बिहार के सुखेत गांव का मॉडल अपनाएं, दे सकते हैं 68 लाख लोगों को रोजगार
जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के लिविंग लिजेंड्स ऑफ बलिया फोरम के तत्वावधान में शीर्षक पर ऑनलाइन व्याख्यानमाला आयोजित किया गया। इसमें डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के कुलपति डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि पर निर्भरता बहुत ज्यादा है।
बलिया, जेएनएन। जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के 'लिविंग लिजेंड्स ऑफ बलिया' फोरम के तत्वावधान में (हम साथ-साथ चलें) शीर्षक पर ऑनलाइन व्याख्यानमाला आयोजित किया गया। इसमें डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पुसा समस्तीपुर के कुलपति डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कृषि पर निर्भरता बहुत ज्यादा है। यहां बेरोजगारी दर शेष भारत की तुलना में काफी ज्यादा है। रोजगार की तलाश में ही यहां से लोग पलायन करते हैं। ऐसे में हमें कुछ अलग सोचना होगा। मुजफ्फरपुर के सुखेत गांव का मॉडल अपनाकर लगभग 68 लाख लोगों को रोजगार दिया जा सकता है और 17000 करोड़ तक की धनराशि अर्जित की जा सकती है।
सुखेत गांव का माॅडल प्रस्तुत करते हुए उन्हाेंने कहा कि वहां गाय का गोबर इकट्ठा कर उससे कंपोस्ट खाद बनाया जा रहा है। केले के रेशे निकाल कर उसका प्रयोग हस्तशिल्प उत्पाद बनाने में किया जा रहा है। अरहर के बेकार समझे जाने वाले तने से भी बहुत सी उपयोगी वस्तुएं जैसे अगरबत्ती की डंडी, मोबाइल स्टैंड, पेन स्टैंड आदि तथा इसके रेशे से अन्य सजावटी वस्तुएं बनाई जा रही हैं। मक्के से पैकेजिंग मैटेरियल बनाया जा सकता है, जो थर्मोकोल का बेहतर विकल्प है। लीची के बीजों से फिश फीड, जबकि पुआल से मशरूम उत्पादन किया जा सकता है। इसी प्रकार हल्दी की पत्तियों से तेल निकाला जा सकता है जो मच्छर, कीटों , पादप रोगाणुओं के नियंत्रण के साथ खाद्य संरक्षण में भी प्रयोग किया जा सकता है।
लिविंग लिजेंड्स फोरम से मिल रहा बल : कुलपति
अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय ने कहा कि जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के विकास के लिए कृत संकल्पित है। बलिया की विशिष्ट प्रतिभाओं के सहयोग से इस क्षेत्र के विकास की कार्ययोजना तैयार हो सकती है। शीघ्र ही जननायक विश्वविद्यालय और राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के बीच एमओयू साइन होगा। गोष्ठी में अतिथियों का स्वागत डा. यादवेंद्र प्रताप सिंह, संचालन डा. प्रमोद शंकर पांडेय तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. जैनेंद्र कुमार पांडेय ने किया।