वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पांच दशक बाद शुरू हुआ अग्निहोत्र यज्ञ

वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के अंतर्गत अग्निहोत्र विभाग वर्ष 1964 खोला गया था। महामहोपाध्याय पं. भगवत प्रसाद मिश्र प्रथम अग्निहोत्र नियुक्त किए गए थे। एक अप्रैल 1965 को उन्होंने विश्वविद्यालय में अग्निहोत्र की शुरूआत की।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 09:00 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 09:00 AM (IST)
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पांच दशक बाद शुरू हुआ अग्निहोत्र यज्ञ
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के अंतर्गत अग्निहोत्र विभाग वर्ष 1964 खोला गया था।

वाराणसी, जेएनएन। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में करीब पांच दशक बाद अग्निहोत्र यज्ञ की परंपरा शुरू हो गई है। हालांकि यह परंपरा विश्वविद्यालय स्तर के नहीं बल्कि व्याकरण विभाग के अध्यापक ने अपने स्तर से शुरू की है। प्रारंभिक तौर पर व्याकरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. ज्ञानेंद्र सापकोटा ने अपने नवीन अध्यापक आवास पर सुबह-शाम करना अग्निहोत्र यज्ञ शुरू कर दिया हैं। वहीं विश्वविद्यालय स्तर पर शुरू करने की रूपरेखा बनाई जा रही है।

विश्वविद्यालय में वेद विभाग के अंतर्गत अग्निहोत्र विभाग वर्ष 1964 खोला गया था। महामहोपाध्याय पं. भगवत प्रसाद मिश्र प्रथम अग्निहोत्र नियुक्त किए गए थे। एक अप्रैल 1965 को उन्होंने विश्वविद्यालय में अग्निहोत्र की शुरूआत की। उस समय शासन स्तर पर अग्निहोत्र के लिए मानदेय व पूजन सामग्री के लिए अनुदान भी मुहैया कराता था। किन्हीं कारणवश पांच-छह वर्षों अग्निहोत्र यज्ञ की परंपरा टूट गई। पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने अग्निहोत्र यज्ञ की परंपरा फिर से शुरू कराने का निर्णय लिया। इस क्रम में कार्यपरिषद की स्वीकृति मिलने के बाद आर्थिक बाधा दूर करने के लिए वह महाराष्ट्र, दक्षिण भारत सहित कई संस्थानों से बातचीत भी कर रहे है। महाराष्ट्र की दो संस्थाओं ने 50 हजार रुपये देने की स्वीकृति भी प्रदान कर दी थी। इस बीच कुलपति प्रो. शुक्ल का तीन वर्षों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया।

हालांकि तत्कालीन कुलपति के पहल पर डा. ज्ञानेंद्र सापकोटा व्यक्तिगत स्तर पर गत दिनों घोड़े के सक्षम अरणिमंथन कर अग्निहोत्र यज्ञ का शुभारंभ कर दिया। इस दौरान पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल, आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़, आचार्य लक्ष्मी कांत दीक्षित, डा. विजय कुमार शर्मा सहित अन्य विद्वान उपस्थित रहे।

 

क्या अग्निहोत्र यज्ञ

अग्निहोत्र एक वैदिक यज्ञ है जिसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है। अग्निहोत्र एक नित्य वैदिक यज्ञ है। यह यज्ञ प्रतिदिन सुबह व शाम करने का विधान है। अग्निहोत्र यज्ञ करने वाले के घर सदैव अग्नि प्रज्ज्वलित होती रहती है। उसकी अग्नि को बुझने नहीं दिया जाता है। अग्निहोत्र यानी वैदिक ब्रह्मण इसी अग्नि से खाना भी खाते हैं। ऐसे में अग्निहोत्र यज्ञ करने वाले घर के बाहर का खाना नहीं खाते हैं। किन्हीं कारणवश यदि बाहर जाना हुआ वह ''अग्नि मंथन'' से अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं। ''अग्नि मंथन' अग्निहोत्र यज्ञ की दीक्षा लेने वाले लोगों को ''अग्नि मंथन'' नामक एक विशेष प्रकार यंत्र दिया जाता है। मथनी की तरह लकड़ी के बने यंत्र को मथने से अग्नि प्रज्ज्वलित होती है।

15 दिनों में श्रौतयाग

अग्निहोत्र को हर 15 दिनों में अमावास्या तथा पूर्णवासी के बाद प्रतिपदा को दर्श व पौणमास नामक यज्ञ का अनुष्ठान करना होता है। श्रौतयाग नामक यज्ञ का अनुष्ठान चार घंटे का किया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक छह माह में आग्रयण नाम का अनुष्ठान करने का विधान है।

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