सोनांचल की शान व दुनिया के प्राचीन जीवाश्म पार्क पर संकट

सोनभद्र अपने जन्मदिन पर 201

By JagranEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 09:39 PM (IST) Updated:Fri, 30 Oct 2020 03:25 AM (IST)
सोनांचल की शान व दुनिया के प्राचीन जीवाश्म पार्क पर संकट
सोनांचल की शान व दुनिया के प्राचीन जीवाश्म पार्क पर संकट

सोनभद्र : अपने जन्मदिन पर 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा पूर्वांचल में पर्यटन स्थलों का प्रजेंटेशन देखने और उसके बाद मंत्रालयों की बढ़ी सक्रियता के दो साल बाद भी सलखन को लेकर एक कदम भी नहीं बढ़ाया गया, जबकि जिले में आए तत्कालीन संयुक्त निदेशक पर्यटन अविनाश मिश्र ने बताया था कि यहां के पर्यटन स्थलों की रिपोर्ट केंद्र सरकार को देनी है। यह भी बताया कि जल्द ही यहां के पर्यटन स्थलों का विकास होगा। यह दुनिया का सबसे प्राचीन फासिल्स पार्क है।

दरअसल, सलखन का फासिल्स अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क से भी बड़ा है। सरकार ध्यान दे तो धरती के रहस्य को समेटे इस कुदरत के नायाब तोहफे की पहचान भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो जाएगी। इससे जहां जिले में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा वहीं इससे सरकार को राजस्व भी मिलेगा। जिस 140 करोड़ वर्ष से अधिक पुराने जीवाश्म को सरकार अंतरराष्ट्रीय धरोहर घोषित कराने की पहल कर रही है उसके बारे में हर कोई जानने की इच्छा जाहिर करता है।

बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमाओं से सटे आदिवासी बहुल जनपद सोनभद्र जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी दूर सलखन में स्थित यह जीवाश्म यानि फासिल करीब 25 हेक्टेयर में फैला है। करोड़ों साल पुराने इस जीवाश्म की खोज जिले में सबसे पहले 1933 में जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने की थी। कैमूर वन्य जीव अभ्यारण के अंदर स्थिति इस अनमोल धरोहर के इतिहास को दुनिया के कई वैज्ञानिक प्रमाणित कर चुके हैं।

जीवाश्म का इतिहास

करीब 85 साल पहले यानी 1933 में इस जीवाश्म की खोज हुई थी। उस समय वैज्ञानिक ऑडेन ने इस पर रिसर्च भी किया। प्रख्यात भू-वैज्ञानिक एचजे हाफमैन सलखन के इस पार्क को देखकर काफी प्रभावित हुए थे। इसके बाद 1958 व 1965 में अथर ने भी इस पर रिसर्च वर्क किया है। 1980 व 1981 में प्रो. एस कुमार ने भी यहां के फासिल पर रिसर्च वर्क किया। वर्ष 2004 में डा. मुकुंद शर्मा ने भी इस पर शोध का किया है। उद्घाटन आठ अगस्त 2002 को जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी भगवान शंकर ने किया। जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर

सलखन जीवाश्म पार्क रॉब‌र्ट्सगंज से लगभग 17 किलोमीटर दूर वाराणसी-रेणुकूट राजमार्ग (एस एच-5) पर सलखन गांव में है। इसे सोनभद्र जीवाश्म पार्क के नाम से जानते हैं। सलखन जीवाश्म पार्क एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए सलखन जीवाश्म पार्क भारत के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी एक अमूल्य भूवैज्ञानिक धरोहर है। शोध रिपोर्ट के अनुसार, सलखन के जीवाश्म लगभग 150 करोड़ वर्ष पुराने व परिपक्व हैं। ये जीवाश्म प्रोटीरोजोइक काल के हैं। अमेरीकी वैज्ञानिकों ने भी माना है कि सलखन जीवाश्म पार्क अमेरिका के यलोस्टोन जीवाश्म पार्क से काफी प्राचीन एवं क्षेत्रफल में तीन गुना ज्यादा बड़ा है। यलोस्टोन जीवाश्म पार्क लगभग 110 करोड़ वर्ष पुराना है। औषधीय वनस्पतियों का है भंडार

सलखन जीवाश्म पार्क कैमूर वन्यजीव क्षेत्र में लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है। यह राज्य वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। पार्क का परिधि क्षेत्र 3.5 किलोमीटर है। यहां के वनों में कुर्ची, सलई, पलास, तेंदू, झिगन, सिद्धा, खैर, धावड़ा, जंगली बांस, आंवला, धवई तथा हरसिगार जैसी काष्ठीय वनस्पतियों की प्रजातियों का बाहुल्य है। हालांकि कई पौधे तो शिकारियों के हाथ लग गए हैं। पार्क में जीवाश्म आमतौर से चट्टानों पर छल्ले के आकार में प्रकट होते दिखाई देते हैं।

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