किसान आंदोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती की वाराणसी में मनाई गई 132वीं जयंती

स्वामी सहजानन्द शोध संस्थान के तत्वाधान मे शिवपुरवा मे किसान आंदोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती की 132वीं जयंती सोमवार को मनाई गई। 1907 में काशी जाकर स्वामी अच्युतानन्द से विधिपूर्वक दशनामी दीक्षा लेकर नौरंग राय से स्वामी सहजानन्द सरस्वती हो गये।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Mon, 22 Feb 2021 07:23 PM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 07:42 PM (IST)
किसान आंदोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती की वाराणसी में मनाई गई 132वीं जयंती
स्वामी सहजानन्द शोध संस्थान के तत्वाधान मे शिवपुरवा में 132वीं जयंती सोमवार को मनाई गई।

वाराणसी, जेएनएन। स्वामी सहजानन्द शोध संस्थान के तत्वाधान मे शिवपुरवा में किसान आंदोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती की 132वीं जयंती सोमवार को मनाई गई। भाजपा महानगर अध्यक्ष विद्यासागर राय की अध्यक्षता में स्वामी जी के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए कहा कि स्वामी सहजानन्द सरस्वती अथक परिश्रमी, वेदान्त और मीमांसा के महान विद्वान, बेबाक पत्रकार एवं लेखक के साथ-साथ संगठित किसान आंदोलन के जनक एवं संचालक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 में महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। बचपन में ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा। दीक्षा को लेकर उनके बालमन में धर्म की इस विकृति के खिलाफ विद्रोह पनपा। धर्म के अंधानुकरण के खिलाफ उनके मन में जो भावना पली थी कालांतर में उसने सनातनी मूल्यों के प्रति उनकी आस्था को और गहरा किया। सन् 1907 में इन्होंने ने काशी जाकर स्वामी अच्युतानन्द से विधिपूर्वक दशनामी दीक्षा लेकर नौरंग राय से स्वामी सहजानन्द सरस्वती हो गये। 

स्वामी सहजानंद ने रोटी को ही भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया

संचालन करते हुये स्वामी सहजानन्द शोध संस्थान के महासचिव विनय शंकर राय ने कहा कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में गति पकड़ा तो स्वामी सहजानंद  उसके केन्द्र में थे। उन्होंने चारों तरफ घुम घुमकर अंग्रेजी राज के खिलाफ किसानों व मजदूरों को खड़ा किया। ये वह समय था जब स्वामी जी भारत को समझ रहे थे। जब वह जनता से मिल रहें थे तो उन्होंने देखा देश में किसानों की हालत गुलामों से भी बदतर है। स्वामी सहजानन्द का मन एक बार फिर नये संघर्ष की ओर उन्मुख होता है। किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ डट जाने का स्वभाव रखते थे। गिरे हुए को उठाना अपना प्रधान कर्तव्य मानते थे। दण्डी संन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को ही भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया। नारा दिया था- "जो अन्न वस्त्र उपजाएगा,अब सो कानून बनायेगा। ये भारतवर्ष उसी का है,अब शासन वहीं चलायेगा।" अपने स्वजातीय जमींदारों के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलन का शंखनाद किया। सचमुच जो श्रेष्ठ होते हैं वे जाति, धर्म, सम्प्रदाय और लैंगिक भेद-भाव से ऊपर होते हैं। हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक लिखी- "किसान क्या करें" इस पुस्तक में अलग-अलग शीर्षक से सात अध्याय हैं- 1. खाना-पीना सीखें, 2. आदमी की जिंदगी जीना सीखें, 3. हिसाब करें और हिसाब मांगें, 4. डरना छोड दें, 5. लडें और लडना सीखें, 6. भाग्य और भगवान पर मत भूलें और 7. वर्गचेतना प्राप्त करें। बड़ी गम्भीरता से देखा है कि किसानों की हाड़-तोड़ मेहनत का फल किस तरह से जमींदार, साहूकार, बनिए, महाजन, पंडा-पुरोहित, साधु-फकीर, ओझा-गुणी, चूहे यहां तक कि कीड़े-मकोड़े और पशु-पक्षी तक गटक जाते हैं। वे अपनी किताब में बड़ी सरलता से इन स्थितियों को दर्शाते हुए किसानों से सवाल करते हैं कि क्या उन्होंने कभी सोचा है कि वे जो उत्पादन करते हैं, उस पर पहला हक उनके बाल-बच्चे और परिवार का है? उन्हें इस स्थिति से मुक्त होना पड़ेगा। सन् 1927 ई. ये वो वर्ष है जिसमें स्वामी जी ने पश्‍चिमी किसान सभा की नींव रखी।  स्वामी जी ने "मेरा जीवन संघर्ष" में लिखा है- "मुनि लोग तो स्वामी बन के अपनी ही मुक्‍ति के लिए एकांतवास करते हैं। लेकिन, मैं ऐसा हर्गिज नहीं कर सकता। सभी दु:खियों को छोड़ मुझे सिर्फ अपनी मुक्‍ति नहीं चाहिए। मैं तो इन्हीं के साथ रहूंगा और मरूँगा-जीऊँगा।" स्वामी सहजानन्द जी का मानना था कि यदि हम किसानों, मजदूरों और शोषितों के हाथ में शासन का सूत्र लाना चाहते हैं तो इसके लिए क्रांति आवश्यक है। क्रांति से उनका तात्पर्य व्यवस्था परिवर्तन से था।

26 जून 1950 को पंचतत्व में विलीन हो गए

1934 में बिहार प्रलयंकारी भूकम्प से तबाह हुआ तब स्वामी सहजानन्द जी ने बढ़ चढ़कर राहत पुनर्वास में काम किया इस दौरान स्वामी जी ने देखा अपना सब कुछ गंवा चुके किसान मज़दूर को जमींदार के लठैत कर वसुल रहें हैं तब स्वामी जी ने किसानों के आवाज़ में नारा दिया कि "कैसे लोगे मालगूजारी, लठ्ठ हमारा ज़िदाबाद।" किसानों को शोषण मुक्त करने और जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए स्वामी जी 26 जून 1950 को पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके निधन के साथ ही भारतीय किसान आन्दोलन का सूर्य अस्त हो गया। उनके निधन पर दिनकर जी ने कहा था आज दलितों का सन्यासी चला गया।आज स्वामी सहजानन्द जी जैसा निर्भीक तथा अथक परिश्रमी नेता दूर-दूर तक नहीं है।

श्रद्धान्जली समारोह की अध्यक्षता विद्या सागर राय, संचालन विनय शंकर राय एवं धन्यवाद ग्यापन गगन प्रकाश यादव ने किया ,  प्रमूख रूप से नवीन कपूर , आलोक श्रीवास्तव, अभिषेक मिश्रा, संजय सिह गौतम, अमित पटेल, सूजीत राजभर , दिलीप मिश्रा , संजय मिश्रा , राजन सिह , समीर मिश्रा , शुभम सिह, पवन दुबे, राहुल सिह सहित इत्यादि लोग स्वामी जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धान्जली अर्पित किये एवं विचार व्यक्त किये।

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