भारतरूपी यज्ञशाला के चार वेद-द्वार हैं चतुष्पीठ, वाराणसी के केदार घाट स्थित श्रीविद्या मठ में मनाई गई आदि शंकराचार्य जयंती

आद्य शंकराचार्य की 2528वीं जयन्ती का आयोजन किया गया। अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि आज भारत यदि भारत है तो वह आदि शंकराचार की ही देन है। उन्होंनें अपने समय में प्रचलित सभी मतों का खण्डन कर अद्वैत मत की प्रतिष्ठा की और देश को एक सूत्र में बांधा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 06:41 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 06:41 PM (IST)
भारतरूपी यज्ञशाला के चार वेद-द्वार हैं चतुष्पीठ, वाराणसी के केदार घाट स्थित श्रीविद्या मठ में मनाई गई आदि शंकराचार्य जयंती
आद्य शंकराचार्य की 2528वीं जयन्ती का आयोजन किया गया।

वाराणसी, जेएनएन। जब किसी यज्ञशाला का निर्माण होता है तो उसकी चारों दिशाओं में चार वेदों की स्थापना की जाती है। भगवान् आद्य शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत भूमि को ही यज्ञशाला माना और उसकी चार दिशाओ में चार वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए चार पीठों की स्थापना की जो आज भी पूरे विश्व में सनातन धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं। उक्त उद्गार श्रीविद्यामठ में आयोजित आद्य शंकराचार्य  की 2528वीं जयन्ती के अवसर पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आज भारत यदि भारत है तो वह आदि शंकराचार की ही देन है। उन्होंनें अपने समय में प्रचलित सभी मतों का खण्डन कर अद्वैत मत की प्रतिष्ठा की और देश को एक सूत्र में बांधा।

इस अवसर पर बड़ौदा से पधारे काशी विश्वनाथ मन्दिर के महंत ब्रह्मचारी राम चैतन्य ने कहा कि हम सबको आदि शंकराचार्य द्वारा बताए मार्ग पर चलकर सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए।

इस अवसर पर साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, श्याम बिहारी ग्वाल, धर्मवीर कुमार, सनोज कामत, शिवप्रसाद नायक, अमला यादव, जयप्रकाश आदि उपस्थित  थे। आरंभ में आचार्य पं निखिल शास्त्री  के वैदिक तथा योगेशनाथ त्रिपाठी के पौराणिक मंगलाचरण किया। इस दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरनन्द ने आद्य शंकराचार्य की मूर्ति का पंचोपचार विधि से पूजन किया। हरियाणा के बटुक अरविन्द पाराशर ने आदि शंकराचार्य का रूप बनाया और शंकराचार्य  के सिद्धान्त 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' श्लोक का वाचन किया।  धन्यवाद ज्ञापन रामचन्द्र सिंह जी ने किया।

आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार : नरेंद्रानन्द सरस्वती  

डुमराव बाग कालोनी (असि ) स्थित आदि शंकराचार्य महासंस्थानम्, काशी सुमेरूपीठ में  सोमवार को आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती के सानिध्य में विविध धार्मिक अनुष्ठान हुए। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार हैं।

प्रात:काल स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने  आदि शंकराचार्य के चित्र पर माल्यार्पण कर विधि विधान से पूजन- अर्चन किया। इसके पश्चात वैदिक  विद्वानों ने वेद मंत्रो के बीच रुद्राभिषेक कराया।  इस दौरान आश्रम में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी मेमआदि शंकराचार्य के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि  भगवान शंकर ने स्वयं आदि शंकराचार्य के रूप में अवतरित होकर सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए भारतवर्ष में चार शंकराचार्य पीठों की स्थापना करने के साथ अन्य पीठों की स्थापना की। स्वामी लखन स्वरूप ब्रह्मचारी  ने कहा कि आदि शंकराचार्य  ने सनातन संस्कृति को बचाने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया और सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार किया।  गोष्ठी को स्वामी अखंडानंद तीर्थ, स्वामी केदारानंद तीर्थ, स्वामी लक्ष्मणानंद तीर्थ, राधेश्याम आश्रम ने भी संबोधित किया।

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