23 महीने से पति के लौटने का इंतजार कर रही आदिवासी महिला

चित्र .5. -23 दिसंबर 2019 से गायब है परशुराम भाई पता करने गया तो कंपनी मालिक ने कर दी पिटाई - प्रतापगढ़ में पारेषण लाइन बनाने वाली एक फर्म में करता था काम

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 04:51 PM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 04:51 PM (IST)
23 महीने से पति के लौटने का इंतजार कर रही आदिवासी महिला
23 महीने से पति के लौटने का इंतजार कर रही आदिवासी महिला

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : अनेक कार्यो के बीच गुमशुदगी के मामले में पुलिस का रवैया अक्सर उदासीन रहता है। खासकर आदिवासियों के मामले में उपेक्षा परंपरा बनती जा रही है। रेणुका पार की एक आदिवासी महिला अपने पति की गुमशुदगी को लेकर पिछले 23 माह से परेशान है। पति की गुमशुदगी से एक माह पहले पैदा हुआ उसका पुत्र अब दो वर्ष का हो गया है। अब वह पिता का मतलब भी समझने लगा है। पति के गायब होने के कारण महिला को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। अंतिम बार परिजनों ने नवंबर 2020 में ओबरा पुलिस क्षेत्राधिकारी से मदद मांगी थी। इस मामले में प्रशासन के रवैये से मायूस परिजनों की आस अब टूटती जा रही है। रेणुकापार के ग्राम पंचायत पनारी के दुर्गम छत्ताडांड निवासी परशुराम खरवार पुत्र तिलकधारी जून 2019 में पारेषण लाइन बनाने वाली प्रतापगढ़ की एक फर्म में काम करने गया था। 24 दिसंबर 2019 को परशुराम के भाई अर्जुन को फोन आया कि उसका भाई कहीं चला गया है। परिजनों ने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी पूछताछ की। इसपर अर्जुन 27 दिसंबर को रामगढ़ जिला प्रतापगढ़ में कंपनी के मालिक के पास भाई के बारे में पूछने चला गया। अर्जुन के अनुसार कंपनी के मालिक ने उसकी पिटाई करने के साथ उसे एक कमरे में बंद कर दिया। लगभग दो घंटे बाद दरवाजा खोलकर उसे किसी ने वहां से भगा दिया। उसके बाद उसने भाई की गुमशुदगी की सूचना ओबरा पुलिस को दी थी। अर्जुन ने पुलिस को दी तहरीर में रेणुकापार से मजदूरों को बाहर ले जाने वाले एक गिरोह का भी जिक्र किया था। कहीं से नहीं मिली मदद

सितंबर 2019 में इसी पारेषण लाइन में कार्यरत सोनभद्र के एक मजदूर की अमेठी जिले के पीपरपुर थाना क्षेत्र में बच्चा चोर के नाम पर हत्या कर दी गयी थी। अर्जुन के अनुसार उन्होंने ओबरा थाने में रिपोर्ट करने के साथ सोनभद्र के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सहित मुख्यमंत्री, आइजी लखनऊ, डीएम और एसपी प्रतापगढ़ को भी पत्र भेजा लेकिन कहीं से भी कोई मदद नहीं मिली।

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