हरी खाद किसानों के खेती के लिए बनेगी संजीवनी
मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने व मृदा स्वास्थ्य सुधारने के लिए हरी खाद का उपयोग सबसे बेहतर माना जाता है। जिले में इसको बढ़ावा देने के लिए ढैंचा की खेती पर जोर दिया जा रहा है। कृषि विभाग हरी खाद के लिए ढैंचा व सनई पर काम कर रहा है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने व मृदा स्वास्थ्य सुधारने के लिए हरी खाद का उपयोग सबसे बेहतर माना जाता है। जिले में इसको बढ़ावा देने के लिए ढैंचा की खेती पर जोर दिया जा रहा है। कृषि विभाग हरी खाद के लिए ढैंचा व सनई पर काम कर रहा है। रासायनिक उर्वरकों से कई गुना अधिक मिट्टी में उत्पादन क्षमता हरी खाद बढ़ाती है।हरी खाद के लिए ढैचा की बोवाई का समय मई से जून का महीना उपयुक्त होता है। ढैचा का 60 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर प्रयोग होता है। इसलिए कृषि विभाग किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
जिला कृषि अधिकारी पीयूष राय ने बताया कि ढैंचा की खेती करना चाहिए। जब पौधे एक से दो फुट के हो जाए या बोवाई के 40 से 45 दिन में मिट्टी पलट हल या रोटावेटर से खेत मे पलट दें। इससे तैयार होने वाली हरी खाद से भूमि में सुधार होता है, मृदा में जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है एवं उपज बढ़ती है। ढैंचा के अलावा सनई, मूंग, लोबिया का भी प्रयोग कर सकते है। बताया कि पहले की तुलना में अब हर किसी के घर पर पशु नहीं होते जिसके कारण गोबर की उपलब्धता घटी है। जिस कारण खेतों के लिए गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती है जिसके कारण खेतों में पोषक तत्वों की कमी हो रही है। मृदा का स्वस्थ खराब हो रहा है, मृदा के सुपोषण एवं संरक्षण की आवश्यकता है। अक्सर किसान अपने उपज के भूसे को खलिहान में ही छोड़ देते है व बाद में आग लगा कर जला देते है जिससे पोषक तत्वों के साथ लाभकारी जीवाणु भी नष्ट हो जाते है। जबकि होना चाहिए कि फसल अवशेष को एक गड्ढा खेत खलिहान के पास बनाकर उसमें डाल दें। ऊपर से थोड़ा गोबर व पानी डालकर गडढे को बंद कर दें। सात से आठ माह में अच्छी पोषक तत्वों से युक्त कम्पोस्ट खाद तैयार होगी।