धनतेरस पर खनक बिखेरेगा बंधुआ कला का बर्तन

हरीराम गुप्ता सुलतानपुर शहर से सिर्फ आठ किमी दूर लखनऊ राजमार्ग पर स्थित दूबेपुर ब्लॉक

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 10:32 PM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 10:32 PM (IST)
धनतेरस पर खनक बिखेरेगा बंधुआ कला का बर्तन
धनतेरस पर खनक बिखेरेगा बंधुआ कला का बर्तन

हरीराम गुप्ता, सुलतानपुर: शहर से सिर्फ आठ किमी दूर लखनऊ राजमार्ग पर स्थित दूबेपुर ब्लॉक का बंधुआ कला गांव में बर्तन निर्माण कला का देश भर में अलग ही मुकाम है। पीतल, तांबा, कांसा व फूल धातु के बने बर्तन देश के कोने-कोने में पहुंच रहे हैं। धनतेरस त्योहार को देखते हुए बर्तन बनाने के कारीगरों ने फिर से तेजी लानी शुरू कर दी है।

नब्बे के दशक तक बंधुआ कला का ठठेरी बाजार मुहल्ला, जहां हर घर कारखाने की शक्ल में था। यहां करीब 200 घरों में पीतल, तांबा, कांसा धातु के बटुआ, लोटा, हंडा, परात आदि से लेकर हर छोटे-मोटे सामान बनते थे। मुरादाबाद, समसाबाद, मिर्जापुर, लखनऊ, बाराबंकी, नेपाल से आए खरीदारों में बर्तनों को पाने की होड़ लगी रहती थी। स्थानीय दुकानदार भी यहीं के बने बर्तन बेचकर परिवार का भरण पोषण करते थे। सरकारी उपेक्षा व आर्थिक समस्या के चलते धंधा दिन ब दिन कम होता जा रहा है। प्लास्टिक व स्टील के बर्तनों की मांग ज्यादा होने से भी पीतल, तांबा आदि की मांग कम हो गई। हालांकि लगन-सहालग व धनतेरस में ऑर्डर पर माल तैयार किया जाता है। कारीगर अजीत कुमार बताते हैं कि उन्हें दूसरे प्रदेशों के कारोबारियों से कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। मांग के अनुरूप उन्हें बर्तन बनाकर दिया जाता है, जिसके एवज में उन्हें मेहनताना दिया जाता है। धनतेरस के पहले यहां घर-घर बर्तन के दुकानें सज जाती हैं।

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सुबह होते ही शुरू हो जाता है काम

बर्तन बनाने का काम सुबह होते ही शुरू हो जाता है, जो कि देर रात तक चलता रहता है। भट्ठी में कच्चे माल को गलाकर नए बर्तन का रूप दिया जाता है। खराद मशीन में बर्तनों की सफाई कर उस पर नक्कासी उकेरी जाती है। कई लोगों ने तो आर्डर पर बर्तन बनाने के लिए खुद का कारखाना तक लगा रखा है। गोलू कहते हैं कि पीतल व तांबा मंहगा होने से भी इसके खरीदार कम हो गए हैं। कारीगर अजय कुमार बताते हैं कि वैज्ञानिक ²ष्टि से भी तांबे, पीतल व कांसे के बर्तनों में खाना-पीना सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। यही कारण है कि प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं के यहां सोने-चांदी, पीतल, तांबा व कांसा के बर्तनों की भरमार हुआ करती थी।

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