कहीं सीताहरण तो कहीं लंका दहन का हुआ मंचन
जागरण संवाददाता सोनभद्र सोनांचल में रामलीला का मंचन अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। मंगलवार को जिले में आयोजित रामलीला में कलाकारों ने मंचन किया। कहीं सीताहरण तो किसी जगह पर लंका दहन का मंचन किया गया। मंचन देख दर्शकों ने खूब तालियां बजाई।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : सोनांचल में रामलीला का मंचन अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। मंगलवार को जिले में आयोजित रामलीला में कलाकारों ने मंचन किया। कहीं सीताहरण तो किसी जगह पर लंका दहन का मंचन किया गया। मंचन देख दर्शकों ने खूब तालियां बजाई।
हिडाल्को में चल रही रामलीला मंचन के छठवें दिन का शुभारंभ हिडालको रिडक्शन विभाग प्रमुख सौरभ श्रीनेत्र ने श्री गणेश पूजन व राम आरती के साथ किया। रामलीला मंचन के छठे दिन के नारद सूर्पणखा वार्ता, सूर्पणखा नासिक भंग तत्पश्चात नृत्य नाटिका प्रस्तुती एवं सीता हरण आदि का मंचन किया। लीला का यूट्यूब चैनल रामलीला परिषद हिडालको पर प्रसारण किया जा रहा है। हिडालको बायलर विभाग के प्रमुख मनीष जैन तथा रामलीला के अध्यक्ष पीके उपाध्याय, उपाध्यक्ष नवनीत श्रीवास्तव आदि थे। घोरावल नगर के श्री रामेश्वर रामलीला मैदान पर चल रही रामलीला में सोमवार की रात लंकिनी पर मुष्टिका प्रहार, अशोक वाटिका में सीता, हनुमान का लंका में प्रवेश व लंका दहन का सजीव मंचन कलाकारों ने किया। रामलीला मंचन में दिखाया जाता है कि वानर राज सुग्रीव ने वीर हनुमान को लंका में सीता का पता लगाने के लिए भेजा। जहां पहुंचने से पहले हनुमान को रास्ते में सुरषा मिली उसके बाद लंकिनी। लंका में प्रवेश करने से रोकने पर लंकिनी को मुष्टिका से मारकर मिले श्राप से मुक्ति दी। लंका में प्रवेश करने के बाद रावण ने हनुमान के पूंछ मे आग लगाने का आदेश राक्षसों को दिया। पूंछ मे आग लगते ही हनुमान ने विभीषण के घर को छोड़कर सोने की लंका को घूम घूम कर जला दिया, लंका मे सर्वत्र करुण कुंदन का सैलाब व्याप्त हो गया। सोने की लंका धू-धू कर जलने लगी। इस मौके पर सूरज प्रसाद, सुरेश चौधरी, ओम प्रकाश पटेल, हरिओम विश्वकर्मा, पारस मोदनवाल, रामसजीवन, कृष्ण कुमार उमर, लवकुश अग्रहरि, श्यामा प्रसाद गुप्ता, दीपचंद्र अग्रहरि, रवि मोदनवाल आदि थे। कोन रामलीला समिति के तत्वावधान में रामलीला मैदान में जारी रामलीला के तेरहवें दिन भगवान के विलाप से लेकर सुग्रीव के साथ मित्रता तक का मंचन हुआ। रामलीला की शुरुआत सीताहरण के बाद प्रभु श्रीराम के कुटिया लौटने के दृश्य से हुई।