..सहेजे नहीं जा रहे बारिश के अनमोल मोती
दशकों से भवनों के मानचित्र पर सिमटा है वर्षा जल संरक्षण अभियान। सौ फीट पर जलस्तर सरलता से रहता था उपलब्ध। करीब 30 हजार रिहायशी भवन हैं शहरी क्षेत्र में।
गोपाल पांडेय, सुलतानपुर
जल के सबसे बड़े स्त्रोत बारिश के पानी को सहेजने के मानवीय प्रयास यहां हाशिए पर हैं। किसी भी निजी और व्यावसायिक भवन में वर्षा की सौगात के रूप मिले जल को संरक्षित नहीं किया जा रहा है। शहर में यह स्थिति और भयावह हो रही है। भूजल का दोहन लगातार बढ़ रहा है। इससे हालात लगातार खराब हो रहे हैं।
मास्टर प्लान लागू होने के बावजूद मानसून के दौरान वर्षा जल को बचाने के उपाय नहीं किए गए हैं। किसी भी भवन पर वर्षा जल संचयन का संयंत्र नहीं है। शहरी क्षेत्र में जहां सतही जलस्तर 100 फीट पर सरलता से उपलब्ध रहता था, वही जलस्तर हर साल पांच से दस फीट नीचे खिसक रहा है। इसी का परिणाम है कि शहर का भूजल स्तर बीते एक साल से क्रिटिकल जोन की श्रेणी में आ गया है।
नियत प्राधिकारी विनियमित क्षेत्र रामजी लाल ने बताया कि नक्शा पास करने के दौरान वर्ष जल संचयन के लिए भवन में हार्वेस्टिंग सिस्टम स्थापित करने की अनिवार्यता है। इसका भौतिक सत्यापन किया जाता है। भवन स्वामियों को इसके निर्माण के लिए नोटिस भी दी गई है।
शहर में हैं 30 हजार मकान :
शहर में 1983 में महायोजना के तहत मास्टर लागू है। ऐसे में शहरी सीमा के साथ आसपास के 44 गांव इस मास्टर प्लान में हैं। यहां किसी भी निर्माण के लिए भवन का नक्शा पास होना अनिवार्य है। तीस सौ वर्ग मीटर से अधिक 300 वर्गमीटर के भू आच्छादन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना अनिवार्य है। नक्शा पास होने के दौरान उस पर इसका स्थान होता है। शहर क्षेत्र में 30 हजार के करीब रिहायशी और 25 से ज्यादा व्यावसायिक भवन हैं। निर्माण के बाद भी जल संचयन की व्यवस्था इन भवनों में नहीं की जा रही है। वहीं, विनियमित क्षेत्र के जिम्मेदार लोग मौके पर जाकर इसकी जांच पड़ताल तक नहीं करते हैं।