एफजीडीएस लगाने में दिख रही शिथिलता

बाटम-चित्र .4. सबहेड .. अनुमोदन के ढाई साल बाद भी मामला मुख्यालय स्तर पर - 873.38 करोड़ की कार्य योजना का मिला था अनुमोदन - पुरानी इकाइयों को बचाने को लेकर बढ़ी उदासीनता

By JagranEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 04:53 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 04:53 PM (IST)
एफजीडीएस लगाने में दिख रही शिथिलता
एफजीडीएस लगाने में दिख रही शिथिलता

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वर्ष 2015 में सभी बिजली संयंत्रों को वर्ष 2017 तक फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन सिस्टम (एफजीडीएस) लगाने के लिए कहा था। बाद में इसे वर्ष 2022 तक बढ़ा दिया गया था। लेकिन समय वृद्धि के बावजूद जनपद की कई परियोजनाओं में इसकी स्थापना में शिथिलता दिख रही है। योजना के तहत ओबरा परियोजना की 200 मेगावाट वाली पांच इकाइयों, अनपरा की 210 मेगावाट की तीन एवं 500 मेगावाट की दो इकाइयों सहित हरदुआगंज की इकाइयों में एफजीडीएस स्थापित की जानी थी। ऐसी शिथिलता तब है जब सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में देश में सल्फर डाई आक्साइड उत्सर्जन के मामले में सोनभद्र-सिगरौली क्षेत्र देश में सबसे ऊपर रहा है। इस क्षेत्र में वर्ष 2018 के सापेक्ष 2019 में सल्फर डाईआक्साइड के उत्सर्जन में 8.6 फीसद की वृद्धि हुई थी। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम की इन इकाइयों के 25 वर्ष से ज्यादा पुराना होने के कारण इन्हें हमेशा के लिए बंद करने का काफी दबाव रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बार-बार इन इकाइयों को जीवन दान दिया जा रहा है लेकिन प्रदूषण नियंत्रण संबंधी मानकों को पूरा करने को लेकर अपेक्षित गंभीरता नहीं दिखाई पड़ रही है। पूर्व आदेश के तहत 25 वर्ष से ज्यादा पुरानी इकाइयों को 31 दिसंबर 2022 तक बंद करना था। चालू वर्ष के अप्रैल माह में ही नए आदेश में यह सीमा 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है। इसके बावजूद एफजीडीएस को लेकर धरातल पर ज्यादा सक्रियता नहीं दिख रही है। जबकि अप्रैल 2019 में उत्पादन निगम के निदेशक मंडल ने अनपरा अ तापघर की 210 मेगावाट वाली तीन इकाइयों और ब तापघर की 500 मेगावाट वाली दो इकाइयों में एफजीडी की स्थापना एवं परामर्शी सेवा पर रु.873.38 करोड़ की कार्य योजना का अनुमोदन प्रदान किया था। इसी के तहत प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 6201.69 लाख की अंशपूजी की व्यवस्था बजट में की थी। चाइना विवाद भी बना समस्या

कोरोना संक्रमण के कारण चाइना से हुए विवाद ने ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी समस्या खड़ी की है। नई विद्युत इकाइयों सहित फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन प्रणाली में चाइनीज उपकरणों का बोलबाला रहा है। पिछले वर्ष कोरोना को लेकर चाइनीज उपकरणों के आयात पर रोक लगा दी गई थी। इसका असर एफजीडीएस की स्थापना पर भी पड़ा। आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन ई. शैलेंद्र दुबे ने बताया कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक चीन से आयातित पावर प्लांट की कुल क्षमता 61371 मेगावाट है, जिसमें निजी घरानों ने 58937 मेगावाट के प्लांट चाइना से लिये। इनकी अनुमानित लागत लगभग छह लाख करोड़ है। ओबरा तापीय परियोजना की 200 मेगावाट वाली इकाइयों में एफजीडीएस स्थापना को लेकर फिलहाल योजना मुख्यालय स्तर पर विचाराधीन है। इसलिए इस संबंध में वे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं।

- इ. दीपक कुमार, सीजीएम ओबरा तापीय परियोजना।

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