मां का मिला साथ तो सात वर्षीय अरनव ने दी कोरोना को मात

मां का बखान करने के लिए दुनिया में शब्दों की कमी हो जाएगी। मां की ममता के आगे दुनिया का हर कष्ट दूर हो जाता है तो यह कोरोना क्या चीज है। डाला निवासी संगीता सिंह ने इसको चरितार्थ करके दिखाया है। कक्षा दो में पढ़ने वाला सात वर्षीय अरनव सिंह कोरोना की चपेट में आ गया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 10:24 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 10:24 PM (IST)
मां का मिला साथ तो सात वर्षीय अरनव ने दी कोरोना को मात
मां का मिला साथ तो सात वर्षीय अरनव ने दी कोरोना को मात

जागरण संवाददाता, डाला (सोनभद्र): मां का बखान करने के लिए दुनिया में शब्दों की कमी हो जाएगी। मां की ममता के आगे दुनिया का हर कष्ट दूर हो जाता है तो यह कोरोना क्या चीज है। डाला निवासी संगीता सिंह ने इसको चरितार्थ करके दिखाया है। कक्षा दो में पढ़ने वाला सात वर्षीय अरनव सिंह कोरोना की चपेट में आ गया। जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो पहले वह बहुत परेशान हुए लेकिन फिर हिम्मत से काम लिया। संगीता सिंह गृहिणी है, जबकि पिता सत्येन्द्र सिंह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गुरमुरा में फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है।

संगीता सिंह ने बताया कि जब उनके पुत्र अरनव सिंह की रिपोर्ट कोरोना पाजिटिव आई तो वे लोग घबराए नहीं। बल्कि चिकित्सकीय टीम के सलाह पर बच्चे को अलग कमरे में होम क्वारंटाइन कर दिया गया। जिसमें कमरा हवादार होने के साथ ही उसमें अलग शौचालय की भी व्यवस्था थी। पिता के सिर पर दो जिम्मेदारियां आन पड़ी। एक तो पिता होने के नाते पुत्र की सेवा व दूसरा स्वास्थ्य कर्मी होने के नाते समय से ड्यूटी पर जाना। इस बात को समझते हुए संगीता ने घर की जिम्मेदारी उठाने का बीड़ा उठाया। संगीता सिंह कोरोना संबंधित नियमित दिशा निर्देशो का बखूबी निर्वहन सावधानी पूर्वक करती रहीं। संगीता ने बताया कि वह अपने बच्चे को दोनो टाइम सुबह व शाम काढ़ा पिलाया करती थीं। कमरे की साफ-सफाई पूरी सावधानी से करती रही। नियमित दवा का सेवन बच्चे को कराती रहीं और बच्चे का तापमान व आक्सीजन लेवल की जांच करती रहीं। इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी वह नियमित रूप से चिकित्सकों के साथ साझा करती रहीं। बताया कि जिस कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर नहीं किया था उसे एक कमरे में 14 दिन तक बंद करके रखना बहुत मुश्किल भरा पल था। लेकिन उसके स्वास्थ्य की चिता ने इसे किया। बताया कि इस दौरान वह उसके पिता कभी भी पूरी नींद नहीं सो पाए। रात में जब भी नींद खुलती वह भाग कर उसके पास जाकर उसे देखती थीं, उसे सोता देख मन को शांति मिलती थी। संगीता सिंह जैसी मां की सेवा व सतेंद्र सिंह ने जिस जिम्मेदारी से घर व बाहर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया वह आज के समय में मिसाल है। 14 दिन बाद बेटे की रिपोर्ट निगेटिव आई तब जाकर दोनो की जान में जान आई।

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