Bharat Milap : काशी में लंबे अंतराल बाद संपन्न नाटी इमली की लीला संस्कारों की अमिट छाप छोड़ गई

बीते एक पखवारे से चित्रकूट की लीला में श्रीराम परिवार के पात्रों की भूमिका निभा रहे किशोर पात्र धनुष-बाण की पूजा निबटाने के बाद जागरण प्रतिनिधि के सामने थे। एक प्रश्न के उत्तर में सभी ने स्वीकार किया कि हर लीला के हर प्रसंग के मंचन का अलग-अलग अनुभव रहा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 05:10 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 01:43 PM (IST)
Bharat Milap : काशी में लंबे अंतराल बाद संपन्न नाटी इमली की लीला संस्कारों की अमिट छाप छोड़ गई
नाटी इमली मैदान में श्रीमौनी बाबा रामलीला समिति की ओर से आयोजित भरत विलाप का दृश्य।

वाराणसी, कुमार अजय। कभी क्रिकेट, कभी आइस-पाइस (आई स्पाइ) तो कभी चोर सिपाही जैसे धूम मचाऊ खेलों से हर रोज ही धमगज्जर मचाने वाले कबीचौरा मोहल्ले के बच्चों के पास आज एक नया खेला है। गली के चबूतरे बने हैैं इस नए खिलवाड़ के मंच और दर्शकों में शामिल हैैं चबूतराबाजी कर रहे पं. कामेश्वरनाथ मिश्र, आचार्य विवेक उपाध्याय, श्रीनारायण गुरु व कैलाश सरदार जैसे सयाने बुजुर्गवार। सुबह-सवेरे से ही नन्हे-मुन्ने आसपास के मंदिरों के निर्माल्य ढेर से जुटाई गई मालाओं से अपने-अपने कंठ सजाए हुए हैैं। कल भरत मिलाप के मेले से खरीदे हुए नाना मुखाकृतियों के देव मुखौटों से अपने चेहरे बदल कर गली में भरत मिलाप की लीला का मंच सजाए हुए हैैं। इनमें से हर कोई श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, भुआल बना अपनी -अपनी भूमिका निभा रहा है। पहले दंडवत फिर दौड़ और अंत में एक-दूसरे के गले लग कर रामरथ के रूप में सजाई गई रामप्रसाद की रिक्शा ट्राली पर झांकी सजाने की होड़।

शुक्रवार व शनिवार की भागदौड़ से थके -मांदे इसी गली के रहनवार व चित्रकूट रामलीला समिति के प्रबंधक पं. मुकुंद उपाध्याय भी कुर्सी पर जमे पीठ सीधी करते बच्चों की यह नैसर्गिक लीला देख कर मगन हुए जा रहे हैैं। वहीं बैठे-बैठे इन बाल कलाकारों का हौसला भी बढ़ा रहे हैैं। लीला के सफल आयोजन की बधाई बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते हुए भावुक हो उठते हैैं मुकुंद गुरु। कहते हैैं-यही संस्कार बचपन से बुढउती तक बनल रहे अउर पीढ़ी दर पीढ़ी धरोहर के रूप में पहुंचत रहे। एही भाव से काशी में रामलीला क मंच सजवले रहलन तुलसी बाबा। अफसोस की हमहन ओनकर ई पत नाहीं रख पउलीं। बचपन बस्ता के बोझ तले पिसात चलल जात हौ। जाब क अइसन होड़ कि जवानी दउड़हे में खप जात हौ। बुढ़ापे में रामजी यादो आवत हउअन त उनकर वजूद बस लाइव अउर कमेंट के फंसरी में फंस के रह जात हौ।

कुछ ऐसे ही भावों के समंदर में डूब-उतरा रहे हैैं सोनारपुरा के केश कलाकार संजय शर्मा भी। कल नाती को कंधे की सवारी देकर लीला दिखाने नाटी इमली ले गए थे। संजय बाबू भी इस बात को लेकर गदगद हैैं कि दिन भर मोबाइल पर कार्टून देखने वाले उनके दोहते ने कल पहली बार उनसे भरत मिलाप की कहानी खुद जिद कर सुनी। सिर्फ सुनी ही नहीं, अपनी मम्मी को भी सुनाई और बदले में भावों से भीगी पलकों की पप्पी पाई।

लहुराबीर के होटल संचालक जितेंद्र जायसवाल किसी भी साल बच्चों को मेला दिखाने की जिम्मेदारी से नहीं चूकते। कहते हैैं-आज सामने सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी बहुत सारी समस्याओं की वजह हमारी दो पीढिय़ों का संस्कारों से एकदम कटते चले जाना है। इस एहतियात से मैैं पिता व पितामह की जिम्मेदारी इमानदारी से निभाता हूं। बच्चों को माल जाने से नहीं रोकता पर मेलों में भी जरूर ले जाता हूं।

हमेशा याद रहेगा भावों में भीगा वह अनुभव

बीते एक पखवारे से चित्रकूट की लीला में श्रीराम परिवार के पात्रों की भूमिका निभा रहे किशोर पात्र आज धनुष-बाण की पूजा निबटाने के बाद जागरण प्रतिनिधि के सामने थे। एक प्रश्न के उत्तर में सभी ने स्वीकार किया कि हर लीला के हर प्रसंग के मंचन का बिल्कुल अलग-अलग अनुभव रहा। किंतु भरत मिलाप ने श्रद्धालुओं के चेहरे पर जो भाव उन्होंने देखे वो जीवन भर याद रहेंगे। श्रीराम की भूमिका निभा रहे मोहित दीक्षित का कहना है कि लीला समाप्त होने के बाद भी उसके भावपूर्ण अनुभवों से उबर पाना शायद बहुत जल्दी संभव न होगा। भइया लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे अरुण पांडेय भी भावनाओं के इसी ज्वार में डूब-उतरा रहे हैैं। उनका कहना है कि कल (शनिवार को) जब मंच पर भाइयों के अंकपाश में बंधे हुए थे तो जैसे एक दैवीय अनुभूति दिव्य भाव बन कर उनके मन में समा गई। भरत की भूमिका निबाह रहे सोमेश्वर उपाध्याय तो भक्तों की भीड़ का वह श्रद्धावनत भाव देख कर अभी तक भावविह्वïल हैैं। कहते हैैं, लीला समाप्त होने के बाद भरत से सोमेश्वर बनने में बहुत वक्त लगेगा। लीला में आयुष पाठक ने पहली बार भइया भुआल की भूमिका निभाई है। कहते हैैं, सिर्फ तन ही नहीं मन में भी एक अजीब सी विह्वïलता है। लीला समाप्त होने के बाद इस दिव्य आभा से मुक्त हो पाना शायद बहुत सहज न होगा। सीता जी की भूमिका में डूब कर रह गए प्रियांश दुबे का भी यही कहना है कि लीला का हर प्रसंग दिल को छूने वाला था किंतु भरत मिलाप का प्रभा मंडल न भूल पाएंगे।

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