Afghanistan Crisis : अफगानिस्तान के संबंध में भारत को अपनानी होगी स्वतंत्र विदेश नीति : प्रो. मोहम्मद आरिफ

कहीं ऐसा न हो कि अफगानिस्तान चीन और पाकिस्तान का भारत विरोधी कारीडोर बन जाए। यह स्थिति हमारे देश के लिए संकटपूर्ण हो सकती है। इसलिए भारत को तालिबान से बातचीत के दरवाजे खुले रखने चाहिए। अगर तालिबान अपने रुख में किसी वजह से बदलाव पेश कर रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 31 Aug 2021 09:15 PM (IST) Updated:Tue, 31 Aug 2021 09:15 PM (IST)
Afghanistan Crisis : अफगानिस्तान के संबंध में भारत को अपनानी होगी स्वतंत्र विदेश नीति  : प्रो. मोहम्मद आरिफ
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर मोहम्मद आरिफ

जागरण संवाददाता, वाराणसी। कोई चाहे या न चाहे, तालिबान आज सत्ता में हैं। जिस तरह अमेरिका ने तालिबानों को अघोषित रूप से सत्ता सौंप दी और उधर चीन और पाकिस्तान जितनी तेजी से उसे मान्यता देने में आगे आए हैं। इसे देखते हुए भारत को समय रहते तत्परता बरतनी होगी और दक्षिण एशिया में अपनी आंतरिक सुरक्षा को देखते हुए निर्णय लेना होगा। कहीं ऐसा न हो कि अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान का भारत विरोधी कारीडोर बन जाए। यह स्थिति हमारे देश के लिए संकटपूर्ण हो सकती है। इसलिए भारत को तालिबान से बातचीत के दरवाजे खुले रखने चाहिए। अगर तालिबान अपने रुख में किसी वजह से बदलाव पेश कर रहा है, तो भारत को इस स्थिति का फायदा उठाना चाहिए। इससे उस पर एक नैतिक दबाव भी बनेगा। यह कहना है महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर मोहम्मद आरिफ का। वह सोमवार को जागरण अकादमिक कार्यशाला में ‘अफगानिस्तान में तालिबान और भारत की भूमिका’ विषयक विमर्श में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि हालांकि तालिबान कभी विश्वसनीय नहीं रहा है, फिर भी आज उसके सुर बदले हुए हैं, यह उसकी कूटनीतिक मजबूरी भी है। उसे अफगानिस्तान में अपनी स्थिर सरकार बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता की जरूरत है। वह अब यह नहीं चाहेगा कि किसी को नाराज कर अपनी सत्ता के लिए खतरा पैदा करे। क्योंकि वह जानता है कि अफगानिस्तान में अभी बहुत कुछ निश्चित नहीं है। सत्ता के लिए विभिन्न कबायली गुटों में संघर्ष हो सकता है। इसलिए तालिबान इस आशंका को खत्म करने के लिए अपना बदला हुआ चेहरा दुनिया के सामने पेश कर रहा है और सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहा है।

अपनानी होगी भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति

प्रोफेसर आरिफ ने साफ कहा कि चालीस के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई थी। एक ओर साम्यवादी देशों का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था तो दूसरी ओर पूंजीवादी देशों का नेतृत्व अमेरिका के हाथों में था। ऐसे में 1947 में भारत की आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल ने गुट निरपेक्ष नीति अपनाने की घोषणा की। भारत के साथ अफगानिस्तान के रिश्ते शुरू से काफी अच्छे थे। अफगान के हुक्मरान भी भारत की इस नीति के साथ थे लेकिन वास्तव में देखा जाय तो भारत की विदेश नीति अफगान को लेकर कभी स्वतंत्र नहीं रही। वह शक्तिशाली देशों की मंशा के अनुसार बदलती रही। कभी सोवियत संघ के साथ तो कभी अमेरिका के साथ। इधर भारत को दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में चीन की कूटनीतियों का हमेशा सामना करना पड़ता है। अब वैश्विक परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। इसलिए हमें अपने हितों को देखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति अपनानी होगी।

अफगानिस्तान के मसले पर भी नहीं रहा कभी स्पष्ट रुख

प्रोफेसर आरिफ ने कहा कि अफगानिस्तान कभी भारत का ही हिस्सा रहा है। हमेशा दोनों देशों के संबंध मधुर रहे। जब बदली परिस्थितियों में 1979 में अफगान सत्ता सोवियत के समर्थन में आ गई और उसकी दखलंदाजी वहां बढ़ गई। उस समय भारत सोवियत संघ के साथ था। बाद में जब सोवियत संघ के विखंडन के बाद सोवियत की सेनाएं चली गईं। अमेरिका कूदा, सोवियत फोर्सेज हटाने के बाद वह चला गया। वहां सरकार गठन के बाद अलकायदा, तालिबान आदि नाराज हो गए। उनका कहना था कि सोवियत सेनाओं को हटाने के लिए अमेरिका ने हमारा साथ लिया और अब उन्हें किनारा कर दिया। पाकिस्तान ने मौकेे का फायदा उठाया और आइएसआइ के सहयोग से तालिबान के प्रमुख मुल्ला उमर ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया। तालिबान सरकार को पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की ने समर्थन दिया। अमेरिका ने नाटो फोर्स के साथ विरोध किया। अब अमेरिका वहां आधारभूत विकास के लिए भारत को अपने साथ लिया। भारत सरकार ने अनेक परियोजनाएं शुरू कीं, काफी अच्छा रिश्ता बना।

सत्ता के लिए इस्लाम की आड़ ले रहे तालिबानी

प्रोफेसर आरिफ का कहना है कि तालिबान चाहते हैं कि वे सबको मिलाकर इस्लामिक सरकार बनाएं और शरीयत लागू करें। असलियत यह है कि वहां सभी गुट सत्ता के लिए आपस में संघर्ष कर रहे हैं। इस्लाम तो केवल यूज हो रहा है। उनका कहना है कि हम शरीयत लागू कर रहे हैं। लोगों पर अत्याचार हो रहा है, यह कौन सा इस्लाम है।

अमेरिका ने सबको दिया धोखा

प्रोफेसर आरिफ ने कहा कि 20 साल की लड़ाई के बाद अचानक ट्रंप सरकार और तालिबान में क्या गुप्त समझौता हुआ कि अमेरिका ने वहां से निकलने की घोषणा कर दी। अमेरिका के ही कहने पर भारत ने खरबों रुपये की विकास परियोजनाएं वहां शुरू कीं। अमेरिका ने निर्णय लेते समय भारत को भी विश्वास में नहीं लिया।

आज इस पूरे परिदृश्य में भारत की कहीं कोई भूमिका नहीं है। हो सकता है चीन को ठीक करने की अमेरिका की काेई रणनीति हो लेकिन जिस तरह चीन और पाकिस्तान आगे बढ़कर अफगानिस्तान में तालिबान को समर्थन दे रहे हैं, वह भारत के लिए ठीक नहीं है। अभी जबकि तालिबान कह रहा है कि काेई अपने दूतावास न बंद करे और भारत अपनी परियोजनाएं चलाता रहे तो भारत को अपने हितों को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए। इससे चीन और पाकिस्तान के मंसूबे नाकाम होंगे। रही बात अफगानिस्तान की धरती को भारत के विरुद्ध आतंकवाद के लिए प्रयोग करने की तो अब वह पहले जैसी स्थिति नहीं है। भारत काफी मजबूत हो चुका है।

chat bot
आपका साथी