजा उनकी इच्छा थी कि मां गंगा के आंचल में ही उनकी अस्थियां प्रवाहित की जाएं। इसलिए उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अस्थियों को बनारस में गंगा की धारा में प्रवाहित किया गया।