राष्ट्रीय आर्थोडांटिक दिवस : टेढ़े-मेढ़े दांतों के इलाज के लिए सात से 18 साल की उम्र बेहतर
पांच अक्टूबर को पूरे देश में राष्ट्रीय आर्थोडांटिक दिवस मनाया जाता है। इसी दिन इंडियन आर्थोडांटिक सोसायटी का गठन सन 1965 में किया गया था। यह डेंटिस्ट्री की सुपरस्पेशलिटी शाखा है जिसमे टेढे़-मेढे़ अनियमित दांत जबड़े और चेहरा को ठीक किया जाता है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। 49 फीसद बच्चों में टेढ़े-मेढ़े दांत और जबड़े की समस्या है। मुंह से सांस लेने, अंगूठा चूसने, कुपोषण आदि से दांतों में विकृति आती है। आजकल लगभग 49 फीसद बच्चों में टेढ़े-मेढ़े दांत, जबड़े की समस्या हो रही है। इसका मुख्य कारण आनुवंशिकी, मुंह से सांस लेना, अंगूठा चूसना, कुपोषण, जीभ की बनावट व गलत ढंग से खाना निगलना है। कटे तालू एवं कटे होठ के कारण भी यह समस्या होती है।
इससे खाने में कठिनाई होती है, देखने में मुंह व चेहरा खराब लगता है। जबड़े व चेहरे का विकास बच्चों में ठीक से नहीं हो पाता है।इस विकृति को ठीक किया जा सकता है अप्लायंस या ब्रेसेस लगाकर। वैसे तो इसका इलाज किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन सबसे उपयुक्त समय होता है सात से 18 साल की अवस्था का। यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दंत चिकित्सा संकाय के पूर्व प्रमुख व बनारस आर्थोडांटिक स्टडी ग्रुप के कन्वीनर, इंडियन डेंटल एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रो. टीपी चतुर्वेदी का।
वह बताते हैं कि पांच अक्टूबर को पूरे देश में राष्ट्रीय आर्थोडांटिक दिवस मनाया जाता है। इसी दिन इंडियन आर्थोडांटिक सोसायटी का गठन सन 1965 में किया गया था। यह डेंटिस्ट्री की सुपरस्पेशलिटी शाखा है जिसमे टेढे़-मेढे़ अनियमित दांत, जबड़े और चेहरा को ठीक किया जाता है। इसके लिए समय छह महीने से तीन साल तक का समय लग सकता है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इस विषय की पढ़ाई एमडीएस इन आर्थोडांटिक्स डिग्री के साथ सन 2008 में शुरू हुई। यह बीडीएस के बाद की जाती है। इस वर्ष से आर्थोडांटिक एमडीएस के लिए चार कंडीडेट का हर साल प्रवेश लिया जाएगा। प्रोफेसर चतुर्वेदी बताते हैं कि उनके नेतृत्व में वाराणसी के आसपास सर्वे में यह पाया गया कि टेढे़ मेढे़ दांत व जबड़े की समस्या 49 फीसद बच्चो में हो रही है। इसका मतलब हर दूसरा बच्चा आर्थोडांटिक समस्या से परेशान है। बनारस आर्थोडांटिक स्टडी ग्रुप का निर्माण सन 2011 में इंडियन आर्थोडांटिक सोसायटी द्वारा किया गया है। इसके द्वारा समय-समय पर आर्थोडांटिक दिक्कतों के लिए जागरूकता का अभियान चलाया जाता है।