पूर्वांचल की मंडियों से मांग कम होने पर घट गया दीये का निर्माण

जागरण संवाददाता दुद्धी (सोनभद्र) आधुनिकता की चकाचौंध ने बड़े शहरों के साथ अब नगर उपनगर के साथ गांवों में इस कदर पांव पसारना शुरू कर दिया कि अब लोग परंपरागत विधाओं से भी दूर होने लगे हैं। कुछ इसी तरह का नजारा तहसील मुख्यालय से सटे मल्देवा गांव में देखने को मिला जहां महीनों पूर्व दीपावली पर्व के लिए घर-घर में मिट्टी के दीपक के साथ बचों के खिलौना तैयार करने में पूरा गांव जुटा रहता था। कितु अब हालात धीरे धीरे बदल रहा है। जिस घर में बुजुर्गवार हैउस घर में तो दिया समेत अन्य मिट्टी के पात्र बनाने का काम चल रहा है कितु युवा पीढ़ी इससे बिमुख हो रही है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 11:14 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 11:14 PM (IST)
पूर्वांचल की मंडियों से मांग कम होने पर घट गया दीये का निर्माण
पूर्वांचल की मंडियों से मांग कम होने पर घट गया दीये का निर्माण

जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र) : आधुनिकता की चकाचौंध ने बड़े शहरों के साथ अब नगर, उपनगर के साथ गांवों में इस कदर पांव पसारना शुरू कर दिया कि अब लोग परंपरागत विधाओं से भी दूर होने लगे हैं। कुछ इसी तरह का नजारा तहसील मुख्यालय से सटे मल्देवा गांव में देखने को मिला, जहां महीनों पूर्व दीपावली पर्व के लिए घर-घर में मिट्टी के दीपक के साथ बच्चों के खिलौना तैयार करने में पूरा गांव जुटा रहता था। कितु अब हालात धीरे धीरे बदल रहा है। जिस घर में बुजुर्गवार है,उस घर में तो दिया समेत अन्य मिट्टी के पात्र बनाने का काम चल रहा है, कितु युवा पीढ़ी इससे बिमुख हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण मांग की लगातार कमी होना बताया जा रहा है।

मंगलवार को जागरण के मिट्टी के पात्र बनाने के लिए चर्चित गांव का जायजा लेने के दौरान बमुश्किल दर्जन भर घरों में ही चाक चलता हुआ मिला। तेजी से चल रहे चाक पर मिट्टी एवं धागे से दीपक का आकार देने में लगे बुजुर्ग गोवर्धन प्रजापति ने बगैर नजर हटाए बुझे मन से पूछे गये सवालों का जबाव देते हुए मिट्टी की सोंधी सुगंध का एहसास कराते हुए बताया कि बाबू अब कहां बाजार से डिमांड आवत हव,बस जब तक जांगर चलत हौ, तब तक चाक चलत रही। पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि पहले तो महीनों पूर्व लाखों दीये बनाकर रख दिए जाते थे। दशहरा के बाद पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से व्यापारी आते थे,उनके आर्डर के मुताबिक आपूर्ति किया जाता था। उससे होने वाले आय से आवश्यक कार्यों का निपटारा किया जाता था। इलेक्ट्रानिक झालरों एवं चाइनीज दीयों की चमचमाती रौशनी की वजह से गांव में चलने वाले सैकड़ों चाक सिमट कर महज दर्जन भर में सिकुड़ गये हैं। इसी तरह चंद्रप्रकाश ने बताया कि बेरोजगार होने के कारण वह इस धंधे में लगा हुआ है। बहरहाल डाला, ओबरा, रेणुकूट आदि स्थानों से मिले आर्डर को पूरा करने में उनका पूरा कुनबा इन दिनों व्यस्त है। उन्होंने बताया कि बीते एक दशक से मांग में निरंतर गिरावट होने की वजह से वे अपने बच्चों को दूसरे व्यवसाय की ओर ले जाना चाहते हैं। जबकि वही गांव में पुरुष वर्ग के बनाये मिट्टी के पात्रों को सुखाने में लगी महिलाओं ने बताया कि वे जब से होश संभाला है, इसी में लगी है। इससे होने वाली आय से अब घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चल पाती है।

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