आत्मा को प्रलोभनों से दूर रखना ही आत्मसंयम

आत्मसंयम से तात्पर्य अपने मन एवं इंद्रियों को वश में रखना है। जो मनुष्य ऐसा करता है उसका व्यक्ति

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 07:19 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 07:19 PM (IST)
आत्मा को प्रलोभनों से दूर रखना ही आत्मसंयम
आत्मा को प्रलोभनों से दूर रखना ही आत्मसंयम

आत्मसंयम से तात्पर्य अपने मन एवं इंद्रियों को वश में रखना है। जो मनुष्य ऐसा करता है उसका व्यक्तित्व चट्टान की तरह मजबूत होता है। मायाग्रस्त होने पर वह कहीं न कहीं दूसरों की नजर में गिर जाता है। इसलिए मोह-माया, अमीरी-गरीबी, छोटा-बड़ा का भाव न रखते हुए सदैव सरल जीवन अपनाते हुए परिस्थितियों के साथ ढलना चाहिए। आत्मा को प्रलोभनों से दूर रखना ही आत्मसंयम कहलाता है। आत्मसंयम मनुष्य की वह शक्ति है, जिसमें ज्यादा खुशी मिलने पर वह ज्यादा उत्साहित नहीं होता व साधारण अवस्था में ही बना रह जाता है। ज्यादा दुख में भी नकारात्मक विचार उसके मन में नहीं आते। मनुष्य को कभी भी किसी की गरीबी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। क्योंकि रिश्तों का या मित्रता का मूल्यांकन दौलत के आधार पर नहीं होता। क्योंकि यहां पर अक्सर रिश्ते ज्यादा दिन तक नहीं टिकते। इसलिए हमेशा दूसरों के हित को ध्यान में रखते हुए ही कोई कार्य करना चाहिए न कि अपना फायदा तलाशना चाहिए। अक्सर ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद लोग इस धैर्य को खो बैठते हैं। इससे की उनकी संस्कृति व संस्कार का पतन होना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे उसे अपने किए पर पछतावा होता है। लेकिन जब तक वह इस बात को समझता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। मजबूत रिश्तों की डोर भी टूट चुकी होती है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही मनुष्य को कोई फैसला लेना चाहिए। जल्दबाजी में लिए फैसले या बिना सोचे-समझे किसी कार्य को करना कहीं न कहीं दुखों का कारण बनता है। आत्मसंयम सदाचार का एक महत्वपूर्ण अंग है। सदा संयम से किसी कार्य को करना चाहिए। वहीं मायाग्रस्त व्यक्ति अपना अस्तित्व तो समाप्त करता ही है, साथ ही उसकी सानिध्य में जो आता है, उसके साथ मिलकर कीचड़ बन जाता है। इस कुपंथ से दूर रहना चाहिए। घमंड एक दिन जरूर टूटता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा खुद के साथ-साथ दूसरों के बारे में अच्छा सोचना चाहिए। यह गुण ही उसके व्यक्तित्व, संस्कृति व संस्कार को दर्शाता है। जो कि अनमोल रत्न है। इसे कभी भी खोना नहीं चाहिए।

किरन भारती, प्रधानाचार्य, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज

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व्यवहार से होता व्यक्ति का परिचय

- शिष्टता और शालीनता सद्व्यवहार के प्राण कहे जाते हैं। व्यवहार में इन गुणों का समावेश यह बता देता है कि मनुष्य कितना संस्कारी है। किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का पहला परिचय उसके व्यवहार से मालूम पड़ता है। जिन मनुष्यों में यह समावेश नहीं होता है, वह रिश्तों की डोर को मजबूत नहीं कर सकता। क्योंकि मानवता सबसे बड़ा धर्म है। यह एक दूसरे के प्रति सदैव रहनी चाहिए। इसका मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। चंद पैसा आने या कुछ हासिल करने के बाद आचार-विचार कभी भी नहीं बदलने चाहिए। जिस मनुष्य में यह गुण होते हैं, वह प्रभावशाली होता है। मनुष्य को सदैव अपनी संस्कृति व संस्कारों को ध्यान में रखते हुए किसी कार्य को करना चाहिए। क्योंकि, इससे दूर जाने से वह पतन की राह पर आ जाता है। उसे अच्छे-बुरे की पहचान नहीं हो पाती। उसे लगता है कि वह जो कर रहा है, वह सही है। दूसरों के बारे में न सोचकर स्वयं के हित को ही तलाशना मायाग्रस्त व्यक्ति की पहचान है। ऐसी संगति से दूर रहना ही अच्छा होता है। कुछ लोग बिना कुछ समझे-जाने फैसले कर बैठते हैं। किसी मनुष्य का व्यक्तित्व कैसा है, इसका मूल्यांकन उसे देखते ही नहीं कर देना चाहिए। इसे समझने की जरूरत होती है। वहीं व्यवहार मनुष्य की आंतरिक स्थिति का विज्ञापन है। दिखने में कुछ लोग बड़े ही सौम्य दिखाई देते हैं, आकृति बड़ी शांत और सरल होती है लेकिन जैसे ही कोई उनसे संपर्क करता है, तो उनकी वाणी से वे बातें व्यक्त हो जाती हैं जो उनके स्वभाव में दुर्गुणों के रूप में शामिल होता है। ऐसा मनुष्य संस्कार व संस्कृति से बहुत दूर होता है। उसमें शिष्टता व शालीनता का भाव नहीं होता। वह सदैव अपने ही हित पर चितन करता है।

- रमा शंकर मिश्रा, प्रधानाचार्य, ओपीजेडी इंटर कॉलेज

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सदैव अपनाना चाहिए सरल व्यवहार

- मनुष्य को सदैव सरल व्यवहार दूसरों से मिलने पर अपनाना चाहिए। इस व्यक्तित्व को बनाया रखना जरूरी होता है। क्योंकि एक दूसरे के प्रति मानवता सबसे बड़ा धर्म होता है। यहां पर संस्कार व संस्कृति का पता लगता है। अक्सर मनुष्य कुछ पाने के बाद इस अनमोल रत्न को भूला बैठता है। इससे की वह अपनी बनी बनायी प्रतिष्ठा का पतन करता है। इसलिए ऐसे व्यवहार से दूर रहना चाहिए जो किसी के दुखों का कारण बनता है। इसलिए सदैव इन बातों को ध्यान में रखते ही कोई भी कार्य मनुष्य को अपने जीवन में करना चाहिए।

अर्पना मिश्रा, प्रवक्ता, श्रीजेएनशाह पब्लिक स्कूल

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मानवता से बड़ा कोई दूसरा धर्म नहीं

- मानवता से बड़ा कोई दूसरा धर्म नहीं है। जो मनुष्य दूसरे के हित को ध्यान में रखते हुए कोई कार्य करता है, उसका व्यक्तित्व उतना ही प्रभावशाली होता है। कुछ हासिल करने या चंद पैसा आने के बाद घमंड नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से संस्कृति व संस्कार दोनों का पतन तो होता ही है साथ ही अपने भी दूरी बना लेते हैं। इसलिए खुद के साथ दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। समय बदलने पर खुद को नहीं बदलना चाहिए। सकारात्मक सोच को जागृत रखते हुए किसी कार्य को करना चाहिए। यही सही व्यक्तित्व की पहचान होती है।

- सुरेश शुक्ल, शिक्षक, शिखर शिक्षा सदन

दूसरों के प्रति सदैव अच्छे विचार ही आत्मसंयम

- दूसरों के प्रति सदैव अच्छे विचार रखना, उसके हित के बारे में सोचना ही आत्मसंयम है। अहंकार को त्याग करके सरल जीवन को अपनाने वाला व्यक्ति सदैव सुखी रहता है। उसके जीवन में दुखों के बादल नहीं आते। इसलिए किसी भी कार्य को करने से पहले उससे होने वाले नुकसान के बारे में एक बार जरूर सोच लेना चाहिए। क्योंकि बिना कुछ भी सोचे कुछ किया गया दूसरों के लिए हानिकारक तो होता ही है, साथ ही स्वयं के लिए भी अच्छा नहीं होता। बेहतर व्यवहार से ही अपनी पहचान बनानी चाहिए न कि अहंकार के बल पर।

- बृज किशोर वर्मा, शिक्षक, ज्ञान भारती पूर्व माध्यमिक जूनियर हाईस्कूल

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समय बदलने पर खुद को नहीं बदलना चाहिए

- समय सबसे ज्यादा बलवान होता है। अच्छा व बुरा समय हर किसी के जीवन में आता है। यहां पर सकारात्मक भाव का पतन न करते हुए धैर्य बनाए रखना चाहिए। धैर्य बना होने से कोई हानि नहीं होती है। यहां पर संस्कृति, संस्कार व व्यक्तित्व भी बना रहता है। अपने मन एवं इंद्रियों को वश में रखना ही आत्मसंयम है। अच्छे कर्म व मधुर वाणी से मनुष्य के सही व्यक्तित्व की पहचान होती है। इस धरोहर को बनाए रखना जरूरी होता है। क्योंकि यह भाव ही दूसरों से आपको अलग रखता है और मील का पत्थर साबित होता है।

- पुष्कल शंकर शुक्ल, ज्ञानोदय पब्लिक इंटर कॉलेज

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