रंग लाई मेहनत, लहलहा रही चंदन की बगिया

-इलेक्ट्रिक फैक्सिग से की जा रही सुरक्षा अन्य जिले के किसान भी आते हैं खेती के गुर सीखने

By JagranEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 11:36 PM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 06:04 AM (IST)
रंग लाई मेहनत, लहलहा रही चंदन की बगिया
रंग लाई मेहनत, लहलहा रही चंदन की बगिया

सुलतानपुर : आपदाओं से बार-बार हो रहे नुकसान से परेशान एक प्रोफेसर ने खेती का तरीका बदला और खेतों में अन्य फसलों के बीच जगह-जगह चंदन रोप दिए। मेहनत रंग लाई और आज सैकड़ों चंदन के पेड़ खुशबू बिखेर रहे हैं।

तहसील क्षेत्र के सरैंयामाफी गांव निवासी प्रोफेसर डा. रवि प्रकाश तिवारी व डा. प्रफुल्ल नरायन तिवारी की। गनपत सहाय पीजी कॉलेज में भूगोल विषय के प्रोफेसर इन दोनों भाइयों ने चंदन के लिए जमीन मुफीद नहीं होने के कयासों को झूठा साबित करते हुए सुगंध फैलाने वाली हरी-भरी बगिया को जीवंत कर दिया। अब आसपास के दर्जनों किसान उनसे प्रेरित होकर खेती का गुर सिखने पहुंच रहे है।

- तीन बीघे में लगे है 300 पौधे

तीन साल पहले उन्होंने इसकी खेती शुरू की थी। तीन बीघे के चक में 300 पौधे लगे हैं। पौधों की रखवाली के लिए इलेक्ट्रिक फेसिग लगाया गया है। इसमें पानी के बचत के उदेश्य से सिचाई के लिए टपक विधि का प्रयोग करते हैं। इससे एक तरफ पानी की बचत भी होती है तो वहीं दूसरी तरफ पौधों व फसलों को भी फायदा होता है।

- पौधों को देना पड़ता है भोजन

प्रोफेसर बताते हैं कि इन पेड़ों को भोजन देना पड़ता है। एक चंदन पौधे के भोजन के लिए पांच और पौधे लगाने पड़ते है। 12 फुट की दूरी पर चंदन के पौधे रोपे गए हैं। बीच की खाली जगह में भोजन के लिए मीठी नीम, कड़वी नीम, सहजन, केरोजोना, अरहर के पौधे लगाए हैं। समय-समय पर मटर, मसूढ़, चना, सेवा-मेथी की भी खेती करते हैं। इससे उनको नुकसान भी नहीं होता। - बारह साल की होती है चंदन की खेती

डॉ. रवि प्रकाश तिवारी बताते हैं कि चंदन की फसल 12 साल में तैयार हो जाती है। इतने वर्षों में पौधा वृक्ष का रूप ले लेता और उस वृक्ष की जड़ें व डालें काफी मोटी हो जाती हैं। वे बताते हैं कि हमारे देश में उपयोग का केवल दस प्रतिशत चंदन भारत में होता है, बाकी विदेश से आता है, जिससे इसकी काफी मांग है।

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