भारतीय संस्कृति की पहचान हैं अखाड़े, भाजपा की गुरुवारीय अड़ी में बोले बीएचयू के खेल निदेशक

बीएचयू के खेल निदेशक प्रो बीसी कापरी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की पहचान अखाड़े हैं। भारत में ऋषि मुनियों के समय से ही शारीरिक बलिष्ठता प्राप्त करने के लिए अखाड़े होते थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Thu, 16 Jul 2020 10:00 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jul 2020 01:04 AM (IST)
भारतीय संस्कृति की पहचान हैं अखाड़े, भाजपा की गुरुवारीय अड़ी में बोले बीएचयू के खेल निदेशक
भारतीय संस्कृति की पहचान हैं अखाड़े, भाजपा की गुरुवारीय अड़ी में बोले बीएचयू के खेल निदेशक

वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू के खेल निदेशक प्रो बीसी कापरी ने कहा कि भारतीय संस्कृति की पहचान अखाड़े हैं। भारत में ऋषि, मुनियों के समय से ही शारीरिक बलिष्ठता प्राप्त करने के लिए अखाड़े होते थे। स्वामी विवेकानंद ने शारीरिक बल को मानसिक व आध्यामिक बल का आधार माना है। जब हम अखाड़ों में जाते हैं तब अखाड़े की मिट्टी को सर पर लगाते हैं। उसे मां का सम्मान देते हैं।

प्रो. कापरी भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ काशी क्षेत्र द्वारा आयोजित साप्ताहिक वेबिनार कार्यक्रम गुरुवारीय अड़ी में सावन और काशी के अखाड़ों पर चर्चा में बोल रहे थे। वक्ताओं ने कहा कि सावन के महीने में जिस प्रकार प्रकृति पर्यावरण का श्रृंगार करती है वैसे ही अखाड़ों की मिट्टी से उठने वाली सुगंध रियाज करने वाले व कुश्ती लडऩे वालों को स्वत: स्फूर्त करती है। कुश्ती दंगल के साथ गदा, जोड़ी फेरने, नाल उठाने की प्रतियोगिताएं होती हैं। चिक्कन पहलवान, स्वामीनाथ, कल्लू पहलवान, कुंवर यादव, सुरेंद्र प्रसाद ने बनारसी अखाड़ों की परम्परा को आगे बढाने का कार्य किया है। स्वामीनाथ अखाड़े अस्सी के कल्लू पहलवान ( उत्तर प्रदेश केशरी) ने कहा कि बनारस में ज्यादातर अखाड़े गंगा किनारे थे जहां से पहलवानी अब ग्रामीण क्षेत्र की और चली गई है। मेघु अखाड़ा, कोटवां के व्यवस्थापक कुंवर यादव ने बताया कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के प्रयास से 100 अखाड़ों में टिनशेड लगे हैं। प्रो. सुशील कुमार गौतम (राष्ट्रीय खिलाड़ी एवं विभागाध्यक्ष खेल विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) ने कहा कि पचईंया कहें या नागपंचमी पर दंगल का आयोजन होता था। अब धीरे धीरे ये आयोजन लुप्त होते जा रहे है। चर्चा में बुद्धिनाथ मिश्र, महेंद्र यादव, अनूप कुमार जायसवाल, मनोहर पहलवान, खुशी यादव,, रामजतन यादव, सुरेंद्र प्रसाद, रजनीश त्रिपाठी, डॉ. राम सुधार सिंह व हिमांशु उपाध्याय ने अपने विचार व्यक्त किए। विषय प्रवर्तन धर्मेंद्र सिंह ने एवं कार्यक्रम संयोजन व धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुनील मिश्र ने किया। कार्यक्रम में रामनारायण द्विवेदी, पं श्रीकांत मिश्र, विद्या सागर राय, डॉ संध्या ओझा, नवरतन राठी, शशि कुमार, गणपति यादव, संतोष सोलापुरकर आदि रूप से जुड़े थे।

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